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अनुसूची
�वषय पान क्र.
प्रस्तावना 2
जैन तत्व� का राष्ट्र �नमार्ण मे उपयोग -
साधू सम्मेलन के माध्यम से
4
श्रमण संघ - नई �पढ�, नई सोच, नई �दशा 8
साधू-साध्वी प्र�श�ण हेतू कायर्योजना 14
श्रमण संघ के प्रबल�करण मे सािध्वय�क� नार� शक्ती को बलवान करने �क
नई कायर्योजना
19
साधक-सा�धका / प्रचारक इस नई कॅ टेगर�
का �नमार्ण करना
25
आदशर् चातुमार्स - एक नया दृिष्टकोण 29
Contents
Preface................................................................................. 37
Sammelan: A call for harnessing Jain principles for nation building ..... 39
Shraman Sangh: Towards a new generation, new thoughts and new
direction ............................................................................... 41
Action Plan for Training of Sadhus/Sadhavis ................................... 45
Channelizing Woman Power by Creation of Sadhavi wing under Shraman
Sangh ................................................................................... 49
Action Plan for Creation of a Selfless, Committed Cadre of
Sadhak/Sadhika/PracharakforShramanSangh........................................ 53
Ideal Chaturmas: A New Perspective ............................................ 57
(Strictly for Internal and private circulation only.)
2
तावना
,दनांक : ०९.०३.२०१५
त,
परमपूMय आचाय सNाट डॉ. #ी. 1शवमु नजी म.सा.
एवं सभी साधू-साि!वय के चरणो मे
कोट) कोट) वंदन,
आचाय #ी. डॉ. 1शवमुनीजी म.सा. के आदेशानुसार अSखल भारतवषVय
Wवेतांबर थानकवासी जैन कॉYफरYस 9क न#ायमे अ!य2 #ी. नेमीनाथजी
जैन के नेतृ व मे आयोिजत साधू स मेलन हेतू मेर) हा,दक शुभकामनाए |
#मण संघ सुDढ हो और नई उंचाईतक पहुंचे यह पुरे देशभर के जैनीओंक7
भावना है | माच २०१५ का यह साधू स मेलन समाज एवं देश के ल)ये 1मल
का प थर सा_बत होगा | २८ साल के बाद आनेवाले इस सुनहरे अवसर का
'वधायक उपयोग करके लेना चा,हये | इस D ट)से दो माह पूव मैने इंदोरे
जाकर #ी ने1मनाथजी एवं वaर ठ पदाधीकार)य के साथ साधू स मेलन स2म
बनाने हेतू ;चंतन-मनन 9कया | उसपर #ी नेमीनाथजी ने इस ;चंतन को आगे
बढाने के ल)ये मुझे एवं जैन समाज के वaर ठ नेता #ी. शांतीलालजी कवाड को
इस स मेलन मे मागदशक 9क भू1मका नभानेके आदेश ,दये |
#ी. शांतीलालजी कवाड यह जैन समाज के एक भावशाल) नेता है | उYहोने
भी पुना मे आकर इस 'वषय पर मेरे ;चंतन को समझने 9क को1शश 9क |
त पWयात परमपूMय आचाय #ी. डॉ. 1शवमु नजी म.सा., वaर ठ साधू-साि!व
एवं पदा;धकार)ओंके साथ 'वचार 'वमश करनेका हमे मौका 1मला |
इस संदभ मे हमने हमारे ;चंतन को आगे बढाकर बुनयाद) सुझाव आचाय#ीजी
को देने चा,हये इसपर सहमती हुई | इस1लये इस 'वषयपर सोचकर मेरे नजी
3
'वचार आपक7 सेवा मे े'षत करनेका यास कर रहा हुं | मेरे मे इतनी
2मता न,ह 9क मै आचाय#ीजी को सुझाव दे सकू | इस1लये इसको सुझाव के
eप मे न देखकर यह समाज ;चंतन है इस D ट)से देखे | मै जो ;चंतन रख
रहा हुं यह मेर) नजी राय है | इसमे मह वपूण 'वषय ,दये हुये है | यह
;चंतन अं तम सुझाव नह) है | इसमे 1सफ मह वपूण _बYदुओको छु ने 9क
को1शश 9क है | #ी. शांतीलालजी कवाड इनक7 भी अलग सोच एवं सुझाव हो
सकते है | हर लgय को पुरा करने के ल)ये अलग अलग रा ते भी हो सकते है|
यह ;चंतन अYय लोग अलग तर)के से भी रख सकते है | इसपर जो भी नणय
आचाय#ी लhगे यह पुरे समाज के ल)ये 1शरोधाय होगा और हम सब उसका
न ठासे पालन करhगे |
इस ;चंतन मे माi और माi धम एवं समाज 9क सेवा यह उjेश है | इसमे
9कसी भी साधू-सा!वी एवं पदा;धकार) 9क अलोचना करनेका त नक भी उjेश
न,ह है | इसमे एक kयापक D ट)कोन ,दया हुआ है | अगर मेरे 'वचारो से
9कसी के ,दल को ठेस पहुंची हो तो मै 2मायाचना करता हुं |
आपका आlाकार),
शांतीलाल मु था
4
जैन त व का रा ! "नमा#ण मे उपयोग -
साधू स+मेलन के मा,यम से
'वWव के सबसे ाचीन धमm मh से एक, जैन धम, अ,हंसा और वयं -
नयंiण का माग दशाता है, जो उसके अनुचर के 1लए मो2 ािnत का
मा!यम बन सकता है। अ,हंसा, अपaरpह और अनेकाYतवाद ये तीन मुख
1सqांत इस धम क7 जड़h हs, जो भगवान महावीर क7 1श2ाओं से प ट होता
है। भगवान महावीर के इन 'वचार मh इतनी गहराई है, 9क वयं महा मा
गांधीजी भी भगवान महावीर ने बताए हुए कई त व का कड़ा पालन करते
थे।
जैन धम का त वlान और उसके त व मनु यमाi तथा कृ त क7 गती
मh नत उ;चत रहे हs। आज, जब 9क चार ओर घृणा, ,हंसा, अYयाय और
अस,ह णुता का वातावरण फै ला हुआ है, ऐसे मh ये त व और त वlान खास
कर अ;धक मायने रखते हs। इन त व पर 'वWवभर मh अ;धक से अ;धक
aरसच 9कया जा रहा है और 'वWवपर छाये अशािYत के बादलो मh इन त व
को सूरज क7 9करण माना जा रहा है। इस महान धम के अनुचर होने के नाते
हम सब भाuयशाल) हs। त व तथा #qाओं क7 एक समृq पर परा, िजसमh
हम मh से हर एक को आ!याि मक शुqता तथा आ मlान के माग पर ले
जाने क7 शि8त हमh 'वरासत मh 1मल) है। हम सभी को भगवान महावीर के
बताए माग पर चलने का भरसक यास करना चा,हए।
इसी भावना के साथ, हमारे छोटे - बड़े झगड़े, जो हमारे वतमान का एक
,ह सा हs, जो हमारे दैनं,दन अि त व को भा'वत करते हs और जो हमh पूर)
तरह से लपेट मh ले सकते हs, उनका याग करने क7 नै तक िज मेदार) हम
उठाएं। य,द हमh जैन त व के सvचे उपासक बनना है, तो हमh साधारण
चीज़ के परे जा कर सोचने और काय करने क7 शि8त वयं मh जुटानी होगी,
हमारे आपसी भेद जो जैन धम के 'वशाल 1सqाYतो के सामने कोई मायने
नह)ं रखते, उनके ऊपर उठकर सोचना होगा। इन त व के सार करने और
5
स पूण 'वWव मh उनक7 अvछाई भरने के माग तथा मा!यम पर हमh अपना
!यान के िYyत करना आवWयक है।
एक समुदाय के eप मh जैनी भारत क7 कु ल जनसंzया के माi 0.5% हs और
#मण संघ इस अ{पसंzयक गुट का एक बहुत ह) छोटा ,ह सा है। 9फर भी,
जै नय के पास जीवन के मूलभूत त व का खजाना है, जो क7 'पढ़) दर
'पढ़) आगे चलता आया है। #मण संघ िजसका अ'वभाMय अंग है, उस जैन
धम के सम'पत अनुचर }वारा न1मत यह पुंजी माi जैन समुदाय ह) नह)ं
बि{क समुचे देश के 1लए उपयोग मh लाना आवWयक है। संघ जैन धम के
कु छ अ य;धक भावशाल) 'वचारक तथा सारक के एक_iत होने से बना है
और उनके 'वचार, उनके वचन मुzय वाह मh लाना और अ;धक से अ;धक
लोग तक पहुँचाना अ त आवWयक है। जै नय का योगदान देश के स पूण
समाज मh तथा अYतररा )य तर पर भी साaरत होना आवWयक है। जै नय
को सुना जाए, देखा जाए और उनका अि त व महसूस 9कया जाए, इसके
1लए संघ ने जैन 1सधाYत का सारमा!यम के 'व1भYन उपल•ध मंच के
मा!यम से यास करना आवWयक है।
इस बात को शी€ अ यावWयकता के भाव से तथा ल•2त eप मh 9कया जाना
आवWयक है। इस ,दशा मh काय करने के 1लए स भाkय कृ तीरेखा कु छ इस
तरह क7 हो सकती है -
1. -मण संघ /वारा साधू और साि,वय क2 एक क4मट6 बनायी जाए,
जैन त व को देश और दुनीया के सामने, सार म,यम के उपयोग
/वारा तुत करने का उ तरदा"य व स:पा जाए |
2. इस क4मट6 /वारा व4भ>न सामािजक, दाश#"नक प?, प@?काएं,
काशन, तथा िजनक2 समाज मA सुदूर तक पहुँच है, ऐसे अ>य
मा,यम मA लेख 4लखे जाए |
6
3. व/यमान उपलFध साGह य मA अ4भवृIी करने का, जैन वरासत,
उसका काय# और गत कई वषK मA Lकए गए अनुस>धान को सुचाM
ाMप मA लेNखत करने का, लOय रखA और उसके पPचात ये
द तावेज व4भ>न मंच से बाहर6 दु"नया को Gदखाएं | रा !6य,
अंतरा# !6य workshops, से4मनास# एवं अ>य मंच का उपयोग कर
जैन 4सधा>त को देश और दुनीया के सामने लाया जाए इस X ट6
से क4मट6 क2 थापना |
4. जैन धम#, जैन सं थाओं का तथा समुदाय के काय# के बारे मA
जानकार6 साZरत करने के 4लए अ[धकृ त वता के Mप मA कु छ
[गने - चुने मह वपूण# सद य को "नयुत करA |
5. स/य पZरि थ"त मA १३०० साधू-साि,वय मA काफ2 लोगोने
Graduation, Post graduation एवं Doctorates क2 पद वया हा4सल
क2 है | इस Zरसोस# का हमने पूरा लाभ लेना आवPयक है | इनमेसे
कु छ लोग का Think Tank बनाकर इस वषय को Movement क2
तरह चलाना आवPयक है |
6. देश मA Gहंसाचार, अ याचार, बला कार, c टाचार क2 घटनाये
लगातार बढ़ती जा रह6 है | इस वषय पर दूरदश#न के कई चैनेeस
पर घंटो घंटो बहस होती है | अGहंसा के पुजार6 रहनेवाले हमारे कई
व/वान साधू-साि,व इन सब वषय पर लगातार बहस मA Gह सा
लेकर पूण# भारत वष# के समाज पर अपना भाव डाल सकते है |
इसमA धम# और समाज दोनोक2 भी बड़ी सेवा होती है | इस बात
को इस स+मलेन मA काफ2 गंभीरतासे लेना आवPयक है |
7
ये शुeआती 9कYतु मह वपूण कदम इस मूवमेYट के बारे मh जागृ त नमाण
करने के तथा भगवान महावीर का सYदेश फै लाने के काय मh बहुत उपयु8त
1सq हो सकते हs। ये यास पूरे 'वWव मh जै नय क7 पहचान बनाने का काय
करhगे। 'वWव मh जै नय का योगदान अ;धक संzया मh लोग }वारा और
अ;धक गहराई से वीकारा जाएगा। इसीसे अपने समुदाय से परे जा कर
मानवता क7 सेवा करना चाहनेवाले जैनी तथा जैन सं थाओं के 1लए अनेक
अवसर खुल जाएंगे। यह सह) मायन मे भगवान महावीर }वारा बताए माग
पर चलना 1सq होगा और जै नय को, जैन धम के अनुचर के यथो;चत eप
से मनु यमाi तथा मानवता क7 सेवा करने 1लए वयं को सम'पत करने का
अवसर ाnत होगा।
***
8
-मण संघ - नई पढ6, नई सोच, नई Gदशा
जैन धम के 'व1भYन स दाय के आदरणीय एवं 'व}वान् साधू-साि!वय ने
साथ 1मलकर #मण संघ का गठन 9कया | यह 1950 के दशक क7 अ त मह वपूण
घटनाओं मh से एक थी | यह संगम उन सभी साधू-साि!वय का एक संग,ठत यास था
िजसके }वारा वे जैन धम के 1सqांत का चार कर 'वWव मh शािYत और सदभाव क7
थापना करना चाहते थे | देश के इ तहास मh जैन संघ का यह यास अभूतपूव था |
'पछले 65 वषm के अपने इ तहास मh #मण संघ ने अपनी Dढ़ता और समपण }वारा
अनेक 'वपर)त पaरि थ तय मh समाज के ,हत हेतु अपने अि त व क7 र2ा क7 है |
कई साधू-साि!वय मh वैचाaरक मतभेद क7 ि थ तयां भी उ पYन हुई हs | इस कार क7
कई अवां छत घटनाएँ समय-समय पर संघ के अि त व और मूल उjेWWय के 1लए
खतरा बनकर उभर) हs | इन सबके बावजूद जैन धम क7 मजबूत सैqां तक बु नयाद के
कारण संघ ने इन सभी आतंaरक मतभेद एवं बदलते समय क7 चुनौ तय से ऊपर
उठकर अपना अि त व कायम रखा और अपनी नीव को कभी भा'वत नह)ंहोने,दया|
आज इस संघ मh 1300 'व}वान, उvच1श•2त और lानी साधू-साि!वयां हs जो जैन
समाज के 1सqांत के पaरचायक हs | यह निWचत eप से गव क7 बात है | 9कYतु
समय-समय पर उ पYन होने वाले मतभेद और मनमुटाव ने सभी के मन मh यह संशय
उ पYन 9कया है क7 ऐसे मसले संघ के मूल अि त व के 1लए खतरा पैदा कर सकते हs |
इससे पहले क7 यह बेचैन करने वाले संके त 'वशाल सम या का eप धारण करh, हमh हर
एक जैनी के मन से इन नकारा मक शि8तय को 1मटाना होगा|अब समय आ गया है
9क सभी साधू-साि!व यह ठान लh क7 वे संपूण इमानदार) एवं न ठा के साथ संघ मh
पूरा 'वWवास रखते हुए इसके मूल 1सqांत का चार करने मh सहयोगी एवं सहभागी
ह गे |
आज हम एक ऐसे चौराहे पर खड़े हs जहाँ से 9कये गए माग का चुनाव ह) संघ के भ'व य
को नधाaरत करेगा |अतः, २८ वषm के ल बे अंतराल के बाद आयोिजत 9कया गया यह
स मेलन संघ क7 संरचना क7 सुर2ा क7 ओर 1लया गया मह वपूण कदम है |यह
9
स मेलन सvचे मन से 9कया गया वह यास होना चा,हए, जो सभी साधू-साि!वय मh
'वचार क7 एकता उ पYन कर, संघ के एकमत Dि टकोण को सामने ला सके और सभी
के }वारा इसे आ मसात 9कया जा सके | संघ क7 कु शलता के 1लए ज…र) है क7 सभी
साधू-साि!व Dढ न ठा से संक{प लेते हुए उन लgय और 1सqांत को अपनाएं
िजनको संघ का समथन ाnत है |जब तक सभी साधू-साि!व समान 'वचार और कथन
को धारण नह)ं करते संघ क7 एकता को बनाये रखना ,दन-ब-,दन क,ठन होता जाएगा|
यह बदलाव लाने के 1लए संघ को अपने 'वचारो मh कई मह वपूण और kयापक
बदलाव लाने ह गे | इन बदलाव के 1लए सभी सद य क7 सहमती आवWयक है एवं यह
भी आवWयक है क7 सद य बड़े पैमाने पर संघ क7, जैन समाज क7 और जैन 1सqांत क7
र2ा और चार के बारे मh सोचh |
इस चुनौतीपूण पृ ठभू1म के आधार पर, संघ क7 कायशैल) मh हम कु छ बदलाव
ि त'वत कर रहे हs और इसका मुzय उjेWय संघ क7 संरचना को आतंaरक मजबूती
दान करना है | इस हेतु न न ताव हs:
• संघ के Xि टकोण के बारे मA एक व तृत द तावेज ३-४ मह6ने क2 अव[ध
मA बनाया जाकर तुत Lकया जाना चाGहए | यह द तावेज आचायK,
युवाचायK एवं वत#क /वारा 4मलकर बनाया जाना चाGहए यह द तावेज
बनाने के ल6ये बाहर6 ोफे शनलस क2 मदद ल6 जा सती है |
• इस द तावेज मA "न+न4लNखत बातA शा4मल होनी चाGहए:
• संघ का त वjान (Philosophy), Xि टकोण (Vision), लOय (Mission),
उkेPय और वशेष काय# (Aims & Objectives)
• संघ के येक मह वपूण# ओहदे एवं थान से स+बं[धत भू4मका,
िज+मेदार6 और काय#काल का ववरण
10
• संघ के येक सद य के 4लए आचार-संGहता
• संघ के भ व य क2 सभी योजनायA एवं पूव#-"नधा#Zरत लOय; सभी लघु-
काल6न एवं द6घ#-काल6न योजनायA
• संघ के मह वपूण# आयोजन जैसे Lक चातुमा#स एवं साधू-सा,वी स+मलेन
के 4लए Gदशा-"नदlश| चातुमा#स के आयोजन के 4लए संघ के पदा[धकाZरय
को -ावक संघ एवं जैन कांmA स के सद य से सलाह लेकर Gदशा-"नदlश
"नधा#Zरत करने ह गे |
• संघ क2 L याएं एवं 4शकायत "नवारण णाल6
• दूरदशn Xि टकोण का यह द तावेज संघ के सभी सद य को उपलFध
कराया जाना चाGहए िजससे Lक सभी के आचरण और लOय मA समानता
और एकMपता बनी रहे
• आचायK के 4लए काय#काल 15 वषK का हो और उनक2 आयु 70 से अ[धक
ना हो |यह इस4लए आवPयक है यूंLक 15 वषK क2 अव[ध उस ओहदे के
oयित के 4लए संघ "नमा#ण हेतु लOय "नधा#रण और उन लOय के
"न पादन हेतु काफ2 है | काय#काल "नधा#रण से युवा नेताओं को भी नयी
सोच के साथ संघ को ग"तशील बनाने का मौका 4मल सके गा |आयु सीमा
के "नधा#रण से बढती उq से उ प>न वा य स+ब>धी सम याओं से
संघ के काय# भा वत नह6ं ह गे |
11
• 15 वषK के काय#काल के पPचात आचायK को महा-आचाय# या गणा[धप"त
का थान ाrत होगा िजसके तहत वे संघ के दै"नक कायK से "नवृत होते
हुए भी और अ[धक स+मानीय और उsच पद पर वराजमान ह गे |
सभी वतक / वा त नय , उपा!याओं एवं स;चव के 1लए 5 वषm का
कायकाल नधाaरत 9कया जाना चा,हए |यह आवWयक है 8यूं9क पांच वष
का समय 9कसी kयि8त के 1लए सभी संभावनाओं को खोजने और अपनी
काय2मता के अनुसार संघ के ,हत मh उYहh कायािYवत करने के 1लए
काफ7 है |
हर पांच वष मh अSखल भारतीय साधू-सा!वी स मलेन का आयोजन होना
चा,हए | इससे सभी साधू-साि!वय को एक मंच ाnत होगा जहाँ वे साथ
1मलकर खुले संवाद }वारा बहुत कु छ 1सखने के साथ ह) अपने अनुभव भी
बाँट सकते हs | इन संवाद के }वारा संघ क7 ग त के 1लए और
आवWयक सुधार के 1लए नणय 1लए जा सकh गे | स मलेन के आयोजन
से येक पांच वषm मh नए पदा;धकाaरय क7 नयुि8त क7 घोषणा भी क7
जा सके गी |इससे यह भी सु निWचत होगा क7 एक आचाय अपने कायकाल
मh अपने नेतृ व और मागदशन मh ३ स मेलन मh ,ह सा ले सकh गे |
यह Dि टकोण द तावेज भ'व य मh सYदभ के eप मh संघ के नए सद य के 1लए
उYमुखीकरण 1श2ण मो†यूल तैयार करने मh मददगार 1सq ह गे |इस कार
संघ को 1श•2त एवं कायशील साधू-सा!वी 1मल सकh गे |
12
कायm क7 समी2ा एवं ेषण के 1लए भी एक नयी णाल) क7 आवWयकता
है | पदा;धकार) एक चौमासी ेषण व् समी2ा णाल) तय कर सकते हs
िजसके }वारा वे आचायm को पूव नधाaरत ाeप मh aरपोट दे सकh | यह
aरपोट बहुआयामी होनी चा,हए िजसमे सभी योजनाओं क7 वा तु-ि थ त,
लgय ािnत एवं चुनौ तय को शा1मल 9कया गया हो |आचाय को यह
सु निWचत करना होगा क7 उनके और संघ के सभी सद य के बीच एक
बे‡तर संवाद क7 थापना हो सके | लgयपू त और 'व1भYन कायm क7
मांग के अनुसार आचाय को समय-समय पर सद य के 1लए ,दशा- नदˆश
जार) करने ह गे |
एक द2 और भावी 1शकायत नवारण णाल) (Grievance Redressal
system) क7 थापना करके संघ को उसे अपनाना चा,हए | चौमासी
aरपोट से उ पYन सभी सम याओं को दज 9कया जाना चा,हए और इनके
नवारण हेतु उपयु8त तर)क क7 पहचान होनी चा,हए और उनक7 गंभीरता
भांपकर उनके नवारण होना चा,हए | सभी छोट) सम याओं (िजनक7
साफ़ पaरभाषा Dि टकोण द तावेज मh 1लSखत हो) का नवारण वतक
}वारा 9कया जाना चा,हए | गंभीर और नाजुक मामल मh ('गंभीर' और
'नाजुक' सम याओं क7 साफ़ पaरभाषा द तावेज मh 1लSखत होनी चा,हए)
आचायm को नराकरण करना चा,हए | सभी 'छोटे या बड़े' 'ववाद
अ;धकतम एक मह)ने क7 अव;ध मh सुलझा ,दया जाने चा,हए |
13
आचाय }वारा एक ऐसी स1म त का गठन 9कया जाना चा,हए, जो जैन
समुदाय }वारा रा नमाण और देश के ,हत मh मानवतापूण कायm मh
योगदान देने के तर)क क7 'ववेचना कर सकh |
हर साधू-साि!वय }वारा 9कसी न 9कसी गाव / शहर मh चातुमास होते ह)
है| कु छ जगह पर #ावक }वारा तो कु छ जगह पर साधू-संतो के कहेनेपर
अनाप-शनाप खचा 9कया जा रहा है | इस बात को काफ7 गंभीरतासे
सोचकर चातुमास कै से हो, उसमे नमंiण प_iकाए, पो टस, Banners,
Advertisements, मžडप इ या,द 'वषय पर एक Comprehensive
guidelines को बनाना अ यंत आवWयक है| इसमh चातुमास के साथ साथ
द)2ा एवं साधू स मलेन इन काय¥म का भी समावेश होना चा,हए |
काफ7 साधू-संत के समूह मh एक मुख साधू एवं साि!वय के साथ ३-४ से
लेकर १०-१२ तक अYय साधू एवं साि!वयां रहती है | खास करके यह पुरे
समूह मh से १-२ लोग Most Active ,दखाई देते है | अYय साधू-साि!व
भी काफ7 भावशाल), पढ़े 1लखे एवं active होते है | इस मह वपूण
resource का मुzय वाह मh 'व'वध 'वषय के ऊपर उपयोग कै से करके
ले इस Dि ट से इस document मh हर जगह पर Action Plan मौजूद है |
***
14
साधू-सा,वी 4शtण हेतू काय#योजना
-मण संघ जैन Pवेता+बर सं दाय के बीच जैन धम# के 4सIांत का बेहतर
चार करने के 4लए अि त व मA आया है | पछले कई वषK से यह संघ हमारे
साधू-साि,वय के मंडल मA जैन धम# के मुख उuयेPय को बढ़ावा देता रहा है |
इन सभी बात का सार यह) है 9क #मण संघ के Dि टकोण, मुzय सYदेश,
'वचार, और उjेWWय संपूण संघ मh एकeपता से संचाaरत ह | संघ के
1सqांत का समानता से सभी सद य तक पहुँचना और उनके }वारा एक eप
मh pहण 9कया जाना संघ के अि त व हेतू अ त-आवWयक है 8य 9क ये सभी
सद य एक बड़े अनु¥म का ,ह सा हs |
संघ के त काल)न स माननीय सद य के मागदशन मh द)2ा लेने के उपरांत,
जब 9कसी kयि8त का गुणीजन क7 प'वi संगत से थम पaरचय होता है, तो
यह उ मीद क7 जाती है 9क वह #मण संघ के 1सqांत का पaरचायक बनकर
रहे और साथ ह) अपने गु…जन से ाnत kयि8तपरक धा1मक 1श2ा का
अनुसरण भी करता रहे |
यह तभी संभव होगा जब #मण संघ के 1सqांत का मानक7करण करके , एक
नधाaरत तर)के से उYहh द)2ाथV को समझाया जाये, ता9क द)2ा के पूव ह)
वह धा1मक lान के साथ इन 1सqांत को भी आ मसात कर सके | इस तरह
का 1श2ण संघ के सद य मh गुट नरपे2ता और वैचाaरक सहम त बनाये
रखने मh सहायक 1सq होगा| अतः हम इस कार के 4शtण काय# म के
बनाये जाने का ताव रखना चाहते हw | इससे #मण संघ क7 1श2ा सामpी
और 1सqांत का मानक7करण हो सके गा | मूलतः यह 1श2ण काय¥म पूव-
नधाaरत एवं सीमाबq तर)के से संचा1लत होगा, ता9क सभी सद य के म!य
1श2ण सामpी और Dि टकोण सदैव समान रहh |
15
इस ताव को साकार करने के 1लए न न1लSखत तर)के अपनाये जा सकते हs:
a) -मण संघ क2 कA z6य स4म"त - िजसमे आचाय#, युवाचाय# और वत#क
शा4मल ह गे - /वारा देशभर मA चार मु{य 4शtण कA z था पत
Lकये जाएँ, जहाँ "न+न4लखीत मूलभूत 4शtण दान Lकया जाएगा |
b) कA z6य स4म"त 4शtण का ाMप और साम}ी तैयार करने का िज+मा
कु छ स+माननीय साधू-साि,वय को स:प सकते हw, िज>हA -मण संघ
/वारा अनुमोGदत Lकया गया हो |
c) कA z6य स4म"त /वारा आतंZरक (ज€रत पड़ने पर बाहर6 भी) 4शtक
क2 पहचान और "नयुित क2 जानी चाGहए | यह 4शtक "नधा#Zरत
साम}ी के अनुसार 4शtण दान करAगे |
उपरो8त आवWयकताओं को !यान मh रखते हुए न न कार के 1श2ण
मॉडयुल बनाये जा सकते हs | उनके ायोिजत लाभ भी यहाँ ,दए गए हs:
a) मूलभूत साधू-सा,वी द6tा 4शtण (Core Sadhu-Sadhavi Diksha
training): वतमान मh द)2ा के पूव साधू-साि!वय }वारा द)2ा;थय को
एक तय अव;ध के अंतगत 1श2ण ,दया जाता है, 9कYतु यह 9कसी
नधाaरत ाeप मh नह)ं होता है| यह कारण है 9क कड़े 1श2ण और
गहराई से दान क7 गयी 1श2ा के बावजूद भी, तंi के भीतर ह) द)2ा लेने
क7 'व;ध मh असमानताएं पायी गयी हs| 1श2ण को सु वाह) बनाने और
एकeपी 1श2ण सामpी के अभाव से जYमी असमानताओं को 1मटाने के
1लए संघ को कh y)य तर पर एक मूलभूत साधू-साि!व 1श2ण काय¥म
को शी€ …पिYवत करना चा,हए | इस 1श2ण काय¥म के अंतगत
द)2ाथV मूल धा1मक और सैधािYतक 1श2ा ाnत कर सकh गे | इस
1श2ण काय¥म मh कु छ हद तक लचीलापन भी होना चा,हए ता9क साधू-
साि!वय के नजी अनुभव और lान को भी समा,हत 9कया जा सके |
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इस मूलभूत साधू-सा,वी द6tा 4शtण (Core Sadhu-Sadhavi Diksha
training) क2 काय# णाल6 "न+न4लखीत पI"त नुसार काया#ि>वत क2 जा
सकती है |
• #मण संघ }वारा इस े नंग का Sylabus तय कर लेना चा,हए | उसक7
9कताब एवं training modul तैयार करके एक training kit बनाना
चा,हए |
• यह training kit guidelines के साथ सभी साधू-सि!वओंको 'वतaरत
करना चा,हए | िजसका उपयोग कर 1श2ुओं को एकeपी 1श2ा दान
कर सकh |
• आज िजस तरह साधू-साि!व अपने 1श य को द)2ा के पहले training देते
है उसी तरह यहासे आगे भी वो अपने 1श य को खुदह) training दhगे |
ले9कन यह training, training kit के guidelines से ,दया जायेगा |
• इस training kit क7 मदद से साधू-सा!वी द)2ा के 1लए 1श2ण देते
समय नधाaरत मापदंड के अनुसार संपूण और संर;चत 1श2ा दे सकh गे |
• इस काय¥म के }वारा येक द)2ाथV क7 नजी 2मता, समझ एवं
इvछाशि8त का भी आंकलन 9कया जा सके गा | इससे #मण संघ को उस
kयि8त क7 2मताओं का सह) उपयोग संघ के कायm मh करने मh मदद
1मलेगी |
b) नए सद य हेतू -मण संघ का अ4भ व>यास 4शtण (Shraman
Sangh Orientation training for new members):#मण संघ के
सभी सद य }वारा एक समान आचार सं,हता का अनुपालन 9कया जाना
आवWयक है और इसके 1लए येक सद य को संघ के Dि टकोण,
'वचार , 1सqांत , कायशैल) और लgय से भल)भां त पaर;चत होना
आवWयक है | यह 1श2ण काय¥म सभी नए सद य को उपरो8त बात
से पaर;चत करने के साथ ह) सभी सद य को समान उjेWWय से बांधने
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का काय करेगा | इस काय¥म क7 अव;ध छः मह)न क7 हो सकती है
और इसे मुzय 1श2ण कh y से 1श•2त 1श2क }वारा ह) चलाया जाना
चा,हए |
अ4भ व>यास 4शtण से "न+न लाभ ह गे:
• इससे संघ के सभी सद य के इरादे और काय संग,ठत ह गे और एकह)
लgय पर के िYyत ग त'व;धयाँ भी ह गी |
• इससे मतभेद और अलगाव के मामले भी कम हो सकh गे |
उपरो8त दोन (a) तथा (b) 1श2ण ाnत करने के उपरांत ह) 1श2ु को
द)2ा दान क7 जाएगी |
c) मौजूदा साधू-साि,वय का -मण संघ अ4भ व>यास 4शtण
(Shraman Sangh Orientation training for existing
Sadhu/Sadhavis):#मण संघ }वारा लघु अव;ध के kयापक
अ1भ'वYयास 1श2ण काय¥म, 1श•2त 1श2क }वारा देशभर मh मौजूद
साधू-साि!वय के समूह के 1लए भी बनाये जाने चा,हए | इससे साधू-
साि!वय के अ;धका;धक समूह #मण संघ के मूल Dि टकोण और 1सqांत
से पaर;चत हो सकh गे |
d) वषयक 4शtण (Subject trainings):जैन धम से स बं;धत
'व1भYन 'वषय पर संघ क7 कh y)य स1म त और जुड़े हुए साधू-साि!वय
को अपनी वीणताके आधार पर 1भYन कार के 1श2ण काय¥म तैयार
करने चा,हए | उदहारण के तौर पर:!यान 'व}या पर 1श2ण काय¥म,
जैन बालक/बा1लकाओं के 1लए सं कार 1श2ा एवं जैन धम के आधारभूत
1सqांत जैसे 9क अ,हंसा, अपaरpह और अनेकावाद पर 'वषयगत 1श2ण,
िजसका लाभ सामाYय जैन नागaरक भी ले सकh | इसके }वारा जै नय मh
समता, अ,हंसा, शां त, पशु सुर2ा, 1श2ा एवं वा ¬य के मह व पर
जागeकता उ पYन क7 जा सके गी |
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इन वशेष 4शtण काय# म से यह लाभ ह गे:
• गंभीर सामािजक, शै2Sणक और मानवीय मसल पर कु शल साधू-सा!वी
सामाYय जन को संबो;धत कर सकh गे |
• साधू-साि!वय के lान और अनुभव का उ;चत लाभ और सहयोग #मण
संघ के Dि टकोण और 1सqांत के चार हेतू 1मल सके गा |
e) साधक-सा[धका / चारक 4शtण (Training for sadhak-sadhika
/ Pracharak): संघ के कh y)य तर पर साधक-सा;धका / चारक के
1लए एक 1श2ण काय¥म बनाया जाना चा,हए | यह 1श2ण उYहh
मुzय के Yy के मा!यम से ,दया जाना चा,हए, िजससे वे संघ के
Dि टकोण एवं लgय से पaर;चत होकर अपने उ;चत और नधाaरत
क तkय का पालन सह) ढंग से कर सकh | इस 1श2ण कायकरण से
साधक-सा;धका / चारको क7 कायशैल), अपे2ाओं एवं कतkय मh
एकeपता बनी रहेगी | साथ ह) वे पूण पारद1शता से अपने कतkय का
नवाह कर सकh गे |
साधक-सा;धका / चारक इस कड़ी का नमाण होने के बाद एवं इनक7
समाचार) को अं तम eप देने के बाद यह साधक-सा;धका / चारक 1श2ण
(Training for sadhak-sadhika / Pracharak) पा¯य¥म तैयार 9कया
जाना चा,हए |
***
19
-मण संघ के बल6करण मे साि,वय क2 नार6 शती
को बलवान करने Lक नई काय#योजना
वतमान मh #मण संघ १३०० साधू-साि!वय का संघठन है, िजसक7 कh y)य
स1म त मh आचाय, युवाचाय, उपा!याय, वतक से¥े टर)ज और वा त नयां हs|
संघ मh 900 साि!वयां (लगभग 70%) एवं ४०० साधु (30%) हs | एक
kयवि थत और पूव- नधाaरत ढांचे के अंतगत यह 1300 साधू-साि!वय का
समूह एक ह) तरह के दा य व का नवाह कर रहे हs |
द)घ eप मh, हमारे देश मh म,हलाओं को रा नमाण का मुख ,ह सा बनाने
हेतू ो सा,हत 9कया जा रहा है | इसके बावजूद कई काय2ेi ऐसे हs जहाँ
म,हलाओं क7 उपि थ त माi 15% से अ;धक नह)ं है | इसके 'वपर)त #मण
संघ मh 70% साि!वयां हs जो संघ के 1लये सश8त eप से कायशील हs | इस
च9कत करने वाल) संzया के अलावा यह साि!वयां स9¥य उN क7 होने के
साथ ह) सु1श•2त और सुयोuय भी हs | संघ के 1लए यह अ त आवWयक है
9क वह इन साि!वय क7 शि8त और साम¬य का उपयोग सह) ,दशा मh करते
हुए संघ क7 ग त'व;धय मh उYहh ल•2त eप से कायािYवत करh | #मण संघ
ने जैन धम के ,हत मh अभूतपूव काय स पा,दत 9कये हs और संघ को चा,हए
क7 वह इस गामी झुकाव का पूरा पूरा लाभ उठाए, तथा ऐसा एक
Mechanizum तै²यार करे जो संघ के नेटवक मh ये काय करना स भव
करेगा।
यह तभी संभव है जब इन 900 साि!वय के गुट के समथन मh समूह मh से
एक सुचाe चालन रचना का गठन 9कया जाये | वतमान ग त'व;ध संचालन
मh ह) एक ऐसा पयवे2क एवं सहायक तंi समा,हत होना चा,हए जो साि!वय
के समूह का स2मीकरण भी करता रहे | बेहतर काय2मता हेतू संघ क7
वतमान संरचना मh कु छ पaरवतन अ नवाय हs |
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इस वषय पर "न+न4लNखत सुझाव :
1. #मण संघ के सा!वी वग को एक 'वशेष दजा देकर, #मण संघ के
अYतगत उनके 1लए एक 'वशेष काय णाल) का नमाण करना
2. आचाय }वारा, इस 900 साि!वय के समूह के 1लए, पाँच वष क7 अव;ध
के 1लए एक सा!वी मुखा क7 नयुि8त करना
3. सा!वी मुखा को, न न1लSखत 'वषय पर काय करने के 1लए उ;चत
अ;धकार दान करना
4. सा!वी मुखा को अपना कतkय नभाने तथा उसे ,दए गए सु निWचत
उjेWWय को पूरा करने के 1लए 'व1श ट मागदशक सूचनाएं देना
5. संघ क7 आचार सं,हता का पालन न करने पर जो मुख सम याएं आ
सकती हs उYहh पaरभा'षत करना और उYहh आचाय तक पहुँचाना और
जो छोट) सम याएं हs उYहh सा!वी मुखा के तर पर नपटाना
6. हर पाँच वष क7 अवधी के 1लए सा!वी समूह ने कौन से 'वशेष ोpाम
पर काम करना है, इसका नणय करना और इन काय¥म क7 पूतV
करने का उ तरदा य व सा!वी मुखा को स³प देना
सा,वी मुखा क2 भू4मका और दा"य व इस कार ह गे:
I. सभी साि!वय के 1लए पयवे2क एवं सहायक क7 भू1मका का नवाह
करना |
II. सभी 900 साि!वय का सवˆ2ण करके उYहh उN, 1श2ा, ,दलच पी और
अYय मापदंड के आधार पर रेखािYवत करना; ता9क उYहh उ;चत सा!वी
संसाधन समूह (Sadhavi Resource Groups) के दा य व स³पे जा सकh |
21
III. उन मह वपूण 'वषय क7 पहचान करना जहाँ सा!वी संसाधन समूह
(Sadhavi Resource Groups) पूव नधाaरत लgय स,हत मह वपूण
योगदान दे सकते हs| हर पांच वषm मh इन 'वषय क7 समी2ा क7 जाए
और उनमh कटौती या बढ़ौiी करने क7 गुंजाईश हो|
IV. सवˆ2ण के }वारा रेखािYवत साि!वय को उ;चत संसाधन समूह मh
थान दान कर समूह को स9¥य करना और समूह के सद य को हर
पांच वष के अंतराल पर बदलना |
V. येक सा!वी संसाधन समूह (Sadhavi Resource Groups) के 1लए एक
मुख क7 नयुि8त करना िजसका कायकाल पांच वषm का होगा|
VI. संघ क7 कh y)य स1म त को निWचत समय एवं ाeप मh aरपोट दान
करना|
VII. एक बाहर) सलाहकार स1म त (external advisory council) क7 नयुि8त
करना (वह म,हला/पु…ष हो सकते हs) जो गंभीर 'वषय पर सह) सलाह
दे सकh |
VIII. सा!वी संसाधन समूह क7 सुचा…ता बनाये रखने के 1लए कh y)य स1म त
से परामश लेना|
सा,वी संसाधन समूह (Sadhavi Resource Groups) क2 मुख सा,वी सGहत
थापना के "न+न4लNखत उkेPय और काय#tे?, हो सकते हw: इन वषयोमे
बदलाव Lकये जा सकते है|
I. ,यान साधना : !यान साधना इस 'वषय पर दुनीया मh काफ7 संशोधन
चल रहे है | इस सद) का यह मह वपूण 'वषय माना जा सकता है |
हमारे वतमान आचाय डॉ 1शवमु नजी इनका इस 'वषय पर काफ7 गहरा
और असामाYय ;चंतन है | इस !यान साधना को उYह ने अपने िजंदगी
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के साथ जोड़कर एक नया मुकाम हा1सल 9कया है | अब आवWयकता है
इस !यान साधना को एक mission के eप मh खड़ा करके इस देश मh
एक नयी Revolution ला सके | इस 1लए एक 'व तृत project
report बनाकर उसके action plan को नधाaरत कर इस 'वषय को
देश और 'वWव मh अलग D ट) से पेश करना | इस mission को आगे
बढ़ने के 1लए िजन साि!वय क7 ,दलच पी है ऐसे साि!वय के समूह को
इसमh जोड़ा जा सकता है |
II. सं कार 4श वर (Sanskar Shibirs): जैन समुदाय के बvचे अपने धम से
दूर होते जा रहे ,दखायी दे रहे हs| थानक मh उनक7 उपि थ त लगातार
कम हो रह) है, जो जैन समुदाय के 1लए एक गहर) ;चYता का 'वषय
है| इन बvच और युवाओं को जैन धम के 1सqांत और त वlान क7
ओर आक'षत करने तथा उYहh जैन दशनशा i मh मान1सक आधार
1मलने हेतू सं कार 1श'वर आयोिजत 9कये जाने चा,हए| यह 1श'वर नई
पीढ़) को !यान मh रखकर मैiीपूण और सरल ाeप मh आयोिजत 9कया
जाने चा,हए| इन 1श'वर मh उvच और नई तकनीक के साथ क7 अंpेजी
भाषा का भी योग 9कया जा सकता है िजससे नई पीढ़) के साथ संवाद
था'पत हो सके |
III. आदश# चातुमा#स (Ideal Chaturmas): कु छ वष पूव भारतीय जैन संगठन
(बीजेएस) }वारा आदश चातुमास क7 संक{पना, ¶डजाईन एवं आयोजन
वधमान थानकवासी संघ, 1शवाजीनगर, पुणे मh 9कया गया था | यह
आयोजन महासती ी तसुधाजी के मागदशन मh हुआ था | इस चातुमास
क7 खा1सयत यह थी क7 इसके आयोजन मh येक आयु के लोग क7
e;च को !यान मh रखा गया था और यह) इसक7 सफलता का कारण
बना | इसपर एक aरपोट और द तावेज भी तैयार क7 गयी िजससे
भ'व य मh ेरणा 1ल जा सके | त पWचात जलगाँव मh भी इसी कारका
चातुमास बीजेएस }वारा आयोिजत 9कया गया था| बीजेएस }वारा तैयार
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क7 गयी aरपोट का अ!ययन कर देशभर के अYय थानक संघ भी ऐसे
10 - 20 पायलट चातुमास का आयोजन कर सकते हs | ऐसे आयोजन
अवWय होने चा,हए और बीजेएस सदैव इस कार के काय¥म को
अनेक थानक मh करने के 1लए सहायता दान करने हेतू त पर है |
a. युव"तय का सtमीकरण (Empowerment of girls): अंतरजातीय 'ववाह
के बढ़ते हुए मामले जैन समुदाय मh सामने आ रहे हs | युवा लड़9कय
के अपने पaरवार के साथ मतभेद भी बढ़ रहे हs | आज के समय मh
एक ऐसे सुjृढ ढ़ मंच क7 आवWयकता है जो युव तय को बाहर) दु नया
क7 सvचाई बताते हुए उYहh अपनी भावनाएं kय8त करने का मौका भी
दे | इससे वह अपने पaरवार और समाज को एक नए और सुलझे हुए
नजaरये से देख सकती हs | अतः जैन समुदाय क7 युव तय के 1लए
'व1भYन थान पर युव तय का स2मीकरण काय¥म आयोिजत 9कया
जाना चा,हए |
b. मGहला संगठनो को एकजुट करना (Mobilizing Mahila Sangathans):
आज 'व1भYन थान पर अनेक जैन म,हला संगठन मौजूद हs |समाज
के 1लए यह अ यंत ,हतकार) होगा य,द इन सभी समूह को एक साथ
जोड़ ,दया जाये और एक समान उjेWय से इYहh कायािYवत 9कया जाये
| इस तरह इनके }वारा 9कये कायm से अ;धका;धक लाभ होगा | इस
तरह के संगठन क7 पहचान कर उYहh आपस मh जोड़ना ज…र) है, ता9क
गंभीर और आवWयक मसल पर वे एकजुट होकर समाज क{याण के
काय कर सकh और बेहतर नतीजे ाnत ह |
c. सा,वी सहायता एवं 4शकायत "नवारण को ठ (Sadhavi Support and
Grievance Redressal Cell)- यह 900 साि!वय का समूह सुचाe और
सुखद eप से पaरचा1लत करने हेतू इनक7 सम याओं और अYय मसल
का तुरंत नराकरण करना आवWयक है | कायशैल), सुर2ा, 1श2ा,
शोषण या अYय म,हला-के िYyत सम याएँ कभी भी उ पYन हो सकती
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हs | समय पर इनका नराकरण हो इसके 1लए एक सा,वी सहायता एवं
4शकायत "नवारण को ठ बनाया जाना चाGहए | इस कार सभी
साि!वयां अपने-अपने 2ेi मh निWचYत होकर बेहतर)न तर)के से काय
कर सकh गी | सा!वी मुख को छोटे मसल पर नणय लेने का अ;धकार
ाnत होने चा,हए एवं गंभीर सम याओं के 1लए वे कh ,yय स1म त क7
मदद ले सकती हs |
यह सभी 'वषय 1सफ उदाहरण के तौरपर ,दए गए है | इन 'वषयोमh से कु छ
कम 9कए जा सकते है तथा कु छ बढ़ाये जा सकते है | हर ५ वष बाद
आवशकता नुसार 'वषय मh बदल 9कया जा सकता है |
***
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साधक-सा[धका / चारक इस नई कॅ टेगर6
का "नमा#ण करना
सन १९५० के दशक मh थानकवासी समाज के 'व1भYन सं दाय के साधू-
साि!वय ने 1मलकर एक छiछाया के अंतगत आने क7 इvछा kय8त क7 | इस
'वचार मंथन के मा!यम से थानकवासी जैन समाज क7 एक भkय सं था का
नमाण हुआ | जो #मण संघ के eप मh आज भी कायरत है | 'पछले छ:
दशक मh #मण संघ के अंतगत हजारो साधू-साि!वया पुरे देशभर मh जैन
धमका चार और सार एवं जैन 1सqाYतोको देशभर मh फै लाने का काम बड़े
जोश और उमंग से कर रहे है |
अगर हम 'पछले ४-५ दशक का 'वचार करh, तो कई भावी साधू-साि!वया
#मण संघ छोड़कर अYय 'वचारधारा को जाकर 1मले है | इस 'वषयपर साधू
स मलेन मh गहरा ;चंतन होगा | आज के #मण संघ मh मौजूदा १३०० साधू-
साि!वय को देखते है तो हर एक kयि8त स2म, 'वजनर) व् कतु ववान है |
ले9कन अपने अपने 'वचारधाराओं एवं माYयताओं मh थोडेबहूत मतभेद एवं
मनभेद होने क7 बाते सामने आती है | खासकर 'पछले ३ दशक से देश मh
आमूलाp बदलाव हो चुके है | टे8नोलॉजी सामने आयी है, दूरदशन के इकलौते
चैनल के बजाय २०० से अ;धक ट).वी. चैनेल माकˆ ट मh उपल•ध है |
क यु नके शनके मा!यम मh बहुतह) बदलाव हो चुके है | टे8नोलॉजी के साथ
साथ मोबाईल और सोशल 1म¶डया अपना भाव तेजीसे डाल रह) है | इन
सार) बदलती पaरि थ तय को सामने देखकर साधू-साि!व भी भा'वत हो रहे
है | बहुत सारे साधू-साि!वयां बहुतह) कठोर नयम का सौ- तशत पालन करते
है, आज के ज़माने मh यह बड़ी बात है | ले9कन कु छ साधू-साि!वयां वाहन,
टे8नोलॉजी, मोबाईल, फे सबुक एवं सोशल 1म¶डया का भी इ तेमाल कर रहे है
और करना चाहते है | इस1लए यह साधू स मलेन इस Dि टकोण से मह वपूण
है, क7 #मण संघ क7 ,दशा 8या होनी चा,हए। एक ओर कड़े नयम का पालन
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होने क7 मांग उभरकर आयी है और कड़े नयम का पालन न करनेवाले
kयि8तओंपर कारवाई करने क7 मांग भी सामने आती है | तो दूसर) तरफ
वाहन, टे8नोलॉजी, मोबाईल, एवं सोशल 1म¶डया इसका उपयोग करने मh कोई
हज नह)ं, ऐसा कहनेवाले साधू-साि!वय क7 संzया भी बढ़ रह) है | यह साधू
स मलेन इस D ट) से पूण जैन समाज के 1लए ट न¸ग पॉइंट 1सq हो सकता
है | नणय 8या होने चा,हए इसपर सभी साधू-साि!वय मh काफ7 उ सुकता है
| इस सYदभ मh कु छ भी नणय 1लया गया तो #मण संघ मh दो अलग अलग
'वचारधारा के pुप होने क7 स भावना है | उदा. बहुत कड़े नयम 9कए गये तो
िजनको इन नयम मh 1श;थलता चा,हए वो लोग #मण संघ से नाराज ह गे
एवं इन नयम मh 1श;थलता द) तो जो लोग कड़े नयम करना चाहते है वह
लोग #मण संघ से नाराज होने क7 आशंका है |
इस बड़ी सम या को लेकर हम कु छ नया सुझाव देना चाहते है :
सुझाव :
१. जैन समाज क7 नीव यागपर रची गई है | #मण संघ के साधू-साि!व
के 1लए जो समाचार) १९८७ के पूना स मेलन मh वीकृ त क7 गई है,
उसमh माइक, पंखे जैसी छोट) छोट) बातh छोड़ अYय 9कसी मुzय त व
मh बदल करनेक7 आवWयकता नह)ं है ऐसा हमh लगता है | ले9कन जो
भी समाचार) तय होगी उसका तंतोतंत पालन होना और उस D ट) से
कड़े कदम उठाना यह नतांत आवWयक है |
सुझाव के लाभ :
जैन समाज यागपर खड़ा है | यह सभी साधू-साि!वया अपने घर, पaरवार,
स पि त यागकर द)2ा लेते है | आज के ज़माने मh इस कार याग
करनेवाले लोग क7 संzया बहुतह) कम होती जा रह) है | इस कार के
aरसोसˆस को देश के 1लए ह) नह)ं बि{क पुरे 'वWव के 1लए मह वपूण माने
जाने चा,हए | यह हमारे समाज का सबसे बड़ा Asset है | इसक7 तुलना
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धरती के 9कसी अYय चीज से नह)ं क7 जा सकती | यह 8वािYटट) से नह)ं
8वा1लट) से सामने आना चा,हए |
सुझाव के नुकसान :
साधू-साि!वय मh कु छ लोग ऐसे ह गे क7 िजनको लगता है क7 वाहन
टे8नोलॉजी, मोबाईल, एवं सोशल 1म¶डया के मा!यम से हम अपने
पोटेिYशअल को अvछº तरह से इ तेमाल कर सकते हs, समाज और देश का
बड़ा काम कर सकते हs | कम समय मh अ;धक काम कर सकते हs| इस
मा!यम से समाज व देश बदल सकते हs | समाज को नई ऊँ चाई तक ले जा
सकते हs, जैन समाज के 1सqाYत का चार व सार जोर से कर सकते है |
इस कार क7 माYयता के साधू-साि!व भी इस समूह मh हो सकते है | इस1लए
बहुतह) कड़े नयम 9कये तो इस कार के साधू-साि!वयां #मण संघ से नाराज
होने क7 संभावना को नकारा नह)ं जा सकता |
इस साधू स मलेन मh कोई भी एक नणय 1लया तो दूसरा pुप नाराज होकर
दूसरा रा ता ढूंढने क7 को1शश करेगा। आज यह सार) शि8तयाँ #मण संघ के
एक छi के नीचे काम कर रह) हs, इनमh से कु छ नाराज ह गे और ऐसा न हो
इस1लए इन दोन माYयताओं को #मण संघ क7 »iछाया मh काय करने का
समान अवसर 1मलना चा,हए, इस1लए हमारे कु छ सुझाव हs, जो नीचे ,दए हुए है |
२. साधक-सा;धका / चारक (अलग नामकरण 9कया जा सकता है) इस
कै टेगर) का नमाण करना | #मण संघ के िजन साधू-साि!वय को ऐसा
लगता है क7, वाहन, टे8नोलॉजी, मोबाईल, एवं सोशल 1म¶डया आ,द
सभी साधन का उपयोग होना चा,हए वे इस कै टेगर) मh अपना योगदान
दhगे | इनके 1लए अलग समाचार) का ावधान होना चा,हए |
28
लाभ :
१. जो साधू-साि!वयां कठोर समाचार) मh नह)ं रहना चाहते है और
ऊपaर न,द ट साधन का उपयोग करना चाहते है ऐसे लोग के 1लए
#मण संघ के तरफ से इस #ेणी क7 नमाण होने क7 वजहसे सु'वधा
ाnत होगी और उYहh #मण संघ छोड़ने क7 ज…रत नह)ं पड़ेगी |
२. जो अभी साधू-सा!वी नह)ं है ले9कन िजनको अपने पaरवार का याग
करके जैन धम के 1सqाYत का चार, सार करना है ऐसे संभाkय
लोग के 1लए कड़ी समाचार) का पालन न करते हुए #मण संघ से जुड़े
रहने के 1लए यह #ेणी वरदान 1सq होगी |
३. आज जैन समाज मh पूण सम'पत एवं वाहन, टे8नोलॉजी, मोबाईल, एवं
सोशल 1म¶डया आ,द सु'वधायु8त चारक का के डर नह)ं है | खास
करके कड़ी समाचार) का पालन करनेवाले साधू-साि!वय को देशभर मh
एक जगह से दूसर) जगह जाने के 1लए काफ7 मुिWकलh आती है | इस
D ट) से ये साधू-साि!वयां य2 उन जगह पर नह)ं पहुँच पाती हs।
उनके 'वचार समाज तक पहुँचाने के 1लए यह चारक #ेणी उपयु8त हो
सकती है | S¼Wचन धम व तेरापंथ सं दाय मh इस कार क7 णाल)
काफ7 लाभदायक सा_बत हुई है |
हमार) यह ाथना है क7 इस नई 9¥या का उदय इस साधू स मलेन मh होना
आवWयक है | इससे हर कारक7 'वचारधारा रहनेवाल) साधू-साि!वय को
#मण संघ से जुड़े रहने का मौका 1मलेगा एवं #मण संघ मजबूत होगा |
इस णाल) को शुe करते समय conference के पदा;धकाaरयो को भी
'वWवास मh लेना, उनके साथ इस कड़ी क7 समाचार) तय करना, एवं उनको
लगनेवाले वाहन, उनका mentainance, मोबाइल, computers आ,द
technology साधन, मानवसंसाधन एवं रोज के लगनेवाले खच इन सभी
_बYदुओंपर गहराई से 'वचार 'वमश कर योजना तैयार करनी चा,हए |
29
आदश# चातुमा#स - एक नया Xि टकोण
देशभर के गांव-गांव मh जैन समाज के हजारो थानक बने हुए है | समाज ने
इन थानक का काफ7 उपयोग भी 9कया है | जहाँ चातुमास नह)ं होता वहाँ
पुरे सालभर इन थानक का पूरा उपयोग नह)ं 9कया जाता | जहाँ चातुमास
होते है वहाँ ४ माह छोड़कर अYय ८ माह मh भी इसका पूरा उपयोग नह)ं 9कया
जाता | 'पछले कु छ वषm मh छोटे बvचे और युवा वग थानक से काफ7 दूर
जाते हुए ,दखाई दे रहे है | इसके कई कारण है, इसका अथ यह नह)ं क7 धम
के त उनका …झान नह)ं है, बि{क वहाँ चलनेवाल) ग त'व;धय मे
समयानुसार बदलाव क7 आवWयकता है | बvच को एवं युवाओंको धम के साथ
जोड़े रखना यह आज सबके सामने बड़ी चुनौती है |
हम इस 'वषयपर आदश चातुमास के मा!यम से एक नया Dि टकोण लाना
चाहते है | िजससे थानक का योuय उपयोग भी हो और बvचे और युवा धम
थानक से जुड़े रहे | यह एक काफ7 चुनौतीभरा काम है जो कु छ वष पहले
पूना के 1शवाजीनगर थानक मh योग के तौर पर भारतीय जैन संघटन
(बीजेएस) के मा!यम से लागु 9कया गया था | यह सारा ोpाम वेल
डॉ8युमhटेड है | हमार) यह अपे2ा है क7 भारतवष मh १०-२० बड़े शहर के
थानक मh इसको एक पायलट क7 तरह समाज के सामने पेश 9कया जाये |
सुचाe eपसे इसे डॉ8युमhट 9कया जाये और 9फर कु छ वष बाद अYय जगहपर
लागु करने का सोचा जा सकता है | भारतीय जैन संघठनने जो इस ोजे8ट
को कामयाब 9कया है उनक7 इस 'वषय मh पूर) मदद लेकर इस आदश
चातुमास क7 संक{पना को कायािYवत 9कया जा सकता है |
30
1शवाजीनगर जैन थानक मh आयोिजत चातुमास क7 कु छ झल9कया
न न1लSखत श•द मे द) गई है :
Holistic Development of Family (एचडीएफ)
संकeपना
'वWवभर के जैनधमVय, सं कृ ती, पर पराएं और लोकोपकार) काय से समृq
तथा उ}यमशील समुदाय के eप मh जाने जाते हs।
जैन समुदाय ने सारे भारतवष मh और सभी स दाय मh धा1मक,
आ!याि मक तथा सामािजक उपयोग के हेतु थानक / भवन जैसे धा1मक
सं थापन का नमाण 9कया है। हमारे जैन साधू / सा!वी इYह) सं थापन के
मा!यम से समाज मh जैन सं कृ ती, नै तकता और मू{य अYत न'व ट करने
के 1लए अथक पaर#म करते आए हs।
9कYतु गत कु छ समय से धा1मक थल पर होनेवाले काय¥म के #ोता /
दशक गण के Dि टकोण मh हम बदलाव देख रहे हs। हमारे आज के समाज मh
कु छ अलगाव-सा आ गया है। हमार) नई 'पढ़) 'व1भYन कारण से इन
काय¥म क7 ओर आक'षत नह)ं हो रह)। हमारे समाज के बल थान को एक-
दूसरे से जोड़ने तथा उYहh और बढ़ावा देने के 1लए, हर जैन पaरवार एक
'वशाल नेटवक का ,ह सा होने क7 तथा वैिWवक तर पर पहुँचने क7
आवWयकता है।
समुदायक7 जeरतh, सहभाग कम होने के कारण तथा लोग को सहभागी होने
के 1लए कै से ेaरत 9कया जाए, इन बात पर चचा करने के 1लए भारतीय जैन
संगठन ने एक 'वWलेषणा मक अ½यास 9कया, िजसमh थमतः पूरे समाज क7
एक बैठक ल) गई और उसके पWचात 'व1श ट आयु - गुट के अनुसार अलग
- अलग सभाएं ल) गई।
31
इस 'वWलेषण मh आज के जैन थानक से अYय अपे2ाएं रखते हs, ऐसा एक
मुjा सामने आया। ये अपे2ाएं ऐसी हs -
1. नेटव9क¸ ग (लोग का मेलजोल)
2. ि कल डेवलपमेYट (कौशल 'वकास)
3. नॉलेज अपpेडेशन (lान का उYनतीकरण)
4. जeरत पर आधाaरत आयु - गुट अनुसार काय¥म
5. ऐसी एक जगह जहाँ पaरवार के सभी सद य अपने - अपने समान
अYय जैन के साथ जुड़ सकh तथा एक बलशाल) जैन समुदाय का
नमाण कर सकh
यह ोजे8ट अ½यासपूण, टै8नोलॉजी पर आधाaरत, लेSखत (डॉ8युमhटेड) तथा
'व तार2म ( के लेबल) होगा और इसमh पaरवार के सभी सद य के 1लए
kयाzयान / गो ठº / वकशॉप / 1श2ा वग के eप मh काय¥म ह गे, जो
'व1भYन थान पर चलाए जा सकh गे।
काय# णाल6 (Methodology)
हो1लि टक डेवलपमेYट ऑफ फै 1मल) ोजे8ट मh न न1लSखत मह वपूण 2ेi
मh सभी आयु - गुट के 1लए काय¥म सि म1लत हs -
1. 4ल˜ल ए rलोरस# (4 - 13 वष#) - 1श2ा ािnत क7 आयु मh
एि8ट'वट)ज् का जोर बु'q, नै तक तथा मू{य 1श2ा, को / ए8 ा
कaर8युलर एि8ट'वट)ज्, शार)aरक तYदु… ती आद) बढ़ाने पर होता है
2. वाय - जैनरेशन (14 - 24 वष#) - िजसके 1लए एिnट¿यूड एसेसमेYट,
सॉÀट ि क{स का 'वकास, कै aरअर मागदशन, लड़9कय का
स2मीकरण, 'ववाह आद) बात पर जोर होता है
3. युवा oयावसा"यक (25 - 40 वष#, पुMष) - यह जीवन का ऐसा मोड़ है,
जहाँ 'वकास क7 तीÁ इvछा को साथी जैन बYधुओं के 'वशाल नेटवक
32
का आधार 1मलता है, जहाँ नजी तथा kयावसा यक सफलता पाने हेतु
'वचार तथा क{पनाओं का आदान - दान 9कया जा सकता है, उvच
1श2ा ाnत क7 जा सकती है और अvछº कायपq तय का lान बाँटा
जा सकता है
4. ल6Ÿडंग लेडीज् (25 - 40 वष#, ि ?यां) - घर चलाने के सृजनशील
कौशल मh बढ़ौiी करना, जैसे खाना पकाना, घर सजाना, 1शशु संगोपन
आद) बात मh 'व1भYन 'वषय के 'वशेषl के kयाzयान का आयोजन
5. पZरवार मुख (40 से अ[धक वष#) - सुखी पaरवार बYध, kयवसाय को
मजबूती, और पर काम स³पना और नणय लेना, गव के साथ नवृ ती,
वा ¬य स बYधी जानकार) क7 सम याओं का समाधान
महाराज साहब के साथ परामश करके काय¥म का एक सुचाe कै लेYडर
तै²यार 9कया गया है, िजसमh उनके }वारा नयोिजत चातुमास क7 9¥याएं
ाथ1मकता से सि म1लत क7 गई हs और शेष समय मh जैन समुदाय क7
जeरतh पूर) करनेवाल) अYय 9¥याएं सि म1लत क7 गई हs। यह कै लेYडर सभी
जैन पaरवार को जानकार) के हेतु तथा ऐसे काय¥म मh सहभागी होने को
ेaरत करने हेतु समय से पहले भेजा गया है।
िजन थान पर थानक / भवन जैसे धा1मक सं थापन का उपयोग जैन
समुदाय / समाज के 1मलने के 1लए चातुमास के अलावा स पूण वष मh 9कया
जा सकता है, वहाँ ये काय¥म अपने - अपने पूरे समय तक चलते हs।
लाभ
1. पaरवार के सभी सद य मh थानक पर आने क7 सं कृ ती का नमाण
2. धम के त लगाव बढ़ाना
3. एक मजबूत नेटवकवाले समाज का ,ह सा बनने का अवसर
4. समुदा यक गुट का नमाण
5. सामािजक सुर2ा
33
6. lान मh वृ'q
7. चुनौ तय का सामना करने के 1लए नये कौशल 'वक1सत करने के
अवसर
8. वकशॉप तथा 8लासेस के 1लए दर मh कमी
9. पaरवार तथा समाज मh जो गैप हs उYहh पूरा करना
10. समुदाय मh वा ¬य क7 अvछº जानकार)
11. समुदाय के सभी उप - गुट को एक होने के 1लए एक nलैटफाम
अ"तZरत सुझाव -
1. 'व}यमान मुख साधू-साि!वय के वचन के 'वषय का एक अलग
कै लेYडर बनाया जाए, िजससे समुदाय मh और अ;धक जानकार)
साaरत क7 जा सकती है और लोग को थानक मh आने को ेaरत
9कया जा सकता है |
2. दैनं,दन वचन के वी¶डयो वेबसाईट, you tube पर अपलोड करने
क7 9¥या शुe क7 जाए ता9क जो लोग वचन के 1लए य2
उपि थत ना रह पाए, उYहh भी इससे लाभ हो सके । इसका बYध
ऐसा हो, िजससे 'वWवभर के हमारे जैन बYधु चातुमास देख सकh , साथ
1मल सकh , साधू-साि!वय के वचन सुन सकh तथा अvछा जीवन
_बताने के बारे मh 'वचार कर सकh |
***
34
35
Contents
Preface...................................................................................37
Sammelan: A call for harnessing Jain principles for nation building .....39
Shraman Sangh: Towards a new generation, new thoughts and new
direction.................................................................................41
Action Plan for Training of Sadhus/Sadhavis ....................................45
Channelizing Woman Power by Creation of Sadhavi wing under Shraman
Sangh .....................................................................................49
Action Plan for Creation of a Selfless, Committed Cadre of
Sadhak/Sadhika/PracharakforShramanSangh.........................................53
Ideal Chaturmas: A New Perspective .............................................57
36
(Strictly for Internal and private circulation only.)
37
Preface
Date: 9th March 2015
To,
Parampujya Acharya Samrat Dr. Shivmuniji. M.S. and to all respected
Sadhus/Sadhavis,
Koti Koti Vandan!
On the occasion of the Sadhu Sammelan organized under the aegis of the All
India Shwetambar Sthanakwasi Jain Conference held at the behest of H’able
Acharya Dr. Shri Shivmuniji M.S and led under the able leadership of
respected Shri Neminath ji Jain, I hereby extend my warmest and deepest
regards to one and all.
It is an earnest desire on behalf of the entire Jain community for the
Shraman Sangh to emerge as a powerful institution prepared to scale much
greater heights. This Sadhu Sammelan -March 2015 will establish itself as a
major milestone for our community as well as our nation. We must ensure
that such a momentous and promising occasion which has arisen after 28
long years must not go waste and should herald the beginning of a very
decisive and fundamental journey to be undertaken in the times to come.
With this intent, I had the privilege to share my ideas and thoughts with
Shri Neminath ji and few other senior office bearers two months back
during my visit to Indore, with a view to strengthening Shraman Sangh in
different ways. In order to take these ideas forward Shri Neminath ji urged
me along with Shri Shantilal ji Kawad, a very senior leader of the Jain
Samaj to offer ourselves in the advisory role for this Sadhu Sammelan. Shri
Shantilal ji Kawad is a very charismatic leader of the Jain Samaj and he
took the pains to visit me in Pune to understand my views in greater depth.
Subsequently we also got the opportunity to exchange our ideas with
Parampujya Acharya Shri Dr. Shivmuniji M.S, few senior Sadhus/Sadhavis
and the office bearers of Shraman Sangh.
38
It was decided that we should offer some fundamental suggestions to
Acharya ji in this regard. Hence this is a humble attempt from my si
put forth my personal views to strengthen the institution of Shraman
Sangh. I neither possess nor claim to possess the capability to offer
‘suggestions’ to somebody of Acharya ji’s stature. Hence I sincerely request
you all to consider these views as a perspective, and as a prerogative and
not in the form of suggestions. The views presented by me are entirely my
own and revolve around several important topics/issues. By no means are
these views to be construed as the final expression of my thought pro
This is simply an attempt to touch upon certain critical aspects. Shri
Shantilal ji Kawad may also have his personal views and perspectives in this
regard. Multiple means can be conceived towards achieving a common end.
These views can also be presented and articulated in different ways by
different people. The decisions taken by H’able Acharya ji based on these
thoughts will be binding on the entire Jain community and will be abided by
everyone with deepest regard and commitment.
Service to Jainism and service to the community is the sole objective behind
this effort. I have absolutely no intent of criticizing or causing hurt to the
sentiments of any Sadhu/Sadhavi and/or office bearer. I have only
attempted to offer my views with a multi dimensional perspective. I would
like to offer my sincere apologies in case my views offend anybody
inadvertently.
Yours obediently,
Shantilal Muttha
It was decided that we should offer some fundamental suggestions to
Acharya ji in this regard. Hence this is a humble attempt from my side to
put forth my personal views to strengthen the institution of Shraman
Sangh. I neither possess nor claim to possess the capability to offer
‘suggestions’ to somebody of Acharya ji’s stature. Hence I sincerely request
a perspective, and as a prerogative and
not in the form of suggestions. The views presented by me are entirely my
own and revolve around several important topics/issues. By no means are
these views to be construed as the final expression of my thought process.
This is simply an attempt to touch upon certain critical aspects. Shri
Shantilal ji Kawad may also have his personal views and perspectives in this
regard. Multiple means can be conceived towards achieving a common end.
ted and articulated in different ways by
different people. The decisions taken by H’able Acharya ji based on these
thoughts will be binding on the entire Jain community and will be abided by
Service to Jainism and service to the community is the sole objective behind
this effort. I have absolutely no intent of criticizing or causing hurt to the
sentiments of any Sadhu/Sadhavi and/or office bearer. I have only
multi dimensional perspective. I would
like to offer my sincere apologies in case my views offend anybody
39
Sammelan: A call for harnessing Jain principles
for nation building
Spreading the message of Jainism
Jainism, one of the oldest religions, prescribes a path of ahimsa and self
control, the means by which its followers can attain liberation. It is a
religion deeply rooted in the cardinal principles of Ahimsa (non violence),
Aparigriha ( non possessiveness) and Anekantavada (non absolutism) as is
evident from the teachings of the Lord Mahavir. Such is the profundity of
these thoughts of Lord Mahavir that Mahatma Gandhi was himself an ardent
practitioner of some of the principles espoused by Lord Mahavir .
The philosophy and principles of Jainism have been eternally relevant for
the furtherance of mankind and nature. They especially find great merit in
today’s’ turbulent times wrecked by hatred, violence, injustice and
intolerance. These principles are increasingly being researched worldwide
and are being acknowledged as the panacea for the disquiet that is looming
large upon the world. As followers of this great religion, we are all blessed
to inherit a rich tradition of principles and beliefs that have the power to
take each one of us on the path of spiritual purity and enlightenment. This
legacy that has been bequeathed on us is not without good reason. This
inheritance comes with a message; a message that we all are the
ambassadors of each of the profound principles which forms the cornerstone
of Jainism and that we must all strive to follow the path suggested by Lord
Mahavir.
It is with this spirit that we must assume the moral responsibility of letting
go of our petty squabbles that can consume us simply because they are a
part of our present and affect our daily existence. If we are to be the true
practitioners of Jain principles we must empower ourselves to think and act
beyond the mundane, think beyond our mutual differences which are
inconsequential in relation to the larger cause of Jainsim. We must
concentrate on ways and means to propagate these principles and infuse the
world at large with their goodness.
Jains, as a community constitute barely 0.5% of the total population of India
and Shraman Sangh is a miniscule part of this minority. However, inspite of
this fact the Jains possess a treasure trove of the most fundamental
40
principles of life which have been passed on from one generation to the
next. This asset created by the devout followers of Jainism, of which the
Shraman Sangh forms an integral part, should be utilized for the society at
large and not be restricted only to the Jain community. The Sangh is an
amalgamation of some of the most powerful thinkers and ambassadors of the
Jain philosophy and it is of utmost importance that their views, their
discourses be brought into the mainstream and be made available to a wider
audience. The contribution of Jains should spread out throughout the socio-
political landscape of the country and in the international circles. The Sangh
must endeavour to make the Jain presence felt, seen and heard more
emphatically from a wide range of media platforms available.
This has to be done with a sense of urgency and in a focused manner.
A possible line of action to this effect is proposed as follows:
a) The Shraman Sangh should constitute a committee of Sadhus and
Sadhavis which should be entrusted with the responsibility of
projecting the work of Jains to the external world.
b) This committee should contribute to articles in the social, political,
philosophical journals, publications and other forms of media which
have a greater penetration and reach.
c) The committee should aim at upgrading the current literature
available, document the Jain legacy, its work and the research
carried out over the years in a presentable format which should then
be showcased to the external world at a variety of forums and
platforms.
d) The committee should appoint few key members to be officially
designated as spokespersons to spread the word on Jainism and the
work of Jain institutions and the community.
These initial but significant steps can go a long way in creating awareness of
this movement and in spreading the message of Lord Mahavir. This effort
shall serve to preserve the identity of the Jains in the whole world. The
contributions of Jains to the world will be more widely and deeply
acknowledged and it will throw open a plethora of opportunities for Jains
and Jain institutions to serve the mankind, looking beyond their own
community. This will truly result in walking along the path prescribed by
Lord Mahavir and enable the Jains to offer themselves to the service of
mankind and humanity in a manner befitting of the followers of Jainism.
***
41
Shraman Sangh: Towards a new generation,
new thoughts and new direction
Suggestions for Strengthening Shraman Sangh
The era of the 1950s witnessed a momentous phenomenon when highly
revered and scholarly Sadhus/Sadhavis belonging to various sects of Jainism
came together to form the Shraman Sangh in 1952. This confluence signified
a united effort to promote the cause of Jainism and spread the message of
love and peace to the world at large through a concerted effort on the part
of Jain monasticism.
Over last 65 years of its existence the Shraman Sangh has stood firm and
undeterred inspite of several upheavals in the past. There have been
instances of differences in ideology and outlook amongst several Sadhus and
Sadhavis, resulting in their dissention from the Sangh. These and several
other undesirable occurrences have threatened to crush and mar the core
fabric of the Sangh. However the Sangh, firmly rooted in a rock solid
foundation of Jain principles has withstood the test of time and has so far
managed to overcome the internal strife that has regularly attempted to
rock the foundation.
Today the Sangh comprises an overwhelming pool of 1300 Sadhus and
Sadhavis all of whom are highly intellectual, competent and are an epitome
of what Jainism stands for. This is indeed a matter of great pride for
Shraman Sangh. Yet, a pervasive undercurrent of contention, disharmony has
been sensed by one and all from time to time which is detrimental to the
fundamental existence of the Sangh. In the light of these disquieting signals,
it is felt that the time has come to contain these overpowering forces
present within each one of us before they assume alarming proportions. The
time has come to urge all the members to owe and swear a much greater
degree of allegiance to the Sangh and its mission, and go forward with an
unwavering faith in the larger cause which the Sangh promotes.
Today we are all standing at a crossroad. The future of the Sangh will largely
be determined by the direction that we all henceforth resolve to venture
into. Hence this sammelan, organized after 28 long years has the potential
to serve as the tipping point for the existence of the Sangh. This Sammelan
is a sincere attempt to bring together the Sadhus and Sadhavis in their
thoughts and action so that a common, unified vision of the Sangh can be
42
put forth and internalized by each one. This is essential to the well being of
the Sangh because unless all members swear allegiance to a common cause
espoused by the Sangh, unless they share common beliefs and speak the
same language, it would be difficult to hold the Sangh together with each
passing day. In order to facilitate this transformation certain sweeping
changes need to be made in the manner in which the Sangh conducts itself.
It is desired that the members be open to these changes for the larger good
of the Sangh, the Jain community and above all for the principles of Jainism.
Against this challenging backdrop certain changes are being proposed in the
functional aspects of the Sangh with the sole intention of strengthening it
from within. These are as follows:
1) A comprehensive vision document should be produced within a
stipulated time of 3-4 months. This document should be jointly prepared
by the Acharya, Yuvacharyas and the Pravartaks after consultations with
two external professionals. This document should incorporate the
following:
a) the philosophy, vision, mission, aims, objectives, guiding principles
of the Sangh
b) roles and responsibilities, tenures for every position held in the
Sangh.
c) the code of conduct for every member of the Sangh
d) the future roadmap for the Sangh with well defined milestones,
short term and long term goals.
e) Guidelines for the conduct of important events core to the Sangh
like Chaturmas and Sadhu Sadhavi Sammelans. The guidelines for
Chaturmas should be created by the office bearers of the Sangh in
consultation with Shravak Sangh and members of the Jain
Conference
f) The grievance redressal system and procedures for the Sangh
2) This vision document should be made accessible to every member of the
Sangh for achieving uniformity in intent and action.
3) The tenure for the Acharya should be decided for 15 years, not
exceeding the age of 70. This is necessary because 15 years is an
optimum time for an individual of that stature to envision, plan and
execute the plan in alignment with the roadmap. The tenure of 15 years
also paves the way for a younger leader for the subsequent term who
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Sadhu sadhavi samaj chintan

  • 1.
  • 2.
  • 3. अनुसूची �वषय पान क्र. प्रस्तावना 2 जैन तत्व� का राष्ट्र �नमार्ण मे उपयोग - साधू सम्मेलन के माध्यम से 4 श्रमण संघ - नई �पढ�, नई सोच, नई �दशा 8 साधू-साध्वी प्र�श�ण हेतू कायर्योजना 14 श्रमण संघ के प्रबल�करण मे सािध्वय�क� नार� शक्ती को बलवान करने �क नई कायर्योजना 19 साधक-सा�धका / प्रचारक इस नई कॅ टेगर� का �नमार्ण करना 25 आदशर् चातुमार्स - एक नया दृिष्टकोण 29 Contents Preface................................................................................. 37 Sammelan: A call for harnessing Jain principles for nation building ..... 39 Shraman Sangh: Towards a new generation, new thoughts and new direction ............................................................................... 41 Action Plan for Training of Sadhus/Sadhavis ................................... 45 Channelizing Woman Power by Creation of Sadhavi wing under Shraman Sangh ................................................................................... 49 Action Plan for Creation of a Selfless, Committed Cadre of Sadhak/Sadhika/PracharakforShramanSangh........................................ 53 Ideal Chaturmas: A New Perspective ............................................ 57 (Strictly for Internal and private circulation only.)
  • 4. 2 तावना ,दनांक : ०९.०३.२०१५ त, परमपूMय आचाय सNाट डॉ. #ी. 1शवमु नजी म.सा. एवं सभी साधू-साि!वय के चरणो मे कोट) कोट) वंदन, आचाय #ी. डॉ. 1शवमुनीजी म.सा. के आदेशानुसार अSखल भारतवषVय Wवेतांबर थानकवासी जैन कॉYफरYस 9क न#ायमे अ!य2 #ी. नेमीनाथजी जैन के नेतृ व मे आयोिजत साधू स मेलन हेतू मेर) हा,दक शुभकामनाए | #मण संघ सुDढ हो और नई उंचाईतक पहुंचे यह पुरे देशभर के जैनीओंक7 भावना है | माच २०१५ का यह साधू स मेलन समाज एवं देश के ल)ये 1मल का प थर सा_बत होगा | २८ साल के बाद आनेवाले इस सुनहरे अवसर का 'वधायक उपयोग करके लेना चा,हये | इस D ट)से दो माह पूव मैने इंदोरे जाकर #ी ने1मनाथजी एवं वaर ठ पदाधीकार)य के साथ साधू स मेलन स2म बनाने हेतू ;चंतन-मनन 9कया | उसपर #ी नेमीनाथजी ने इस ;चंतन को आगे बढाने के ल)ये मुझे एवं जैन समाज के वaर ठ नेता #ी. शांतीलालजी कवाड को इस स मेलन मे मागदशक 9क भू1मका नभानेके आदेश ,दये | #ी. शांतीलालजी कवाड यह जैन समाज के एक भावशाल) नेता है | उYहोने भी पुना मे आकर इस 'वषय पर मेरे ;चंतन को समझने 9क को1शश 9क | त पWयात परमपूMय आचाय #ी. डॉ. 1शवमु नजी म.सा., वaर ठ साधू-साि!व एवं पदा;धकार)ओंके साथ 'वचार 'वमश करनेका हमे मौका 1मला | इस संदभ मे हमने हमारे ;चंतन को आगे बढाकर बुनयाद) सुझाव आचाय#ीजी को देने चा,हये इसपर सहमती हुई | इस1लये इस 'वषयपर सोचकर मेरे नजी
  • 5. 3 'वचार आपक7 सेवा मे े'षत करनेका यास कर रहा हुं | मेरे मे इतनी 2मता न,ह 9क मै आचाय#ीजी को सुझाव दे सकू | इस1लये इसको सुझाव के eप मे न देखकर यह समाज ;चंतन है इस D ट)से देखे | मै जो ;चंतन रख रहा हुं यह मेर) नजी राय है | इसमे मह वपूण 'वषय ,दये हुये है | यह ;चंतन अं तम सुझाव नह) है | इसमे 1सफ मह वपूण _बYदुओको छु ने 9क को1शश 9क है | #ी. शांतीलालजी कवाड इनक7 भी अलग सोच एवं सुझाव हो सकते है | हर लgय को पुरा करने के ल)ये अलग अलग रा ते भी हो सकते है| यह ;चंतन अYय लोग अलग तर)के से भी रख सकते है | इसपर जो भी नणय आचाय#ी लhगे यह पुरे समाज के ल)ये 1शरोधाय होगा और हम सब उसका न ठासे पालन करhगे | इस ;चंतन मे माi और माi धम एवं समाज 9क सेवा यह उjेश है | इसमे 9कसी भी साधू-सा!वी एवं पदा;धकार) 9क अलोचना करनेका त नक भी उjेश न,ह है | इसमे एक kयापक D ट)कोन ,दया हुआ है | अगर मेरे 'वचारो से 9कसी के ,दल को ठेस पहुंची हो तो मै 2मायाचना करता हुं | आपका आlाकार), शांतीलाल मु था
  • 6. 4 जैन त व का रा ! "नमा#ण मे उपयोग - साधू स+मेलन के मा,यम से 'वWव के सबसे ाचीन धमm मh से एक, जैन धम, अ,हंसा और वयं - नयंiण का माग दशाता है, जो उसके अनुचर के 1लए मो2 ािnत का मा!यम बन सकता है। अ,हंसा, अपaरpह और अनेकाYतवाद ये तीन मुख 1सqांत इस धम क7 जड़h हs, जो भगवान महावीर क7 1श2ाओं से प ट होता है। भगवान महावीर के इन 'वचार मh इतनी गहराई है, 9क वयं महा मा गांधीजी भी भगवान महावीर ने बताए हुए कई त व का कड़ा पालन करते थे। जैन धम का त वlान और उसके त व मनु यमाi तथा कृ त क7 गती मh नत उ;चत रहे हs। आज, जब 9क चार ओर घृणा, ,हंसा, अYयाय और अस,ह णुता का वातावरण फै ला हुआ है, ऐसे मh ये त व और त वlान खास कर अ;धक मायने रखते हs। इन त व पर 'वWवभर मh अ;धक से अ;धक aरसच 9कया जा रहा है और 'वWवपर छाये अशािYत के बादलो मh इन त व को सूरज क7 9करण माना जा रहा है। इस महान धम के अनुचर होने के नाते हम सब भाuयशाल) हs। त व तथा #qाओं क7 एक समृq पर परा, िजसमh हम मh से हर एक को आ!याि मक शुqता तथा आ मlान के माग पर ले जाने क7 शि8त हमh 'वरासत मh 1मल) है। हम सभी को भगवान महावीर के बताए माग पर चलने का भरसक यास करना चा,हए। इसी भावना के साथ, हमारे छोटे - बड़े झगड़े, जो हमारे वतमान का एक ,ह सा हs, जो हमारे दैनं,दन अि त व को भा'वत करते हs और जो हमh पूर) तरह से लपेट मh ले सकते हs, उनका याग करने क7 नै तक िज मेदार) हम उठाएं। य,द हमh जैन त व के सvचे उपासक बनना है, तो हमh साधारण चीज़ के परे जा कर सोचने और काय करने क7 शि8त वयं मh जुटानी होगी, हमारे आपसी भेद जो जैन धम के 'वशाल 1सqाYतो के सामने कोई मायने नह)ं रखते, उनके ऊपर उठकर सोचना होगा। इन त व के सार करने और
  • 7. 5 स पूण 'वWव मh उनक7 अvछाई भरने के माग तथा मा!यम पर हमh अपना !यान के िYyत करना आवWयक है। एक समुदाय के eप मh जैनी भारत क7 कु ल जनसंzया के माi 0.5% हs और #मण संघ इस अ{पसंzयक गुट का एक बहुत ह) छोटा ,ह सा है। 9फर भी, जै नय के पास जीवन के मूलभूत त व का खजाना है, जो क7 'पढ़) दर 'पढ़) आगे चलता आया है। #मण संघ िजसका अ'वभाMय अंग है, उस जैन धम के सम'पत अनुचर }वारा न1मत यह पुंजी माi जैन समुदाय ह) नह)ं बि{क समुचे देश के 1लए उपयोग मh लाना आवWयक है। संघ जैन धम के कु छ अ य;धक भावशाल) 'वचारक तथा सारक के एक_iत होने से बना है और उनके 'वचार, उनके वचन मुzय वाह मh लाना और अ;धक से अ;धक लोग तक पहुँचाना अ त आवWयक है। जै नय का योगदान देश के स पूण समाज मh तथा अYतररा )य तर पर भी साaरत होना आवWयक है। जै नय को सुना जाए, देखा जाए और उनका अि त व महसूस 9कया जाए, इसके 1लए संघ ने जैन 1सधाYत का सारमा!यम के 'व1भYन उपल•ध मंच के मा!यम से यास करना आवWयक है। इस बात को शी€ अ यावWयकता के भाव से तथा ल•2त eप मh 9कया जाना आवWयक है। इस ,दशा मh काय करने के 1लए स भाkय कृ तीरेखा कु छ इस तरह क7 हो सकती है - 1. -मण संघ /वारा साधू और साि,वय क2 एक क4मट6 बनायी जाए, जैन त व को देश और दुनीया के सामने, सार म,यम के उपयोग /वारा तुत करने का उ तरदा"य व स:पा जाए | 2. इस क4मट6 /वारा व4भ>न सामािजक, दाश#"नक प?, प@?काएं, काशन, तथा िजनक2 समाज मA सुदूर तक पहुँच है, ऐसे अ>य मा,यम मA लेख 4लखे जाए |
  • 8. 6 3. व/यमान उपलFध साGह य मA अ4भवृIी करने का, जैन वरासत, उसका काय# और गत कई वषK मA Lकए गए अनुस>धान को सुचाM ाMप मA लेNखत करने का, लOय रखA और उसके पPचात ये द तावेज व4भ>न मंच से बाहर6 दु"नया को Gदखाएं | रा !6य, अंतरा# !6य workshops, से4मनास# एवं अ>य मंच का उपयोग कर जैन 4सधा>त को देश और दुनीया के सामने लाया जाए इस X ट6 से क4मट6 क2 थापना | 4. जैन धम#, जैन सं थाओं का तथा समुदाय के काय# के बारे मA जानकार6 साZरत करने के 4लए अ[धकृ त वता के Mप मA कु छ [गने - चुने मह वपूण# सद य को "नयुत करA | 5. स/य पZरि थ"त मA १३०० साधू-साि,वय मA काफ2 लोगोने Graduation, Post graduation एवं Doctorates क2 पद वया हा4सल क2 है | इस Zरसोस# का हमने पूरा लाभ लेना आवPयक है | इनमेसे कु छ लोग का Think Tank बनाकर इस वषय को Movement क2 तरह चलाना आवPयक है | 6. देश मA Gहंसाचार, अ याचार, बला कार, c टाचार क2 घटनाये लगातार बढ़ती जा रह6 है | इस वषय पर दूरदश#न के कई चैनेeस पर घंटो घंटो बहस होती है | अGहंसा के पुजार6 रहनेवाले हमारे कई व/वान साधू-साि,व इन सब वषय पर लगातार बहस मA Gह सा लेकर पूण# भारत वष# के समाज पर अपना भाव डाल सकते है | इसमA धम# और समाज दोनोक2 भी बड़ी सेवा होती है | इस बात को इस स+मलेन मA काफ2 गंभीरतासे लेना आवPयक है |
  • 9. 7 ये शुeआती 9कYतु मह वपूण कदम इस मूवमेYट के बारे मh जागृ त नमाण करने के तथा भगवान महावीर का सYदेश फै लाने के काय मh बहुत उपयु8त 1सq हो सकते हs। ये यास पूरे 'वWव मh जै नय क7 पहचान बनाने का काय करhगे। 'वWव मh जै नय का योगदान अ;धक संzया मh लोग }वारा और अ;धक गहराई से वीकारा जाएगा। इसीसे अपने समुदाय से परे जा कर मानवता क7 सेवा करना चाहनेवाले जैनी तथा जैन सं थाओं के 1लए अनेक अवसर खुल जाएंगे। यह सह) मायन मे भगवान महावीर }वारा बताए माग पर चलना 1सq होगा और जै नय को, जैन धम के अनुचर के यथो;चत eप से मनु यमाi तथा मानवता क7 सेवा करने 1लए वयं को सम'पत करने का अवसर ाnत होगा। ***
  • 10. 8 -मण संघ - नई पढ6, नई सोच, नई Gदशा जैन धम के 'व1भYन स दाय के आदरणीय एवं 'व}वान् साधू-साि!वय ने साथ 1मलकर #मण संघ का गठन 9कया | यह 1950 के दशक क7 अ त मह वपूण घटनाओं मh से एक थी | यह संगम उन सभी साधू-साि!वय का एक संग,ठत यास था िजसके }वारा वे जैन धम के 1सqांत का चार कर 'वWव मh शािYत और सदभाव क7 थापना करना चाहते थे | देश के इ तहास मh जैन संघ का यह यास अभूतपूव था | 'पछले 65 वषm के अपने इ तहास मh #मण संघ ने अपनी Dढ़ता और समपण }वारा अनेक 'वपर)त पaरि थ तय मh समाज के ,हत हेतु अपने अि त व क7 र2ा क7 है | कई साधू-साि!वय मh वैचाaरक मतभेद क7 ि थ तयां भी उ पYन हुई हs | इस कार क7 कई अवां छत घटनाएँ समय-समय पर संघ के अि त व और मूल उjेWWय के 1लए खतरा बनकर उभर) हs | इन सबके बावजूद जैन धम क7 मजबूत सैqां तक बु नयाद के कारण संघ ने इन सभी आतंaरक मतभेद एवं बदलते समय क7 चुनौ तय से ऊपर उठकर अपना अि त व कायम रखा और अपनी नीव को कभी भा'वत नह)ंहोने,दया| आज इस संघ मh 1300 'व}वान, उvच1श•2त और lानी साधू-साि!वयां हs जो जैन समाज के 1सqांत के पaरचायक हs | यह निWचत eप से गव क7 बात है | 9कYतु समय-समय पर उ पYन होने वाले मतभेद और मनमुटाव ने सभी के मन मh यह संशय उ पYन 9कया है क7 ऐसे मसले संघ के मूल अि त व के 1लए खतरा पैदा कर सकते हs | इससे पहले क7 यह बेचैन करने वाले संके त 'वशाल सम या का eप धारण करh, हमh हर एक जैनी के मन से इन नकारा मक शि8तय को 1मटाना होगा|अब समय आ गया है 9क सभी साधू-साि!व यह ठान लh क7 वे संपूण इमानदार) एवं न ठा के साथ संघ मh पूरा 'वWवास रखते हुए इसके मूल 1सqांत का चार करने मh सहयोगी एवं सहभागी ह गे | आज हम एक ऐसे चौराहे पर खड़े हs जहाँ से 9कये गए माग का चुनाव ह) संघ के भ'व य को नधाaरत करेगा |अतः, २८ वषm के ल बे अंतराल के बाद आयोिजत 9कया गया यह स मेलन संघ क7 संरचना क7 सुर2ा क7 ओर 1लया गया मह वपूण कदम है |यह
  • 11. 9 स मेलन सvचे मन से 9कया गया वह यास होना चा,हए, जो सभी साधू-साि!वय मh 'वचार क7 एकता उ पYन कर, संघ के एकमत Dि टकोण को सामने ला सके और सभी के }वारा इसे आ मसात 9कया जा सके | संघ क7 कु शलता के 1लए ज…र) है क7 सभी साधू-साि!व Dढ न ठा से संक{प लेते हुए उन लgय और 1सqांत को अपनाएं िजनको संघ का समथन ाnत है |जब तक सभी साधू-साि!व समान 'वचार और कथन को धारण नह)ं करते संघ क7 एकता को बनाये रखना ,दन-ब-,दन क,ठन होता जाएगा| यह बदलाव लाने के 1लए संघ को अपने 'वचारो मh कई मह वपूण और kयापक बदलाव लाने ह गे | इन बदलाव के 1लए सभी सद य क7 सहमती आवWयक है एवं यह भी आवWयक है क7 सद य बड़े पैमाने पर संघ क7, जैन समाज क7 और जैन 1सqांत क7 र2ा और चार के बारे मh सोचh | इस चुनौतीपूण पृ ठभू1म के आधार पर, संघ क7 कायशैल) मh हम कु छ बदलाव ि त'वत कर रहे हs और इसका मुzय उjेWय संघ क7 संरचना को आतंaरक मजबूती दान करना है | इस हेतु न न ताव हs: • संघ के Xि टकोण के बारे मA एक व तृत द तावेज ३-४ मह6ने क2 अव[ध मA बनाया जाकर तुत Lकया जाना चाGहए | यह द तावेज आचायK, युवाचायK एवं वत#क /वारा 4मलकर बनाया जाना चाGहए यह द तावेज बनाने के ल6ये बाहर6 ोफे शनलस क2 मदद ल6 जा सती है | • इस द तावेज मA "न+न4लNखत बातA शा4मल होनी चाGहए: • संघ का त वjान (Philosophy), Xि टकोण (Vision), लOय (Mission), उkेPय और वशेष काय# (Aims & Objectives) • संघ के येक मह वपूण# ओहदे एवं थान से स+बं[धत भू4मका, िज+मेदार6 और काय#काल का ववरण
  • 12. 10 • संघ के येक सद य के 4लए आचार-संGहता • संघ के भ व य क2 सभी योजनायA एवं पूव#-"नधा#Zरत लOय; सभी लघु- काल6न एवं द6घ#-काल6न योजनायA • संघ के मह वपूण# आयोजन जैसे Lक चातुमा#स एवं साधू-सा,वी स+मलेन के 4लए Gदशा-"नदlश| चातुमा#स के आयोजन के 4लए संघ के पदा[धकाZरय को -ावक संघ एवं जैन कांmA स के सद य से सलाह लेकर Gदशा-"नदlश "नधा#Zरत करने ह गे | • संघ क2 L याएं एवं 4शकायत "नवारण णाल6 • दूरदशn Xि टकोण का यह द तावेज संघ के सभी सद य को उपलFध कराया जाना चाGहए िजससे Lक सभी के आचरण और लOय मA समानता और एकMपता बनी रहे • आचायK के 4लए काय#काल 15 वषK का हो और उनक2 आयु 70 से अ[धक ना हो |यह इस4लए आवPयक है यूंLक 15 वषK क2 अव[ध उस ओहदे के oयित के 4लए संघ "नमा#ण हेतु लOय "नधा#रण और उन लOय के "न पादन हेतु काफ2 है | काय#काल "नधा#रण से युवा नेताओं को भी नयी सोच के साथ संघ को ग"तशील बनाने का मौका 4मल सके गा |आयु सीमा के "नधा#रण से बढती उq से उ प>न वा य स+ब>धी सम याओं से संघ के काय# भा वत नह6ं ह गे |
  • 13. 11 • 15 वषK के काय#काल के पPचात आचायK को महा-आचाय# या गणा[धप"त का थान ाrत होगा िजसके तहत वे संघ के दै"नक कायK से "नवृत होते हुए भी और अ[धक स+मानीय और उsच पद पर वराजमान ह गे | सभी वतक / वा त नय , उपा!याओं एवं स;चव के 1लए 5 वषm का कायकाल नधाaरत 9कया जाना चा,हए |यह आवWयक है 8यूं9क पांच वष का समय 9कसी kयि8त के 1लए सभी संभावनाओं को खोजने और अपनी काय2मता के अनुसार संघ के ,हत मh उYहh कायािYवत करने के 1लए काफ7 है | हर पांच वष मh अSखल भारतीय साधू-सा!वी स मलेन का आयोजन होना चा,हए | इससे सभी साधू-साि!वय को एक मंच ाnत होगा जहाँ वे साथ 1मलकर खुले संवाद }वारा बहुत कु छ 1सखने के साथ ह) अपने अनुभव भी बाँट सकते हs | इन संवाद के }वारा संघ क7 ग त के 1लए और आवWयक सुधार के 1लए नणय 1लए जा सकh गे | स मलेन के आयोजन से येक पांच वषm मh नए पदा;धकाaरय क7 नयुि8त क7 घोषणा भी क7 जा सके गी |इससे यह भी सु निWचत होगा क7 एक आचाय अपने कायकाल मh अपने नेतृ व और मागदशन मh ३ स मेलन मh ,ह सा ले सकh गे | यह Dि टकोण द तावेज भ'व य मh सYदभ के eप मh संघ के नए सद य के 1लए उYमुखीकरण 1श2ण मो†यूल तैयार करने मh मददगार 1सq ह गे |इस कार संघ को 1श•2त एवं कायशील साधू-सा!वी 1मल सकh गे |
  • 14. 12 कायm क7 समी2ा एवं ेषण के 1लए भी एक नयी णाल) क7 आवWयकता है | पदा;धकार) एक चौमासी ेषण व् समी2ा णाल) तय कर सकते हs िजसके }वारा वे आचायm को पूव नधाaरत ाeप मh aरपोट दे सकh | यह aरपोट बहुआयामी होनी चा,हए िजसमे सभी योजनाओं क7 वा तु-ि थ त, लgय ािnत एवं चुनौ तय को शा1मल 9कया गया हो |आचाय को यह सु निWचत करना होगा क7 उनके और संघ के सभी सद य के बीच एक बे‡तर संवाद क7 थापना हो सके | लgयपू त और 'व1भYन कायm क7 मांग के अनुसार आचाय को समय-समय पर सद य के 1लए ,दशा- नदˆश जार) करने ह गे | एक द2 और भावी 1शकायत नवारण णाल) (Grievance Redressal system) क7 थापना करके संघ को उसे अपनाना चा,हए | चौमासी aरपोट से उ पYन सभी सम याओं को दज 9कया जाना चा,हए और इनके नवारण हेतु उपयु8त तर)क क7 पहचान होनी चा,हए और उनक7 गंभीरता भांपकर उनके नवारण होना चा,हए | सभी छोट) सम याओं (िजनक7 साफ़ पaरभाषा Dि टकोण द तावेज मh 1लSखत हो) का नवारण वतक }वारा 9कया जाना चा,हए | गंभीर और नाजुक मामल मh ('गंभीर' और 'नाजुक' सम याओं क7 साफ़ पaरभाषा द तावेज मh 1लSखत होनी चा,हए) आचायm को नराकरण करना चा,हए | सभी 'छोटे या बड़े' 'ववाद अ;धकतम एक मह)ने क7 अव;ध मh सुलझा ,दया जाने चा,हए |
  • 15. 13 आचाय }वारा एक ऐसी स1म त का गठन 9कया जाना चा,हए, जो जैन समुदाय }वारा रा नमाण और देश के ,हत मh मानवतापूण कायm मh योगदान देने के तर)क क7 'ववेचना कर सकh | हर साधू-साि!वय }वारा 9कसी न 9कसी गाव / शहर मh चातुमास होते ह) है| कु छ जगह पर #ावक }वारा तो कु छ जगह पर साधू-संतो के कहेनेपर अनाप-शनाप खचा 9कया जा रहा है | इस बात को काफ7 गंभीरतासे सोचकर चातुमास कै से हो, उसमे नमंiण प_iकाए, पो टस, Banners, Advertisements, मžडप इ या,द 'वषय पर एक Comprehensive guidelines को बनाना अ यंत आवWयक है| इसमh चातुमास के साथ साथ द)2ा एवं साधू स मलेन इन काय¥म का भी समावेश होना चा,हए | काफ7 साधू-संत के समूह मh एक मुख साधू एवं साि!वय के साथ ३-४ से लेकर १०-१२ तक अYय साधू एवं साि!वयां रहती है | खास करके यह पुरे समूह मh से १-२ लोग Most Active ,दखाई देते है | अYय साधू-साि!व भी काफ7 भावशाल), पढ़े 1लखे एवं active होते है | इस मह वपूण resource का मुzय वाह मh 'व'वध 'वषय के ऊपर उपयोग कै से करके ले इस Dि ट से इस document मh हर जगह पर Action Plan मौजूद है | ***
  • 16. 14 साधू-सा,वी 4शtण हेतू काय#योजना -मण संघ जैन Pवेता+बर सं दाय के बीच जैन धम# के 4सIांत का बेहतर चार करने के 4लए अि त व मA आया है | पछले कई वषK से यह संघ हमारे साधू-साि,वय के मंडल मA जैन धम# के मुख उuयेPय को बढ़ावा देता रहा है | इन सभी बात का सार यह) है 9क #मण संघ के Dि टकोण, मुzय सYदेश, 'वचार, और उjेWWय संपूण संघ मh एकeपता से संचाaरत ह | संघ के 1सqांत का समानता से सभी सद य तक पहुँचना और उनके }वारा एक eप मh pहण 9कया जाना संघ के अि त व हेतू अ त-आवWयक है 8य 9क ये सभी सद य एक बड़े अनु¥म का ,ह सा हs | संघ के त काल)न स माननीय सद य के मागदशन मh द)2ा लेने के उपरांत, जब 9कसी kयि8त का गुणीजन क7 प'वi संगत से थम पaरचय होता है, तो यह उ मीद क7 जाती है 9क वह #मण संघ के 1सqांत का पaरचायक बनकर रहे और साथ ह) अपने गु…जन से ाnत kयि8तपरक धा1मक 1श2ा का अनुसरण भी करता रहे | यह तभी संभव होगा जब #मण संघ के 1सqांत का मानक7करण करके , एक नधाaरत तर)के से उYहh द)2ाथV को समझाया जाये, ता9क द)2ा के पूव ह) वह धा1मक lान के साथ इन 1सqांत को भी आ मसात कर सके | इस तरह का 1श2ण संघ के सद य मh गुट नरपे2ता और वैचाaरक सहम त बनाये रखने मh सहायक 1सq होगा| अतः हम इस कार के 4शtण काय# म के बनाये जाने का ताव रखना चाहते हw | इससे #मण संघ क7 1श2ा सामpी और 1सqांत का मानक7करण हो सके गा | मूलतः यह 1श2ण काय¥म पूव- नधाaरत एवं सीमाबq तर)के से संचा1लत होगा, ता9क सभी सद य के म!य 1श2ण सामpी और Dि टकोण सदैव समान रहh |
  • 17. 15 इस ताव को साकार करने के 1लए न न1लSखत तर)के अपनाये जा सकते हs: a) -मण संघ क2 कA z6य स4म"त - िजसमे आचाय#, युवाचाय# और वत#क शा4मल ह गे - /वारा देशभर मA चार मु{य 4शtण कA z था पत Lकये जाएँ, जहाँ "न+न4लखीत मूलभूत 4शtण दान Lकया जाएगा | b) कA z6य स4म"त 4शtण का ाMप और साम}ी तैयार करने का िज+मा कु छ स+माननीय साधू-साि,वय को स:प सकते हw, िज>हA -मण संघ /वारा अनुमोGदत Lकया गया हो | c) कA z6य स4म"त /वारा आतंZरक (ज€रत पड़ने पर बाहर6 भी) 4शtक क2 पहचान और "नयुित क2 जानी चाGहए | यह 4शtक "नधा#Zरत साम}ी के अनुसार 4शtण दान करAगे | उपरो8त आवWयकताओं को !यान मh रखते हुए न न कार के 1श2ण मॉडयुल बनाये जा सकते हs | उनके ायोिजत लाभ भी यहाँ ,दए गए हs: a) मूलभूत साधू-सा,वी द6tा 4शtण (Core Sadhu-Sadhavi Diksha training): वतमान मh द)2ा के पूव साधू-साि!वय }वारा द)2ा;थय को एक तय अव;ध के अंतगत 1श2ण ,दया जाता है, 9कYतु यह 9कसी नधाaरत ाeप मh नह)ं होता है| यह कारण है 9क कड़े 1श2ण और गहराई से दान क7 गयी 1श2ा के बावजूद भी, तंi के भीतर ह) द)2ा लेने क7 'व;ध मh असमानताएं पायी गयी हs| 1श2ण को सु वाह) बनाने और एकeपी 1श2ण सामpी के अभाव से जYमी असमानताओं को 1मटाने के 1लए संघ को कh y)य तर पर एक मूलभूत साधू-साि!व 1श2ण काय¥म को शी€ …पिYवत करना चा,हए | इस 1श2ण काय¥म के अंतगत द)2ाथV मूल धा1मक और सैधािYतक 1श2ा ाnत कर सकh गे | इस 1श2ण काय¥म मh कु छ हद तक लचीलापन भी होना चा,हए ता9क साधू- साि!वय के नजी अनुभव और lान को भी समा,हत 9कया जा सके |
  • 18. 16 इस मूलभूत साधू-सा,वी द6tा 4शtण (Core Sadhu-Sadhavi Diksha training) क2 काय# णाल6 "न+न4लखीत पI"त नुसार काया#ि>वत क2 जा सकती है | • #मण संघ }वारा इस े नंग का Sylabus तय कर लेना चा,हए | उसक7 9कताब एवं training modul तैयार करके एक training kit बनाना चा,हए | • यह training kit guidelines के साथ सभी साधू-सि!वओंको 'वतaरत करना चा,हए | िजसका उपयोग कर 1श2ुओं को एकeपी 1श2ा दान कर सकh | • आज िजस तरह साधू-साि!व अपने 1श य को द)2ा के पहले training देते है उसी तरह यहासे आगे भी वो अपने 1श य को खुदह) training दhगे | ले9कन यह training, training kit के guidelines से ,दया जायेगा | • इस training kit क7 मदद से साधू-सा!वी द)2ा के 1लए 1श2ण देते समय नधाaरत मापदंड के अनुसार संपूण और संर;चत 1श2ा दे सकh गे | • इस काय¥म के }वारा येक द)2ाथV क7 नजी 2मता, समझ एवं इvछाशि8त का भी आंकलन 9कया जा सके गा | इससे #मण संघ को उस kयि8त क7 2मताओं का सह) उपयोग संघ के कायm मh करने मh मदद 1मलेगी | b) नए सद य हेतू -मण संघ का अ4भ व>यास 4शtण (Shraman Sangh Orientation training for new members):#मण संघ के सभी सद य }वारा एक समान आचार सं,हता का अनुपालन 9कया जाना आवWयक है और इसके 1लए येक सद य को संघ के Dि टकोण, 'वचार , 1सqांत , कायशैल) और लgय से भल)भां त पaर;चत होना आवWयक है | यह 1श2ण काय¥म सभी नए सद य को उपरो8त बात से पaर;चत करने के साथ ह) सभी सद य को समान उjेWWय से बांधने
  • 19. 17 का काय करेगा | इस काय¥म क7 अव;ध छः मह)न क7 हो सकती है और इसे मुzय 1श2ण कh y से 1श•2त 1श2क }वारा ह) चलाया जाना चा,हए | अ4भ व>यास 4शtण से "न+न लाभ ह गे: • इससे संघ के सभी सद य के इरादे और काय संग,ठत ह गे और एकह) लgय पर के िYyत ग त'व;धयाँ भी ह गी | • इससे मतभेद और अलगाव के मामले भी कम हो सकh गे | उपरो8त दोन (a) तथा (b) 1श2ण ाnत करने के उपरांत ह) 1श2ु को द)2ा दान क7 जाएगी | c) मौजूदा साधू-साि,वय का -मण संघ अ4भ व>यास 4शtण (Shraman Sangh Orientation training for existing Sadhu/Sadhavis):#मण संघ }वारा लघु अव;ध के kयापक अ1भ'वYयास 1श2ण काय¥म, 1श•2त 1श2क }वारा देशभर मh मौजूद साधू-साि!वय के समूह के 1लए भी बनाये जाने चा,हए | इससे साधू- साि!वय के अ;धका;धक समूह #मण संघ के मूल Dि टकोण और 1सqांत से पaर;चत हो सकh गे | d) वषयक 4शtण (Subject trainings):जैन धम से स बं;धत 'व1भYन 'वषय पर संघ क7 कh y)य स1म त और जुड़े हुए साधू-साि!वय को अपनी वीणताके आधार पर 1भYन कार के 1श2ण काय¥म तैयार करने चा,हए | उदहारण के तौर पर:!यान 'व}या पर 1श2ण काय¥म, जैन बालक/बा1लकाओं के 1लए सं कार 1श2ा एवं जैन धम के आधारभूत 1सqांत जैसे 9क अ,हंसा, अपaरpह और अनेकावाद पर 'वषयगत 1श2ण, िजसका लाभ सामाYय जैन नागaरक भी ले सकh | इसके }वारा जै नय मh समता, अ,हंसा, शां त, पशु सुर2ा, 1श2ा एवं वा ¬य के मह व पर जागeकता उ पYन क7 जा सके गी |
  • 20. 18 इन वशेष 4शtण काय# म से यह लाभ ह गे: • गंभीर सामािजक, शै2Sणक और मानवीय मसल पर कु शल साधू-सा!वी सामाYय जन को संबो;धत कर सकh गे | • साधू-साि!वय के lान और अनुभव का उ;चत लाभ और सहयोग #मण संघ के Dि टकोण और 1सqांत के चार हेतू 1मल सके गा | e) साधक-सा[धका / चारक 4शtण (Training for sadhak-sadhika / Pracharak): संघ के कh y)य तर पर साधक-सा;धका / चारक के 1लए एक 1श2ण काय¥म बनाया जाना चा,हए | यह 1श2ण उYहh मुzय के Yy के मा!यम से ,दया जाना चा,हए, िजससे वे संघ के Dि टकोण एवं लgय से पaर;चत होकर अपने उ;चत और नधाaरत क तkय का पालन सह) ढंग से कर सकh | इस 1श2ण कायकरण से साधक-सा;धका / चारको क7 कायशैल), अपे2ाओं एवं कतkय मh एकeपता बनी रहेगी | साथ ह) वे पूण पारद1शता से अपने कतkय का नवाह कर सकh गे | साधक-सा;धका / चारक इस कड़ी का नमाण होने के बाद एवं इनक7 समाचार) को अं तम eप देने के बाद यह साधक-सा;धका / चारक 1श2ण (Training for sadhak-sadhika / Pracharak) पा¯य¥म तैयार 9कया जाना चा,हए | ***
  • 21. 19 -मण संघ के बल6करण मे साि,वय क2 नार6 शती को बलवान करने Lक नई काय#योजना वतमान मh #मण संघ १३०० साधू-साि!वय का संघठन है, िजसक7 कh y)य स1म त मh आचाय, युवाचाय, उपा!याय, वतक से¥े टर)ज और वा त नयां हs| संघ मh 900 साि!वयां (लगभग 70%) एवं ४०० साधु (30%) हs | एक kयवि थत और पूव- नधाaरत ढांचे के अंतगत यह 1300 साधू-साि!वय का समूह एक ह) तरह के दा य व का नवाह कर रहे हs | द)घ eप मh, हमारे देश मh म,हलाओं को रा नमाण का मुख ,ह सा बनाने हेतू ो सा,हत 9कया जा रहा है | इसके बावजूद कई काय2ेi ऐसे हs जहाँ म,हलाओं क7 उपि थ त माi 15% से अ;धक नह)ं है | इसके 'वपर)त #मण संघ मh 70% साि!वयां हs जो संघ के 1लये सश8त eप से कायशील हs | इस च9कत करने वाल) संzया के अलावा यह साि!वयां स9¥य उN क7 होने के साथ ह) सु1श•2त और सुयोuय भी हs | संघ के 1लए यह अ त आवWयक है 9क वह इन साि!वय क7 शि8त और साम¬य का उपयोग सह) ,दशा मh करते हुए संघ क7 ग त'व;धय मh उYहh ल•2त eप से कायािYवत करh | #मण संघ ने जैन धम के ,हत मh अभूतपूव काय स पा,दत 9कये हs और संघ को चा,हए क7 वह इस गामी झुकाव का पूरा पूरा लाभ उठाए, तथा ऐसा एक Mechanizum तै²यार करे जो संघ के नेटवक मh ये काय करना स भव करेगा। यह तभी संभव है जब इन 900 साि!वय के गुट के समथन मh समूह मh से एक सुचाe चालन रचना का गठन 9कया जाये | वतमान ग त'व;ध संचालन मh ह) एक ऐसा पयवे2क एवं सहायक तंi समा,हत होना चा,हए जो साि!वय के समूह का स2मीकरण भी करता रहे | बेहतर काय2मता हेतू संघ क7 वतमान संरचना मh कु छ पaरवतन अ नवाय हs |
  • 22. 20 इस वषय पर "न+न4लNखत सुझाव : 1. #मण संघ के सा!वी वग को एक 'वशेष दजा देकर, #मण संघ के अYतगत उनके 1लए एक 'वशेष काय णाल) का नमाण करना 2. आचाय }वारा, इस 900 साि!वय के समूह के 1लए, पाँच वष क7 अव;ध के 1लए एक सा!वी मुखा क7 नयुि8त करना 3. सा!वी मुखा को, न न1लSखत 'वषय पर काय करने के 1लए उ;चत अ;धकार दान करना 4. सा!वी मुखा को अपना कतkय नभाने तथा उसे ,दए गए सु निWचत उjेWWय को पूरा करने के 1लए 'व1श ट मागदशक सूचनाएं देना 5. संघ क7 आचार सं,हता का पालन न करने पर जो मुख सम याएं आ सकती हs उYहh पaरभा'षत करना और उYहh आचाय तक पहुँचाना और जो छोट) सम याएं हs उYहh सा!वी मुखा के तर पर नपटाना 6. हर पाँच वष क7 अवधी के 1लए सा!वी समूह ने कौन से 'वशेष ोpाम पर काम करना है, इसका नणय करना और इन काय¥म क7 पूतV करने का उ तरदा य व सा!वी मुखा को स³प देना सा,वी मुखा क2 भू4मका और दा"य व इस कार ह गे: I. सभी साि!वय के 1लए पयवे2क एवं सहायक क7 भू1मका का नवाह करना | II. सभी 900 साि!वय का सवˆ2ण करके उYहh उN, 1श2ा, ,दलच पी और अYय मापदंड के आधार पर रेखािYवत करना; ता9क उYहh उ;चत सा!वी संसाधन समूह (Sadhavi Resource Groups) के दा य व स³पे जा सकh |
  • 23. 21 III. उन मह वपूण 'वषय क7 पहचान करना जहाँ सा!वी संसाधन समूह (Sadhavi Resource Groups) पूव नधाaरत लgय स,हत मह वपूण योगदान दे सकते हs| हर पांच वषm मh इन 'वषय क7 समी2ा क7 जाए और उनमh कटौती या बढ़ौiी करने क7 गुंजाईश हो| IV. सवˆ2ण के }वारा रेखािYवत साि!वय को उ;चत संसाधन समूह मh थान दान कर समूह को स9¥य करना और समूह के सद य को हर पांच वष के अंतराल पर बदलना | V. येक सा!वी संसाधन समूह (Sadhavi Resource Groups) के 1लए एक मुख क7 नयुि8त करना िजसका कायकाल पांच वषm का होगा| VI. संघ क7 कh y)य स1म त को निWचत समय एवं ाeप मh aरपोट दान करना| VII. एक बाहर) सलाहकार स1म त (external advisory council) क7 नयुि8त करना (वह म,हला/पु…ष हो सकते हs) जो गंभीर 'वषय पर सह) सलाह दे सकh | VIII. सा!वी संसाधन समूह क7 सुचा…ता बनाये रखने के 1लए कh y)य स1म त से परामश लेना| सा,वी संसाधन समूह (Sadhavi Resource Groups) क2 मुख सा,वी सGहत थापना के "न+न4लNखत उkेPय और काय#tे?, हो सकते हw: इन वषयोमे बदलाव Lकये जा सकते है| I. ,यान साधना : !यान साधना इस 'वषय पर दुनीया मh काफ7 संशोधन चल रहे है | इस सद) का यह मह वपूण 'वषय माना जा सकता है | हमारे वतमान आचाय डॉ 1शवमु नजी इनका इस 'वषय पर काफ7 गहरा और असामाYय ;चंतन है | इस !यान साधना को उYह ने अपने िजंदगी
  • 24. 22 के साथ जोड़कर एक नया मुकाम हा1सल 9कया है | अब आवWयकता है इस !यान साधना को एक mission के eप मh खड़ा करके इस देश मh एक नयी Revolution ला सके | इस 1लए एक 'व तृत project report बनाकर उसके action plan को नधाaरत कर इस 'वषय को देश और 'वWव मh अलग D ट) से पेश करना | इस mission को आगे बढ़ने के 1लए िजन साि!वय क7 ,दलच पी है ऐसे साि!वय के समूह को इसमh जोड़ा जा सकता है | II. सं कार 4श वर (Sanskar Shibirs): जैन समुदाय के बvचे अपने धम से दूर होते जा रहे ,दखायी दे रहे हs| थानक मh उनक7 उपि थ त लगातार कम हो रह) है, जो जैन समुदाय के 1लए एक गहर) ;चYता का 'वषय है| इन बvच और युवाओं को जैन धम के 1सqांत और त वlान क7 ओर आक'षत करने तथा उYहh जैन दशनशा i मh मान1सक आधार 1मलने हेतू सं कार 1श'वर आयोिजत 9कये जाने चा,हए| यह 1श'वर नई पीढ़) को !यान मh रखकर मैiीपूण और सरल ाeप मh आयोिजत 9कया जाने चा,हए| इन 1श'वर मh उvच और नई तकनीक के साथ क7 अंpेजी भाषा का भी योग 9कया जा सकता है िजससे नई पीढ़) के साथ संवाद था'पत हो सके | III. आदश# चातुमा#स (Ideal Chaturmas): कु छ वष पूव भारतीय जैन संगठन (बीजेएस) }वारा आदश चातुमास क7 संक{पना, ¶डजाईन एवं आयोजन वधमान थानकवासी संघ, 1शवाजीनगर, पुणे मh 9कया गया था | यह आयोजन महासती ी तसुधाजी के मागदशन मh हुआ था | इस चातुमास क7 खा1सयत यह थी क7 इसके आयोजन मh येक आयु के लोग क7 e;च को !यान मh रखा गया था और यह) इसक7 सफलता का कारण बना | इसपर एक aरपोट और द तावेज भी तैयार क7 गयी िजससे भ'व य मh ेरणा 1ल जा सके | त पWचात जलगाँव मh भी इसी कारका चातुमास बीजेएस }वारा आयोिजत 9कया गया था| बीजेएस }वारा तैयार
  • 25. 23 क7 गयी aरपोट का अ!ययन कर देशभर के अYय थानक संघ भी ऐसे 10 - 20 पायलट चातुमास का आयोजन कर सकते हs | ऐसे आयोजन अवWय होने चा,हए और बीजेएस सदैव इस कार के काय¥म को अनेक थानक मh करने के 1लए सहायता दान करने हेतू त पर है | a. युव"तय का सtमीकरण (Empowerment of girls): अंतरजातीय 'ववाह के बढ़ते हुए मामले जैन समुदाय मh सामने आ रहे हs | युवा लड़9कय के अपने पaरवार के साथ मतभेद भी बढ़ रहे हs | आज के समय मh एक ऐसे सुjृढ ढ़ मंच क7 आवWयकता है जो युव तय को बाहर) दु नया क7 सvचाई बताते हुए उYहh अपनी भावनाएं kय8त करने का मौका भी दे | इससे वह अपने पaरवार और समाज को एक नए और सुलझे हुए नजaरये से देख सकती हs | अतः जैन समुदाय क7 युव तय के 1लए 'व1भYन थान पर युव तय का स2मीकरण काय¥म आयोिजत 9कया जाना चा,हए | b. मGहला संगठनो को एकजुट करना (Mobilizing Mahila Sangathans): आज 'व1भYन थान पर अनेक जैन म,हला संगठन मौजूद हs |समाज के 1लए यह अ यंत ,हतकार) होगा य,द इन सभी समूह को एक साथ जोड़ ,दया जाये और एक समान उjेWय से इYहh कायािYवत 9कया जाये | इस तरह इनके }वारा 9कये कायm से अ;धका;धक लाभ होगा | इस तरह के संगठन क7 पहचान कर उYहh आपस मh जोड़ना ज…र) है, ता9क गंभीर और आवWयक मसल पर वे एकजुट होकर समाज क{याण के काय कर सकh और बेहतर नतीजे ाnत ह | c. सा,वी सहायता एवं 4शकायत "नवारण को ठ (Sadhavi Support and Grievance Redressal Cell)- यह 900 साि!वय का समूह सुचाe और सुखद eप से पaरचा1लत करने हेतू इनक7 सम याओं और अYय मसल का तुरंत नराकरण करना आवWयक है | कायशैल), सुर2ा, 1श2ा, शोषण या अYय म,हला-के िYyत सम याएँ कभी भी उ पYन हो सकती
  • 26. 24 हs | समय पर इनका नराकरण हो इसके 1लए एक सा,वी सहायता एवं 4शकायत "नवारण को ठ बनाया जाना चाGहए | इस कार सभी साि!वयां अपने-अपने 2ेi मh निWचYत होकर बेहतर)न तर)के से काय कर सकh गी | सा!वी मुख को छोटे मसल पर नणय लेने का अ;धकार ाnत होने चा,हए एवं गंभीर सम याओं के 1लए वे कh ,yय स1म त क7 मदद ले सकती हs | यह सभी 'वषय 1सफ उदाहरण के तौरपर ,दए गए है | इन 'वषयोमh से कु छ कम 9कए जा सकते है तथा कु छ बढ़ाये जा सकते है | हर ५ वष बाद आवशकता नुसार 'वषय मh बदल 9कया जा सकता है | ***
  • 27. 25 साधक-सा[धका / चारक इस नई कॅ टेगर6 का "नमा#ण करना सन १९५० के दशक मh थानकवासी समाज के 'व1भYन सं दाय के साधू- साि!वय ने 1मलकर एक छiछाया के अंतगत आने क7 इvछा kय8त क7 | इस 'वचार मंथन के मा!यम से थानकवासी जैन समाज क7 एक भkय सं था का नमाण हुआ | जो #मण संघ के eप मh आज भी कायरत है | 'पछले छ: दशक मh #मण संघ के अंतगत हजारो साधू-साि!वया पुरे देशभर मh जैन धमका चार और सार एवं जैन 1सqाYतोको देशभर मh फै लाने का काम बड़े जोश और उमंग से कर रहे है | अगर हम 'पछले ४-५ दशक का 'वचार करh, तो कई भावी साधू-साि!वया #मण संघ छोड़कर अYय 'वचारधारा को जाकर 1मले है | इस 'वषयपर साधू स मलेन मh गहरा ;चंतन होगा | आज के #मण संघ मh मौजूदा १३०० साधू- साि!वय को देखते है तो हर एक kयि8त स2म, 'वजनर) व् कतु ववान है | ले9कन अपने अपने 'वचारधाराओं एवं माYयताओं मh थोडेबहूत मतभेद एवं मनभेद होने क7 बाते सामने आती है | खासकर 'पछले ३ दशक से देश मh आमूलाp बदलाव हो चुके है | टे8नोलॉजी सामने आयी है, दूरदशन के इकलौते चैनल के बजाय २०० से अ;धक ट).वी. चैनेल माकˆ ट मh उपल•ध है | क यु नके शनके मा!यम मh बहुतह) बदलाव हो चुके है | टे8नोलॉजी के साथ साथ मोबाईल और सोशल 1म¶डया अपना भाव तेजीसे डाल रह) है | इन सार) बदलती पaरि थ तय को सामने देखकर साधू-साि!व भी भा'वत हो रहे है | बहुत सारे साधू-साि!वयां बहुतह) कठोर नयम का सौ- तशत पालन करते है, आज के ज़माने मh यह बड़ी बात है | ले9कन कु छ साधू-साि!वयां वाहन, टे8नोलॉजी, मोबाईल, फे सबुक एवं सोशल 1म¶डया का भी इ तेमाल कर रहे है और करना चाहते है | इस1लए यह साधू स मलेन इस Dि टकोण से मह वपूण है, क7 #मण संघ क7 ,दशा 8या होनी चा,हए। एक ओर कड़े नयम का पालन
  • 28. 26 होने क7 मांग उभरकर आयी है और कड़े नयम का पालन न करनेवाले kयि8तओंपर कारवाई करने क7 मांग भी सामने आती है | तो दूसर) तरफ वाहन, टे8नोलॉजी, मोबाईल, एवं सोशल 1म¶डया इसका उपयोग करने मh कोई हज नह)ं, ऐसा कहनेवाले साधू-साि!वय क7 संzया भी बढ़ रह) है | यह साधू स मलेन इस D ट) से पूण जैन समाज के 1लए ट न¸ग पॉइंट 1सq हो सकता है | नणय 8या होने चा,हए इसपर सभी साधू-साि!वय मh काफ7 उ सुकता है | इस सYदभ मh कु छ भी नणय 1लया गया तो #मण संघ मh दो अलग अलग 'वचारधारा के pुप होने क7 स भावना है | उदा. बहुत कड़े नयम 9कए गये तो िजनको इन नयम मh 1श;थलता चा,हए वो लोग #मण संघ से नाराज ह गे एवं इन नयम मh 1श;थलता द) तो जो लोग कड़े नयम करना चाहते है वह लोग #मण संघ से नाराज होने क7 आशंका है | इस बड़ी सम या को लेकर हम कु छ नया सुझाव देना चाहते है : सुझाव : १. जैन समाज क7 नीव यागपर रची गई है | #मण संघ के साधू-साि!व के 1लए जो समाचार) १९८७ के पूना स मेलन मh वीकृ त क7 गई है, उसमh माइक, पंखे जैसी छोट) छोट) बातh छोड़ अYय 9कसी मुzय त व मh बदल करनेक7 आवWयकता नह)ं है ऐसा हमh लगता है | ले9कन जो भी समाचार) तय होगी उसका तंतोतंत पालन होना और उस D ट) से कड़े कदम उठाना यह नतांत आवWयक है | सुझाव के लाभ : जैन समाज यागपर खड़ा है | यह सभी साधू-साि!वया अपने घर, पaरवार, स पि त यागकर द)2ा लेते है | आज के ज़माने मh इस कार याग करनेवाले लोग क7 संzया बहुतह) कम होती जा रह) है | इस कार के aरसोसˆस को देश के 1लए ह) नह)ं बि{क पुरे 'वWव के 1लए मह वपूण माने जाने चा,हए | यह हमारे समाज का सबसे बड़ा Asset है | इसक7 तुलना
  • 29. 27 धरती के 9कसी अYय चीज से नह)ं क7 जा सकती | यह 8वािYटट) से नह)ं 8वा1लट) से सामने आना चा,हए | सुझाव के नुकसान : साधू-साि!वय मh कु छ लोग ऐसे ह गे क7 िजनको लगता है क7 वाहन टे8नोलॉजी, मोबाईल, एवं सोशल 1म¶डया के मा!यम से हम अपने पोटेिYशअल को अvछº तरह से इ तेमाल कर सकते हs, समाज और देश का बड़ा काम कर सकते हs | कम समय मh अ;धक काम कर सकते हs| इस मा!यम से समाज व देश बदल सकते हs | समाज को नई ऊँ चाई तक ले जा सकते हs, जैन समाज के 1सqाYत का चार व सार जोर से कर सकते है | इस कार क7 माYयता के साधू-साि!व भी इस समूह मh हो सकते है | इस1लए बहुतह) कड़े नयम 9कये तो इस कार के साधू-साि!वयां #मण संघ से नाराज होने क7 संभावना को नकारा नह)ं जा सकता | इस साधू स मलेन मh कोई भी एक नणय 1लया तो दूसरा pुप नाराज होकर दूसरा रा ता ढूंढने क7 को1शश करेगा। आज यह सार) शि8तयाँ #मण संघ के एक छi के नीचे काम कर रह) हs, इनमh से कु छ नाराज ह गे और ऐसा न हो इस1लए इन दोन माYयताओं को #मण संघ क7 »iछाया मh काय करने का समान अवसर 1मलना चा,हए, इस1लए हमारे कु छ सुझाव हs, जो नीचे ,दए हुए है | २. साधक-सा;धका / चारक (अलग नामकरण 9कया जा सकता है) इस कै टेगर) का नमाण करना | #मण संघ के िजन साधू-साि!वय को ऐसा लगता है क7, वाहन, टे8नोलॉजी, मोबाईल, एवं सोशल 1म¶डया आ,द सभी साधन का उपयोग होना चा,हए वे इस कै टेगर) मh अपना योगदान दhगे | इनके 1लए अलग समाचार) का ावधान होना चा,हए |
  • 30. 28 लाभ : १. जो साधू-साि!वयां कठोर समाचार) मh नह)ं रहना चाहते है और ऊपaर न,द ट साधन का उपयोग करना चाहते है ऐसे लोग के 1लए #मण संघ के तरफ से इस #ेणी क7 नमाण होने क7 वजहसे सु'वधा ाnत होगी और उYहh #मण संघ छोड़ने क7 ज…रत नह)ं पड़ेगी | २. जो अभी साधू-सा!वी नह)ं है ले9कन िजनको अपने पaरवार का याग करके जैन धम के 1सqाYत का चार, सार करना है ऐसे संभाkय लोग के 1लए कड़ी समाचार) का पालन न करते हुए #मण संघ से जुड़े रहने के 1लए यह #ेणी वरदान 1सq होगी | ३. आज जैन समाज मh पूण सम'पत एवं वाहन, टे8नोलॉजी, मोबाईल, एवं सोशल 1म¶डया आ,द सु'वधायु8त चारक का के डर नह)ं है | खास करके कड़ी समाचार) का पालन करनेवाले साधू-साि!वय को देशभर मh एक जगह से दूसर) जगह जाने के 1लए काफ7 मुिWकलh आती है | इस D ट) से ये साधू-साि!वयां य2 उन जगह पर नह)ं पहुँच पाती हs। उनके 'वचार समाज तक पहुँचाने के 1लए यह चारक #ेणी उपयु8त हो सकती है | S¼Wचन धम व तेरापंथ सं दाय मh इस कार क7 णाल) काफ7 लाभदायक सा_बत हुई है | हमार) यह ाथना है क7 इस नई 9¥या का उदय इस साधू स मलेन मh होना आवWयक है | इससे हर कारक7 'वचारधारा रहनेवाल) साधू-साि!वय को #मण संघ से जुड़े रहने का मौका 1मलेगा एवं #मण संघ मजबूत होगा | इस णाल) को शुe करते समय conference के पदा;धकाaरयो को भी 'वWवास मh लेना, उनके साथ इस कड़ी क7 समाचार) तय करना, एवं उनको लगनेवाले वाहन, उनका mentainance, मोबाइल, computers आ,द technology साधन, मानवसंसाधन एवं रोज के लगनेवाले खच इन सभी _बYदुओंपर गहराई से 'वचार 'वमश कर योजना तैयार करनी चा,हए |
  • 31. 29 आदश# चातुमा#स - एक नया Xि टकोण देशभर के गांव-गांव मh जैन समाज के हजारो थानक बने हुए है | समाज ने इन थानक का काफ7 उपयोग भी 9कया है | जहाँ चातुमास नह)ं होता वहाँ पुरे सालभर इन थानक का पूरा उपयोग नह)ं 9कया जाता | जहाँ चातुमास होते है वहाँ ४ माह छोड़कर अYय ८ माह मh भी इसका पूरा उपयोग नह)ं 9कया जाता | 'पछले कु छ वषm मh छोटे बvचे और युवा वग थानक से काफ7 दूर जाते हुए ,दखाई दे रहे है | इसके कई कारण है, इसका अथ यह नह)ं क7 धम के त उनका …झान नह)ं है, बि{क वहाँ चलनेवाल) ग त'व;धय मे समयानुसार बदलाव क7 आवWयकता है | बvच को एवं युवाओंको धम के साथ जोड़े रखना यह आज सबके सामने बड़ी चुनौती है | हम इस 'वषयपर आदश चातुमास के मा!यम से एक नया Dि टकोण लाना चाहते है | िजससे थानक का योuय उपयोग भी हो और बvचे और युवा धम थानक से जुड़े रहे | यह एक काफ7 चुनौतीभरा काम है जो कु छ वष पहले पूना के 1शवाजीनगर थानक मh योग के तौर पर भारतीय जैन संघटन (बीजेएस) के मा!यम से लागु 9कया गया था | यह सारा ोpाम वेल डॉ8युमhटेड है | हमार) यह अपे2ा है क7 भारतवष मh १०-२० बड़े शहर के थानक मh इसको एक पायलट क7 तरह समाज के सामने पेश 9कया जाये | सुचाe eपसे इसे डॉ8युमhट 9कया जाये और 9फर कु छ वष बाद अYय जगहपर लागु करने का सोचा जा सकता है | भारतीय जैन संघठनने जो इस ोजे8ट को कामयाब 9कया है उनक7 इस 'वषय मh पूर) मदद लेकर इस आदश चातुमास क7 संक{पना को कायािYवत 9कया जा सकता है |
  • 32. 30 1शवाजीनगर जैन थानक मh आयोिजत चातुमास क7 कु छ झल9कया न न1लSखत श•द मे द) गई है : Holistic Development of Family (एचडीएफ) संकeपना 'वWवभर के जैनधमVय, सं कृ ती, पर पराएं और लोकोपकार) काय से समृq तथा उ}यमशील समुदाय के eप मh जाने जाते हs। जैन समुदाय ने सारे भारतवष मh और सभी स दाय मh धा1मक, आ!याि मक तथा सामािजक उपयोग के हेतु थानक / भवन जैसे धा1मक सं थापन का नमाण 9कया है। हमारे जैन साधू / सा!वी इYह) सं थापन के मा!यम से समाज मh जैन सं कृ ती, नै तकता और मू{य अYत न'व ट करने के 1लए अथक पaर#म करते आए हs। 9कYतु गत कु छ समय से धा1मक थल पर होनेवाले काय¥म के #ोता / दशक गण के Dि टकोण मh हम बदलाव देख रहे हs। हमारे आज के समाज मh कु छ अलगाव-सा आ गया है। हमार) नई 'पढ़) 'व1भYन कारण से इन काय¥म क7 ओर आक'षत नह)ं हो रह)। हमारे समाज के बल थान को एक- दूसरे से जोड़ने तथा उYहh और बढ़ावा देने के 1लए, हर जैन पaरवार एक 'वशाल नेटवक का ,ह सा होने क7 तथा वैिWवक तर पर पहुँचने क7 आवWयकता है। समुदायक7 जeरतh, सहभाग कम होने के कारण तथा लोग को सहभागी होने के 1लए कै से ेaरत 9कया जाए, इन बात पर चचा करने के 1लए भारतीय जैन संगठन ने एक 'वWलेषणा मक अ½यास 9कया, िजसमh थमतः पूरे समाज क7 एक बैठक ल) गई और उसके पWचात 'व1श ट आयु - गुट के अनुसार अलग - अलग सभाएं ल) गई।
  • 33. 31 इस 'वWलेषण मh आज के जैन थानक से अYय अपे2ाएं रखते हs, ऐसा एक मुjा सामने आया। ये अपे2ाएं ऐसी हs - 1. नेटव9क¸ ग (लोग का मेलजोल) 2. ि कल डेवलपमेYट (कौशल 'वकास) 3. नॉलेज अपpेडेशन (lान का उYनतीकरण) 4. जeरत पर आधाaरत आयु - गुट अनुसार काय¥म 5. ऐसी एक जगह जहाँ पaरवार के सभी सद य अपने - अपने समान अYय जैन के साथ जुड़ सकh तथा एक बलशाल) जैन समुदाय का नमाण कर सकh यह ोजे8ट अ½यासपूण, टै8नोलॉजी पर आधाaरत, लेSखत (डॉ8युमhटेड) तथा 'व तार2म ( के लेबल) होगा और इसमh पaरवार के सभी सद य के 1लए kयाzयान / गो ठº / वकशॉप / 1श2ा वग के eप मh काय¥म ह गे, जो 'व1भYन थान पर चलाए जा सकh गे। काय# णाल6 (Methodology) हो1लि टक डेवलपमेYट ऑफ फै 1मल) ोजे8ट मh न न1लSखत मह वपूण 2ेi मh सभी आयु - गुट के 1लए काय¥म सि म1लत हs - 1. 4ल˜ल ए rलोरस# (4 - 13 वष#) - 1श2ा ािnत क7 आयु मh एि8ट'वट)ज् का जोर बु'q, नै तक तथा मू{य 1श2ा, को / ए8 ा कaर8युलर एि8ट'वट)ज्, शार)aरक तYदु… ती आद) बढ़ाने पर होता है 2. वाय - जैनरेशन (14 - 24 वष#) - िजसके 1लए एिnट¿यूड एसेसमेYट, सॉÀट ि क{स का 'वकास, कै aरअर मागदशन, लड़9कय का स2मीकरण, 'ववाह आद) बात पर जोर होता है 3. युवा oयावसा"यक (25 - 40 वष#, पुMष) - यह जीवन का ऐसा मोड़ है, जहाँ 'वकास क7 तीÁ इvछा को साथी जैन बYधुओं के 'वशाल नेटवक
  • 34. 32 का आधार 1मलता है, जहाँ नजी तथा kयावसा यक सफलता पाने हेतु 'वचार तथा क{पनाओं का आदान - दान 9कया जा सकता है, उvच 1श2ा ाnत क7 जा सकती है और अvछº कायपq तय का lान बाँटा जा सकता है 4. ल6Ÿडंग लेडीज् (25 - 40 वष#, ि ?यां) - घर चलाने के सृजनशील कौशल मh बढ़ौiी करना, जैसे खाना पकाना, घर सजाना, 1शशु संगोपन आद) बात मh 'व1भYन 'वषय के 'वशेषl के kयाzयान का आयोजन 5. पZरवार मुख (40 से अ[धक वष#) - सुखी पaरवार बYध, kयवसाय को मजबूती, और पर काम स³पना और नणय लेना, गव के साथ नवृ ती, वा ¬य स बYधी जानकार) क7 सम याओं का समाधान महाराज साहब के साथ परामश करके काय¥म का एक सुचाe कै लेYडर तै²यार 9कया गया है, िजसमh उनके }वारा नयोिजत चातुमास क7 9¥याएं ाथ1मकता से सि म1लत क7 गई हs और शेष समय मh जैन समुदाय क7 जeरतh पूर) करनेवाल) अYय 9¥याएं सि म1लत क7 गई हs। यह कै लेYडर सभी जैन पaरवार को जानकार) के हेतु तथा ऐसे काय¥म मh सहभागी होने को ेaरत करने हेतु समय से पहले भेजा गया है। िजन थान पर थानक / भवन जैसे धा1मक सं थापन का उपयोग जैन समुदाय / समाज के 1मलने के 1लए चातुमास के अलावा स पूण वष मh 9कया जा सकता है, वहाँ ये काय¥म अपने - अपने पूरे समय तक चलते हs। लाभ 1. पaरवार के सभी सद य मh थानक पर आने क7 सं कृ ती का नमाण 2. धम के त लगाव बढ़ाना 3. एक मजबूत नेटवकवाले समाज का ,ह सा बनने का अवसर 4. समुदा यक गुट का नमाण 5. सामािजक सुर2ा
  • 35. 33 6. lान मh वृ'q 7. चुनौ तय का सामना करने के 1लए नये कौशल 'वक1सत करने के अवसर 8. वकशॉप तथा 8लासेस के 1लए दर मh कमी 9. पaरवार तथा समाज मh जो गैप हs उYहh पूरा करना 10. समुदाय मh वा ¬य क7 अvछº जानकार) 11. समुदाय के सभी उप - गुट को एक होने के 1लए एक nलैटफाम अ"तZरत सुझाव - 1. 'व}यमान मुख साधू-साि!वय के वचन के 'वषय का एक अलग कै लेYडर बनाया जाए, िजससे समुदाय मh और अ;धक जानकार) साaरत क7 जा सकती है और लोग को थानक मh आने को ेaरत 9कया जा सकता है | 2. दैनं,दन वचन के वी¶डयो वेबसाईट, you tube पर अपलोड करने क7 9¥या शुe क7 जाए ता9क जो लोग वचन के 1लए य2 उपि थत ना रह पाए, उYहh भी इससे लाभ हो सके । इसका बYध ऐसा हो, िजससे 'वWवभर के हमारे जैन बYधु चातुमास देख सकh , साथ 1मल सकh , साधू-साि!वय के वचन सुन सकh तथा अvछा जीवन _बताने के बारे मh 'वचार कर सकh | ***
  • 36. 34
  • 37. 35 Contents Preface...................................................................................37 Sammelan: A call for harnessing Jain principles for nation building .....39 Shraman Sangh: Towards a new generation, new thoughts and new direction.................................................................................41 Action Plan for Training of Sadhus/Sadhavis ....................................45 Channelizing Woman Power by Creation of Sadhavi wing under Shraman Sangh .....................................................................................49 Action Plan for Creation of a Selfless, Committed Cadre of Sadhak/Sadhika/PracharakforShramanSangh.........................................53 Ideal Chaturmas: A New Perspective .............................................57
  • 38. 36 (Strictly for Internal and private circulation only.)
  • 39. 37 Preface Date: 9th March 2015 To, Parampujya Acharya Samrat Dr. Shivmuniji. M.S. and to all respected Sadhus/Sadhavis, Koti Koti Vandan! On the occasion of the Sadhu Sammelan organized under the aegis of the All India Shwetambar Sthanakwasi Jain Conference held at the behest of H’able Acharya Dr. Shri Shivmuniji M.S and led under the able leadership of respected Shri Neminath ji Jain, I hereby extend my warmest and deepest regards to one and all. It is an earnest desire on behalf of the entire Jain community for the Shraman Sangh to emerge as a powerful institution prepared to scale much greater heights. This Sadhu Sammelan -March 2015 will establish itself as a major milestone for our community as well as our nation. We must ensure that such a momentous and promising occasion which has arisen after 28 long years must not go waste and should herald the beginning of a very decisive and fundamental journey to be undertaken in the times to come. With this intent, I had the privilege to share my ideas and thoughts with Shri Neminath ji and few other senior office bearers two months back during my visit to Indore, with a view to strengthening Shraman Sangh in different ways. In order to take these ideas forward Shri Neminath ji urged me along with Shri Shantilal ji Kawad, a very senior leader of the Jain Samaj to offer ourselves in the advisory role for this Sadhu Sammelan. Shri Shantilal ji Kawad is a very charismatic leader of the Jain Samaj and he took the pains to visit me in Pune to understand my views in greater depth. Subsequently we also got the opportunity to exchange our ideas with Parampujya Acharya Shri Dr. Shivmuniji M.S, few senior Sadhus/Sadhavis and the office bearers of Shraman Sangh.
  • 40. 38 It was decided that we should offer some fundamental suggestions to Acharya ji in this regard. Hence this is a humble attempt from my si put forth my personal views to strengthen the institution of Shraman Sangh. I neither possess nor claim to possess the capability to offer ‘suggestions’ to somebody of Acharya ji’s stature. Hence I sincerely request you all to consider these views as a perspective, and as a prerogative and not in the form of suggestions. The views presented by me are entirely my own and revolve around several important topics/issues. By no means are these views to be construed as the final expression of my thought pro This is simply an attempt to touch upon certain critical aspects. Shri Shantilal ji Kawad may also have his personal views and perspectives in this regard. Multiple means can be conceived towards achieving a common end. These views can also be presented and articulated in different ways by different people. The decisions taken by H’able Acharya ji based on these thoughts will be binding on the entire Jain community and will be abided by everyone with deepest regard and commitment. Service to Jainism and service to the community is the sole objective behind this effort. I have absolutely no intent of criticizing or causing hurt to the sentiments of any Sadhu/Sadhavi and/or office bearer. I have only attempted to offer my views with a multi dimensional perspective. I would like to offer my sincere apologies in case my views offend anybody inadvertently. Yours obediently, Shantilal Muttha It was decided that we should offer some fundamental suggestions to Acharya ji in this regard. Hence this is a humble attempt from my side to put forth my personal views to strengthen the institution of Shraman Sangh. I neither possess nor claim to possess the capability to offer ‘suggestions’ to somebody of Acharya ji’s stature. Hence I sincerely request a perspective, and as a prerogative and not in the form of suggestions. The views presented by me are entirely my own and revolve around several important topics/issues. By no means are these views to be construed as the final expression of my thought process. This is simply an attempt to touch upon certain critical aspects. Shri Shantilal ji Kawad may also have his personal views and perspectives in this regard. Multiple means can be conceived towards achieving a common end. ted and articulated in different ways by different people. The decisions taken by H’able Acharya ji based on these thoughts will be binding on the entire Jain community and will be abided by Service to Jainism and service to the community is the sole objective behind this effort. I have absolutely no intent of criticizing or causing hurt to the sentiments of any Sadhu/Sadhavi and/or office bearer. I have only multi dimensional perspective. I would like to offer my sincere apologies in case my views offend anybody
  • 41. 39 Sammelan: A call for harnessing Jain principles for nation building Spreading the message of Jainism Jainism, one of the oldest religions, prescribes a path of ahimsa and self control, the means by which its followers can attain liberation. It is a religion deeply rooted in the cardinal principles of Ahimsa (non violence), Aparigriha ( non possessiveness) and Anekantavada (non absolutism) as is evident from the teachings of the Lord Mahavir. Such is the profundity of these thoughts of Lord Mahavir that Mahatma Gandhi was himself an ardent practitioner of some of the principles espoused by Lord Mahavir . The philosophy and principles of Jainism have been eternally relevant for the furtherance of mankind and nature. They especially find great merit in today’s’ turbulent times wrecked by hatred, violence, injustice and intolerance. These principles are increasingly being researched worldwide and are being acknowledged as the panacea for the disquiet that is looming large upon the world. As followers of this great religion, we are all blessed to inherit a rich tradition of principles and beliefs that have the power to take each one of us on the path of spiritual purity and enlightenment. This legacy that has been bequeathed on us is not without good reason. This inheritance comes with a message; a message that we all are the ambassadors of each of the profound principles which forms the cornerstone of Jainism and that we must all strive to follow the path suggested by Lord Mahavir. It is with this spirit that we must assume the moral responsibility of letting go of our petty squabbles that can consume us simply because they are a part of our present and affect our daily existence. If we are to be the true practitioners of Jain principles we must empower ourselves to think and act beyond the mundane, think beyond our mutual differences which are inconsequential in relation to the larger cause of Jainsim. We must concentrate on ways and means to propagate these principles and infuse the world at large with their goodness. Jains, as a community constitute barely 0.5% of the total population of India and Shraman Sangh is a miniscule part of this minority. However, inspite of this fact the Jains possess a treasure trove of the most fundamental
  • 42. 40 principles of life which have been passed on from one generation to the next. This asset created by the devout followers of Jainism, of which the Shraman Sangh forms an integral part, should be utilized for the society at large and not be restricted only to the Jain community. The Sangh is an amalgamation of some of the most powerful thinkers and ambassadors of the Jain philosophy and it is of utmost importance that their views, their discourses be brought into the mainstream and be made available to a wider audience. The contribution of Jains should spread out throughout the socio- political landscape of the country and in the international circles. The Sangh must endeavour to make the Jain presence felt, seen and heard more emphatically from a wide range of media platforms available. This has to be done with a sense of urgency and in a focused manner. A possible line of action to this effect is proposed as follows: a) The Shraman Sangh should constitute a committee of Sadhus and Sadhavis which should be entrusted with the responsibility of projecting the work of Jains to the external world. b) This committee should contribute to articles in the social, political, philosophical journals, publications and other forms of media which have a greater penetration and reach. c) The committee should aim at upgrading the current literature available, document the Jain legacy, its work and the research carried out over the years in a presentable format which should then be showcased to the external world at a variety of forums and platforms. d) The committee should appoint few key members to be officially designated as spokespersons to spread the word on Jainism and the work of Jain institutions and the community. These initial but significant steps can go a long way in creating awareness of this movement and in spreading the message of Lord Mahavir. This effort shall serve to preserve the identity of the Jains in the whole world. The contributions of Jains to the world will be more widely and deeply acknowledged and it will throw open a plethora of opportunities for Jains and Jain institutions to serve the mankind, looking beyond their own community. This will truly result in walking along the path prescribed by Lord Mahavir and enable the Jains to offer themselves to the service of mankind and humanity in a manner befitting of the followers of Jainism. ***
  • 43. 41 Shraman Sangh: Towards a new generation, new thoughts and new direction Suggestions for Strengthening Shraman Sangh The era of the 1950s witnessed a momentous phenomenon when highly revered and scholarly Sadhus/Sadhavis belonging to various sects of Jainism came together to form the Shraman Sangh in 1952. This confluence signified a united effort to promote the cause of Jainism and spread the message of love and peace to the world at large through a concerted effort on the part of Jain monasticism. Over last 65 years of its existence the Shraman Sangh has stood firm and undeterred inspite of several upheavals in the past. There have been instances of differences in ideology and outlook amongst several Sadhus and Sadhavis, resulting in their dissention from the Sangh. These and several other undesirable occurrences have threatened to crush and mar the core fabric of the Sangh. However the Sangh, firmly rooted in a rock solid foundation of Jain principles has withstood the test of time and has so far managed to overcome the internal strife that has regularly attempted to rock the foundation. Today the Sangh comprises an overwhelming pool of 1300 Sadhus and Sadhavis all of whom are highly intellectual, competent and are an epitome of what Jainism stands for. This is indeed a matter of great pride for Shraman Sangh. Yet, a pervasive undercurrent of contention, disharmony has been sensed by one and all from time to time which is detrimental to the fundamental existence of the Sangh. In the light of these disquieting signals, it is felt that the time has come to contain these overpowering forces present within each one of us before they assume alarming proportions. The time has come to urge all the members to owe and swear a much greater degree of allegiance to the Sangh and its mission, and go forward with an unwavering faith in the larger cause which the Sangh promotes. Today we are all standing at a crossroad. The future of the Sangh will largely be determined by the direction that we all henceforth resolve to venture into. Hence this sammelan, organized after 28 long years has the potential to serve as the tipping point for the existence of the Sangh. This Sammelan is a sincere attempt to bring together the Sadhus and Sadhavis in their thoughts and action so that a common, unified vision of the Sangh can be
  • 44. 42 put forth and internalized by each one. This is essential to the well being of the Sangh because unless all members swear allegiance to a common cause espoused by the Sangh, unless they share common beliefs and speak the same language, it would be difficult to hold the Sangh together with each passing day. In order to facilitate this transformation certain sweeping changes need to be made in the manner in which the Sangh conducts itself. It is desired that the members be open to these changes for the larger good of the Sangh, the Jain community and above all for the principles of Jainism. Against this challenging backdrop certain changes are being proposed in the functional aspects of the Sangh with the sole intention of strengthening it from within. These are as follows: 1) A comprehensive vision document should be produced within a stipulated time of 3-4 months. This document should be jointly prepared by the Acharya, Yuvacharyas and the Pravartaks after consultations with two external professionals. This document should incorporate the following: a) the philosophy, vision, mission, aims, objectives, guiding principles of the Sangh b) roles and responsibilities, tenures for every position held in the Sangh. c) the code of conduct for every member of the Sangh d) the future roadmap for the Sangh with well defined milestones, short term and long term goals. e) Guidelines for the conduct of important events core to the Sangh like Chaturmas and Sadhu Sadhavi Sammelans. The guidelines for Chaturmas should be created by the office bearers of the Sangh in consultation with Shravak Sangh and members of the Jain Conference f) The grievance redressal system and procedures for the Sangh 2) This vision document should be made accessible to every member of the Sangh for achieving uniformity in intent and action. 3) The tenure for the Acharya should be decided for 15 years, not exceeding the age of 70. This is necessary because 15 years is an optimum time for an individual of that stature to envision, plan and execute the plan in alignment with the roadmap. The tenure of 15 years also paves the way for a younger leader for the subsequent term who