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GROUP :-
GROUP MEMBERS :
 MD. AQUIB KHAN
 AYESHA NEHAL
 AMAR SHAW
 Nitesh Kumar
 SUVAJIT DAS
 deep Shaw
सलीम मोइज़ुद्दीन अब्द़ुल अली (12
नवम्बर, 1896 - 27 ज़ुलाई, 1987) एक
भारतीय पक्षी ववज्ञानी और प्रकृ ततवादी थे.
उन्हें "भारत के बर्डमैन" के रूप में जाना
जाता है, सलीम अली भारत के ऐसे पहले
व्यक्तत थे क्जन्होंने भारत भर में व्यवक्थथत
रूप से पक्षी सवेक्षण का आयोजन ककया और
पक्षक्षयों पर ललखी उनकी ककताबों ने भारत में
पक्षी-ववज्ञान के ववकास में काफी मदद की
है. 1976 में भारत के दूसरे सवोच्च नागररक
सम्मान पद्म ववभूषण से उन्हें सम्मातनत
ककया गया.
1947 के बाद वे बॉम्बे नेच़ुरल हहथरी
सोसाइटी के प्रम़ुख व्यक्तत बने, और
संथथा की खाततर सरकारी सहायता
के ललए उन्होंने अपने प्रभाववत ककया
और भरतप़ुर पक्षी अभयारण्य
(के वलादेव नेशनल पाकड ) के तनमाडण
और एक बांध पररयोजना को रुकवाने
पर उन्होंने काफी जोर हदया जो कक
साइलेंट वेली नेशनल पाकड के ललए
एक खतरा था.
प्रारंलभक जीवन
सलीम अली का जन्म बॉम्बे के एक
स़ुलेमानी बोहरा म़ुक्थलम पररवार में ह़ुआ,
वे अपने पररवार में सबसे छोटे और नौंवे
बच्चे थे. जब वे एक साल के थे तब
उनके वपता मोइज़ुद्दीन का थवगडवास हो
गया और जब वे तीन साल के ह़ुए तब
उनकी माता जीनत-उन-तनथसा का भी
देहांत हो गया.
बच्चों का बचपन मामा अलमरुद्दीन
तैयाबजी, और बेऔलाद चाची, हलमदा
बेगम की देख-रेख में म़ुंबई की खेतवाडी
इलाके में एक मध्यम वगड पररवार में
ह़ुआ. उनके एक और चाचा अब्बास
तैयाबजी थे जो कक प्रलसद्ध भारतीय
थवतंत्रता सेनानी थे.
बॉम्बे नेच़ुरल हहथरी सोसाइटी (बीएनएचएस)
के सचचव र्बल्यू.एस. लमलार्ड की देख-रेख में
सलीम ने पक्षक्षयों पर गंभीर अध्ययन करना
श़ुरू ककया, क्जन्होंने असामान्य रंग की
गौरैया की पहचान की थी क्जसे य़ुवा सलीम
ने खेल-खेल में अपनी बंद़ुक खखलौने से
लशकार ककया था. लमलार्ड ने इस पक्षी की
एक पीले-गले की गौरैया के रूप में पहचान
की, और सलीम को सोसायटी में संग्रहीत
सभी पक्षक्षयों को हदखाया.
उनकी आत्मकथा द फॉल ऑफ ए थपैरो में अली ने
पीले-गदडन वाली गौरैया की घटना को अपने जीवन का
पररवतडन-क्षण माना है तयोंकक उन्हें पक्षी-ववज्ञान की
ओर अग्रसर होने की प्रेरणा वहीं से लमली थी, जो कक
एक असामान्य कै ररयर च़ुनाव था, ववशेष कर उस
समय एक भारतीय के ललए. उनकी प्रारंलभक रूचच
भारत में लशकार से संबंचधत ककताबों पर थी, लेककन
बाद में उनकी रूचच थपोटड-शूहटंग की हदशा में आ गई,
क्जसके ललए उनके पालक-वपता अलमरुद्दीन द्वारा
उन्हें काफी प्रोत्साहना प्राप्त ह़ुआ. आस-पडोस में
अतसर शूहटंग प्रततयोचगता का आयोजन होता था जहां
वे पले-बढे थे और उनके खेल साचथयों में इसकं दर
लमजाड भी थे.
सलीम अपनी प्राथलमक लशक्षा के ललए
अपनी दो बहनों के साथ चगरगौम में
थथावपत जनाना बाइबबल मेडर्कल लमशन
गल्सड हाई थकू ल में भती ह़ुए और बाद में
म़ुंबई के सेंट जेववएर में दाखखला ललया.
लगभग 13 साल की उम्र में वे लसरददड से
पीडडत ह़ुए, क्जसके चलते उन्हें कक्षा से
अतसर बाहर होना पडता था.
उन्हें अपने एक चाचा के साथ रहने के
ललए लसंध भेजा गया क्जन्होंने यह
स़ुझाव हदया था कक श़ुष्क हवा से शायद
उन्हें ठीक होने में मदद लमले और लंबे
समय के बाद वापस आने के बाद बडी
म़ुक्ककल से 1913 में बॉम्बे
ववकवववद्यालय से दसवीं की परीक्षा
उत्तीणड हो पाए.
बमाड और जमडनी
सलीम अली की प्रारंलभक लशक्षा सेंट जेववयसड
कॉलेज, म़ुंबई में ह़ुई. कॉलेज में म़ुक्ककल से भरे
पहले साल के बाद, उन्हें बाहर कर हदया गया और
वे पररवार के वोलफ्रे म (टंग्सटेन) माइतनंग (टंगथटेन
का इथतेमाल कवच बनाने के ललए ककया जाता था
और य़ुद्ध के दौरान महत्वपूरण था) और इमारती
लकडडयों की देख-रेख के ललए
टेवोय, बमाड (टेनासेररम) चले गए. यह क्षेत्र चारों
ओर से जंगलों से तघरा था और अली को अपने
प्रकृ ततवादी (और लशकार) कौशल को उत्तम बनाने
का अवसर लमला.
उन्होंने जे.सी. होपव़ुर् और बथोल्र्
ररबेनरोप के साथ पररचय बढाया जो
कक बमाड में फोरेथट सववडस में थे. सात
साल के बाद 1917 में भारत वापस
लौटने के बाद उन्होंने औपचाररक पढाई
जारी रखने का फै सला ककया. उन्होंने
र्ावर कॉमसड कॉलेज में वाखणक्ययक
कानून और लेखा का अध्ययन ककया.
हालांकक सेंटजेववयर कॉलेज में फादर
एथलबेटड ब्लेटर ने उनकी असली रुचच को
पहचाना है और उन्हें समझाया. र्ावसड
कॉलेज में प्रातः काल की कक्षा में भाग लेने
के बाद, उन्हें सेंट जेववयसड में प्राणी शाथत्र
की कक्षा में भाग लेना था और वे
प्राणीशाथत्र पाठ्यक्रम में प्रततयोचगता करने
में सक्षम थे. बॉम्बे में लम्बे अंतराल की
छ़ु ट्टी के दौरान उन्होंने अपने दूर की
ररकतेदार तहमीना से हदसंबर 1918 में
वववाह ककया.
लगभग इसी समय ववकवववद्यालय की
औपचाररक डर्ग्री न होने के कारण
जूलॉक्जकल सवे ऑफ इंडर्या के एक पक्षी
ववज्ञानी पद को हालसल करने में अली
असमथड रहे थे, क्जसे अंततः एम.एल.
रूनवाल को दे हदया गया. हालांकक 1926 में
म़ुंबई के वप्रंस ऑफ वेल्स संग्रहालय में हाल
में श़ुरू ह़ुए एक प्राकृ ततक इततहास खंर् में
350 रूपए के वेतन पर एक गाइर् के रूप में
व्याख्याता तनय़ुतत होने के बाद उन्होंने
पढाई करने का फै सला ककया.
पक्षीववज्ञान
1930 में भारत लौटने पर उन्होंने
पाया कक गाइर् व्याख्याता के पद को
पैसों की कमी के कारण समाप्त कर
हदया गया है. और एक उपय़ुतत
नौकरी खोजने में वे असमथड थे, उसके
बाद सलीम अली और तहमीना म़ुम्बई
के तनकट ककहहम नामक एक तटीय
गांव में थथानांतररत ह़ुए.
क्व्हथलर ने सलीम का पररचय ररचर्ड
मेनटडजेगन से भी करवाया और दोनों ने
लमलकर अफगातनथतान में अलभयान
ककया. हालांकक सलीम के बारे में
मेनटडजेगन के ववचार भी आलोचनात्मक
थे लेककन वे भी दोथत बन गए. सलीम
अली ने मेनटडजेगन के पक्षी कायों में
क़ु छ भी खास नहीं पाया लेककन बाद के
कई अध्ययनों में कपटता को पाया
गया.
सलीम अली के प्रारंलभक सवेक्षणों में उनकी पत्नी
तहमीना का साथ और समथडन दोनों प्राप्त ह़ुआ,
और एक मामूली सजडरी के बाद 1939 में उनकी
पत्नी की मृत्य़ु हो जाने के बाद वे एकदम टूट गए.
1939 में तहमीना की मृत्य़ु के बाद, सलीम अली
अपनी बहन कम्मो और बहनोई के साथ रहने लगे.
अपनी उत्तराडध यात्रा में अली ने कफन्स
बाया क़ु माऊं तराई की जनसंख्या की कफर से खोज
की लेककन माउंटेन तवाली (ओफ्रे लसया
स़ुपरलसललओसा ) की खोज अलभयान में असफल
रहे, और आज भी यह अज्ञातता बरकरार है.
पक्षी वगीकरण और वगीकरण ववज्ञान के
वववरण के बारे में अली बह़ुत ययादा इच्छ़ु क
नहीं थे और क्षेत्र में पक्षक्षयों का अध्ययन
करने में अचधक रुचच रखते हैं. अथटड मेर ने
ररप्ले को लशकायत करते ह़ुए ललखा कक अली
पयाडप्त नमूनों को इकट्ठा करने में ववफल रहे
हैं: "जहां तक संग्रह करने की बात है म़ुझे
नहीं लगता कक वे कभी श्ृंखला एकत्रीकरण
की आवकयकताओं को समझ सके हैं. शायद
आप ही इसके बारे में उसे समझा सकते हैं."
सम्मान और थमारक
लम्बे समय से प्रोथटेट कैं सर से जूझ रहे 91
वषीय सलीम अली का 1987 में तनधन
ह़ुआ. 1990 में, भारत
सरकार द्वारा कोयंबटूर में सलीम अली
सेंटर फॉर ओतनडथोलोजी एंर् नेच़ुरल
हहथटरी (SACON) को थथावपत ककया गया.
पांडर्चेरी ववकवववद्यालय ने सलीम अली
थकू ल ऑफ इकोलॉजी और एनवायरनमेंटल
साइंसेस की थथापना की.
गोवा सरकार ने सलीम अली बर्ड सेंकट़ुवरी की
थथापना की और के रल में वेम्बानार् के करीब
थाटाकर् पक्षी अभयारण्य भी उन्हीं के नाम पर
है. बंबई में बीएनएचएस के थथान का प़ुनः
नामकरण करते ह़ुए "र्ॉ सलीम अली चौक" ककया
गया. 1972 में, ककट्टी थोंग्लोंग्या ने
बीएनएचएस के संग्रह में गलत नमूनों को
पहचाना और एक नए प्रजातत का वणडन ककया
क्जसे वे लेहटर्ेंस सललमली कहते थे, क्जसे द़ुतनया
का सबसे ववरला चमगादड और
जीनस लेहटर्ेंस की एकमात्र प्रजातत माना गया.
क्व्हथलर और अबऱ्ुलाली क्रमशः रॉक ब़ुश
तवेली (पडर्डक़ु ला अगोनर्ाह सललमली)
की उप-प्रजातत और कफन्ल वववर
(प्लोलसअस मेगाच़ुडस सललमली) पूवोत्तर
जनसंख्या का नाम भी उनके नाम पर
रखा गया. क्व्हथलर और ककतनयर द्वारा
ब्लैक-रम्प्र् फ्लैमबैक व़ुर्पेकर
(डर्नोवपएम बेंघालेंस तहलमने ) की एक
उप-प्रजातत का नाम उनकी पत्नी की
मृत्य़ु के बाद रखा गया.
सलीम अली की क़ु छ तथवीरें
सलीम अली के क़ु छ ककताबें
आशा है कक
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सालिम अली {Ankur Bagchi}

  • 2. GROUP MEMBERS :  MD. AQUIB KHAN  AYESHA NEHAL  AMAR SHAW  Nitesh Kumar  SUVAJIT DAS  deep Shaw
  • 3.
  • 4.
  • 5. सलीम मोइज़ुद्दीन अब्द़ुल अली (12 नवम्बर, 1896 - 27 ज़ुलाई, 1987) एक भारतीय पक्षी ववज्ञानी और प्रकृ ततवादी थे. उन्हें "भारत के बर्डमैन" के रूप में जाना जाता है, सलीम अली भारत के ऐसे पहले व्यक्तत थे क्जन्होंने भारत भर में व्यवक्थथत रूप से पक्षी सवेक्षण का आयोजन ककया और पक्षक्षयों पर ललखी उनकी ककताबों ने भारत में पक्षी-ववज्ञान के ववकास में काफी मदद की है. 1976 में भारत के दूसरे सवोच्च नागररक सम्मान पद्म ववभूषण से उन्हें सम्मातनत ककया गया.
  • 6. 1947 के बाद वे बॉम्बे नेच़ुरल हहथरी सोसाइटी के प्रम़ुख व्यक्तत बने, और संथथा की खाततर सरकारी सहायता के ललए उन्होंने अपने प्रभाववत ककया और भरतप़ुर पक्षी अभयारण्य (के वलादेव नेशनल पाकड ) के तनमाडण और एक बांध पररयोजना को रुकवाने पर उन्होंने काफी जोर हदया जो कक साइलेंट वेली नेशनल पाकड के ललए एक खतरा था.
  • 7. प्रारंलभक जीवन सलीम अली का जन्म बॉम्बे के एक स़ुलेमानी बोहरा म़ुक्थलम पररवार में ह़ुआ, वे अपने पररवार में सबसे छोटे और नौंवे बच्चे थे. जब वे एक साल के थे तब उनके वपता मोइज़ुद्दीन का थवगडवास हो गया और जब वे तीन साल के ह़ुए तब उनकी माता जीनत-उन-तनथसा का भी देहांत हो गया.
  • 8.
  • 9. बच्चों का बचपन मामा अलमरुद्दीन तैयाबजी, और बेऔलाद चाची, हलमदा बेगम की देख-रेख में म़ुंबई की खेतवाडी इलाके में एक मध्यम वगड पररवार में ह़ुआ. उनके एक और चाचा अब्बास तैयाबजी थे जो कक प्रलसद्ध भारतीय थवतंत्रता सेनानी थे.
  • 10. बॉम्बे नेच़ुरल हहथरी सोसाइटी (बीएनएचएस) के सचचव र्बल्यू.एस. लमलार्ड की देख-रेख में सलीम ने पक्षक्षयों पर गंभीर अध्ययन करना श़ुरू ककया, क्जन्होंने असामान्य रंग की गौरैया की पहचान की थी क्जसे य़ुवा सलीम ने खेल-खेल में अपनी बंद़ुक खखलौने से लशकार ककया था. लमलार्ड ने इस पक्षी की एक पीले-गले की गौरैया के रूप में पहचान की, और सलीम को सोसायटी में संग्रहीत सभी पक्षक्षयों को हदखाया.
  • 11. उनकी आत्मकथा द फॉल ऑफ ए थपैरो में अली ने पीले-गदडन वाली गौरैया की घटना को अपने जीवन का पररवतडन-क्षण माना है तयोंकक उन्हें पक्षी-ववज्ञान की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा वहीं से लमली थी, जो कक एक असामान्य कै ररयर च़ुनाव था, ववशेष कर उस समय एक भारतीय के ललए. उनकी प्रारंलभक रूचच भारत में लशकार से संबंचधत ककताबों पर थी, लेककन बाद में उनकी रूचच थपोटड-शूहटंग की हदशा में आ गई, क्जसके ललए उनके पालक-वपता अलमरुद्दीन द्वारा उन्हें काफी प्रोत्साहना प्राप्त ह़ुआ. आस-पडोस में अतसर शूहटंग प्रततयोचगता का आयोजन होता था जहां वे पले-बढे थे और उनके खेल साचथयों में इसकं दर लमजाड भी थे.
  • 12. सलीम अपनी प्राथलमक लशक्षा के ललए अपनी दो बहनों के साथ चगरगौम में थथावपत जनाना बाइबबल मेडर्कल लमशन गल्सड हाई थकू ल में भती ह़ुए और बाद में म़ुंबई के सेंट जेववएर में दाखखला ललया. लगभग 13 साल की उम्र में वे लसरददड से पीडडत ह़ुए, क्जसके चलते उन्हें कक्षा से अतसर बाहर होना पडता था.
  • 13. उन्हें अपने एक चाचा के साथ रहने के ललए लसंध भेजा गया क्जन्होंने यह स़ुझाव हदया था कक श़ुष्क हवा से शायद उन्हें ठीक होने में मदद लमले और लंबे समय के बाद वापस आने के बाद बडी म़ुक्ककल से 1913 में बॉम्बे ववकवववद्यालय से दसवीं की परीक्षा उत्तीणड हो पाए.
  • 14.
  • 15. बमाड और जमडनी सलीम अली की प्रारंलभक लशक्षा सेंट जेववयसड कॉलेज, म़ुंबई में ह़ुई. कॉलेज में म़ुक्ककल से भरे पहले साल के बाद, उन्हें बाहर कर हदया गया और वे पररवार के वोलफ्रे म (टंग्सटेन) माइतनंग (टंगथटेन का इथतेमाल कवच बनाने के ललए ककया जाता था और य़ुद्ध के दौरान महत्वपूरण था) और इमारती लकडडयों की देख-रेख के ललए टेवोय, बमाड (टेनासेररम) चले गए. यह क्षेत्र चारों ओर से जंगलों से तघरा था और अली को अपने प्रकृ ततवादी (और लशकार) कौशल को उत्तम बनाने का अवसर लमला.
  • 16. उन्होंने जे.सी. होपव़ुर् और बथोल्र् ररबेनरोप के साथ पररचय बढाया जो कक बमाड में फोरेथट सववडस में थे. सात साल के बाद 1917 में भारत वापस लौटने के बाद उन्होंने औपचाररक पढाई जारी रखने का फै सला ककया. उन्होंने र्ावर कॉमसड कॉलेज में वाखणक्ययक कानून और लेखा का अध्ययन ककया.
  • 17.
  • 18. हालांकक सेंटजेववयर कॉलेज में फादर एथलबेटड ब्लेटर ने उनकी असली रुचच को पहचाना है और उन्हें समझाया. र्ावसड कॉलेज में प्रातः काल की कक्षा में भाग लेने के बाद, उन्हें सेंट जेववयसड में प्राणी शाथत्र की कक्षा में भाग लेना था और वे प्राणीशाथत्र पाठ्यक्रम में प्रततयोचगता करने में सक्षम थे. बॉम्बे में लम्बे अंतराल की छ़ु ट्टी के दौरान उन्होंने अपने दूर की ररकतेदार तहमीना से हदसंबर 1918 में वववाह ककया.
  • 19. लगभग इसी समय ववकवववद्यालय की औपचाररक डर्ग्री न होने के कारण जूलॉक्जकल सवे ऑफ इंडर्या के एक पक्षी ववज्ञानी पद को हालसल करने में अली असमथड रहे थे, क्जसे अंततः एम.एल. रूनवाल को दे हदया गया. हालांकक 1926 में म़ुंबई के वप्रंस ऑफ वेल्स संग्रहालय में हाल में श़ुरू ह़ुए एक प्राकृ ततक इततहास खंर् में 350 रूपए के वेतन पर एक गाइर् के रूप में व्याख्याता तनय़ुतत होने के बाद उन्होंने पढाई करने का फै सला ककया.
  • 20. पक्षीववज्ञान 1930 में भारत लौटने पर उन्होंने पाया कक गाइर् व्याख्याता के पद को पैसों की कमी के कारण समाप्त कर हदया गया है. और एक उपय़ुतत नौकरी खोजने में वे असमथड थे, उसके बाद सलीम अली और तहमीना म़ुम्बई के तनकट ककहहम नामक एक तटीय गांव में थथानांतररत ह़ुए.
  • 21.
  • 22. क्व्हथलर ने सलीम का पररचय ररचर्ड मेनटडजेगन से भी करवाया और दोनों ने लमलकर अफगातनथतान में अलभयान ककया. हालांकक सलीम के बारे में मेनटडजेगन के ववचार भी आलोचनात्मक थे लेककन वे भी दोथत बन गए. सलीम अली ने मेनटडजेगन के पक्षी कायों में क़ु छ भी खास नहीं पाया लेककन बाद के कई अध्ययनों में कपटता को पाया गया.
  • 23. सलीम अली के प्रारंलभक सवेक्षणों में उनकी पत्नी तहमीना का साथ और समथडन दोनों प्राप्त ह़ुआ, और एक मामूली सजडरी के बाद 1939 में उनकी पत्नी की मृत्य़ु हो जाने के बाद वे एकदम टूट गए. 1939 में तहमीना की मृत्य़ु के बाद, सलीम अली अपनी बहन कम्मो और बहनोई के साथ रहने लगे. अपनी उत्तराडध यात्रा में अली ने कफन्स बाया क़ु माऊं तराई की जनसंख्या की कफर से खोज की लेककन माउंटेन तवाली (ओफ्रे लसया स़ुपरलसललओसा ) की खोज अलभयान में असफल रहे, और आज भी यह अज्ञातता बरकरार है.
  • 24. पक्षी वगीकरण और वगीकरण ववज्ञान के वववरण के बारे में अली बह़ुत ययादा इच्छ़ु क नहीं थे और क्षेत्र में पक्षक्षयों का अध्ययन करने में अचधक रुचच रखते हैं. अथटड मेर ने ररप्ले को लशकायत करते ह़ुए ललखा कक अली पयाडप्त नमूनों को इकट्ठा करने में ववफल रहे हैं: "जहां तक संग्रह करने की बात है म़ुझे नहीं लगता कक वे कभी श्ृंखला एकत्रीकरण की आवकयकताओं को समझ सके हैं. शायद आप ही इसके बारे में उसे समझा सकते हैं."
  • 25. सम्मान और थमारक लम्बे समय से प्रोथटेट कैं सर से जूझ रहे 91 वषीय सलीम अली का 1987 में तनधन ह़ुआ. 1990 में, भारत सरकार द्वारा कोयंबटूर में सलीम अली सेंटर फॉर ओतनडथोलोजी एंर् नेच़ुरल हहथटरी (SACON) को थथावपत ककया गया. पांडर्चेरी ववकवववद्यालय ने सलीम अली थकू ल ऑफ इकोलॉजी और एनवायरनमेंटल साइंसेस की थथापना की.
  • 26. गोवा सरकार ने सलीम अली बर्ड सेंकट़ुवरी की थथापना की और के रल में वेम्बानार् के करीब थाटाकर् पक्षी अभयारण्य भी उन्हीं के नाम पर है. बंबई में बीएनएचएस के थथान का प़ुनः नामकरण करते ह़ुए "र्ॉ सलीम अली चौक" ककया गया. 1972 में, ककट्टी थोंग्लोंग्या ने बीएनएचएस के संग्रह में गलत नमूनों को पहचाना और एक नए प्रजातत का वणडन ककया क्जसे वे लेहटर्ेंस सललमली कहते थे, क्जसे द़ुतनया का सबसे ववरला चमगादड और जीनस लेहटर्ेंस की एकमात्र प्रजातत माना गया.
  • 27. क्व्हथलर और अबऱ्ुलाली क्रमशः रॉक ब़ुश तवेली (पडर्डक़ु ला अगोनर्ाह सललमली) की उप-प्रजातत और कफन्ल वववर (प्लोलसअस मेगाच़ुडस सललमली) पूवोत्तर जनसंख्या का नाम भी उनके नाम पर रखा गया. क्व्हथलर और ककतनयर द्वारा ब्लैक-रम्प्र् फ्लैमबैक व़ुर्पेकर (डर्नोवपएम बेंघालेंस तहलमने ) की एक उप-प्रजातत का नाम उनकी पत्नी की मृत्य़ु के बाद रखा गया.
  • 28. सलीम अली की क़ु छ तथवीरें
  • 29. सलीम अली के क़ु छ ककताबें
  • 30.
  • 31. आशा है कक आप को - पसंद आया