यदि नारियां ऐसा सोचती हैं कि आधुनिक चिकित्सकों ने उनकी लैंगिक समस्याओं को अनदेखा किया है, उनके लैंगिक कष्टों के निवारण हेतु समुचित अनुसंधान नहीं किये हैं तो वे सही हैं। सचमुच हमें स्त्रियों के लैंगिक विकारों की बहुत ही सतही और ऊपरी जानकारी है। हम उनकी अधिकतर समस्याओं को कभी भूत प्रेत की छाया तो कभी उसकी बदचलनी का लक्षण या कभी मनोवैज्ञानिक मान कर उन्हें ज़हरीली दवायें खिलाते रहे, झाड़ फूँक करते रहे, प्रताड़ित करते रहे, जलील करते रहे, त्यागते रहे और वो अबला जलती रही, कुढ़ती रही, घुटती रही, रोती रही, सुलगती रही, सिसकती रही, सहती रही..............
लेकिन अब समय बदल रहा है। यह सदी नारियों की है। अब जहाँ नारियाँ स्वस्थ, सुखी और स्वतंत्र रहेंगी, वही समाज सभ्य माना जायेगा। अब शोधकर्ताओं ने उनकी¬ समस्याओं पर संजीदगी से शोध शुरू कर दी है। देर से ही सही आखिरकार चिकित्सकों ने नारियों की समस्याओं के महत्व को समझा तो है। ये स्त्रियों के लिये आशा की किरण है। 1999 में अमेरिकन मेडीकल एसोसियेशन के जर्नल (JAMA) में प्रकाशित लेख के अनुसार 18 से 59 वर्ष के पुरुषों और स्त्रियों पर सर्वेक्षण किये गये और 43% स्त्रियों और 31% पुरुषों में कोई न कोई लैंगिक विकार पाये गये। 43% का आंकड़ा बहुत बड़ा है जो दर्शाता है कि समस्या कितनी गंभीर है।