अलसी - एक चमत्कारी आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक दैविक भोजन
“पहला सुख निरोगी काया, सदियों रहे यौवन की माया।” आज हमारे वैज्ञानिकों व चिकित्सकों ने अपनी शोध से ऐसे आहार-विहार, आयुवर्धक औषधियों, वनस्पतियों आदि की खोज कर ली है जिनके नियमित सेवन से हमारी उम्र 200-250 वर्ष या ज्यादा बढ़ सकती है और यौवन भी बना रहे। यह कोरी कल्पना नहीं बल्कि यथार्थ है। आपको याद होगा प्राचीन काल में हमारे ऋषि मुनि योग, तप, दैविक आहार व औषधियों के सेवन से सैकड़ों वर्ष जीवित रहते थे। इसीलिए ऊपर मैंने पुरानी कहावत को नया रुप दिया है। ऐसा ही एक दैविक आयुवर्धक भोजन है “अलसी” जिसकी आज हम चर्चा करेंगें।
पिछले कुछ समय से अलसी के बारे में पत्रिकाओं, अखबारों, इन्टरनेट, टी.वी. आदि पर बहुत कुछ प्रकाशित होता रहा है। बड़े शहरों में अलसी के व्यंजन जैसे बिस्कुट, ब्रेड आदि बेचे जा रहे हैं। भारत के विख्यात कार्डियक सर्जन डॉ. नरेश त्रेहान अपने रोगियों को नियमित अलसी खाने की सलाह देते हैं ताकि वह उच्च रक्तचाप व हृदय रोग से मुक्त रहे। विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) अलसी को सुपर स्टार फूड का दर्जा देता है। आयुर्वेद में अलसी को दैविक भोजन माना गया है। मैंने यह भी पढ़ा है कि सचिन के बल्ले को अलसी का तेल पिलाकर मजबूत बनाया जाता है तभी वो चौके-छक्के लगाता है और मास्टर ब्लास्टर कहलाता है। आठवीं शताब्दी में फ्रांस के सम्राट चार्ल मेगने अलसी के चमत्कारी गुणों से बहुत प्रभावित थे और चाहते थे कि उनकी प्रजा रोजाना अलसी खाये और निरोगी व दीर्घायु रहे इसलिए उन्होंने इसके लिए कड़े कानून बना दिए थे।
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अलसी - एक चमत्कारी आयुवधर्क, आरोग्यवधर्क दैिवक
“पहला सुख िनरोगी काया, सिदयों रहे यौवन क� माया” आज हमारे वै�ािनकों िचिकत्सकों ने अपनी शोध से ऐस
आहार-िवहार, आयुवधर्क औषिधय, वनस्पितय आिद क� खोज कर ली है िजनके िनयिमत सेवन से हमारी उम्
200-250 वषर् य ज्यादा बढ़ सकती है और यौवन भी बना रहे। यह कोरी कल्पना नहीं बिल्क य है। आपको
याद होगा प्राचीन कालमें हमारे ऋिषिन योग, तप, दैिवक आहार व औषिधयों के सेवन से सैकड़ों वषर् जीि
रहते थे। इसीिलए ऊपर मैंने पुरान कहावत को नया �प िदया है। ऐसा ही एक दैिवक आयुवधर्क भोजन है“अलसी”
िजसक� आज हम चचार् करेंग
िपछले कु छ समय से अलसी के बारे में पित्रक, अखबारो, इन्टरनट, टी.वी. आिद पर बह�त कु छ प्रकािशत होत
रहा है। बड़े शहरों में अलसी के व्य जैसे िबस्कु, ब्रेड आिद बेचे जा रहे हैं। भारत के िवख्यात कािडर्यक स
डॉ. नरेश त्रेहान अपने रोिगयों को िनयिमत अलसी खाने क� सलाह देते हैं तािक वह उच्च र�चाप व �दय रो
मु� रहे। िव� स्वास्थ्य संगठW.H.O.) अलसी को सुपर स्टार फ ूड का दजा देता है। आयुव�द में अलसी को
दैिवक भोजन माना गया है। मैंने यह भी पढ़ा ह िक सिचन के बल्ले को अलसी का तेल िपलाकर मजबूत बनाया
जाता है तभी वो चौके -छक्के लगाता है और मास्टर ब्लास्टर कह है। आठवीं शताब्दी फ्रांस के सम्राट च
मेगने अलसी के चमत्कारी गुणों से बह�त प्रभािव और चाहते थे िक उनक� प्रजा रोजाना अलसी खाये औ
िनरोगी व दीघार्यु रह इसिलए उन्होंने इसके िलए कड़े कानून बना िदए थ
यह सब पढ़कर मेरी िज�ासा बढ़ती रही और मैंने अलसी से सम्बिन्धत िजतने लेख उपलब्ध हो सके पढ़े व
अलसी पर ह�ई शोध के बारे में भी िवस्तार पढ़ा। मैं अत्यंत प्रभािवत ह�आ िक ये अलसी िजसका हम नाम भी
गये थे, हमारे स्वास्थ्य के िलये इतनी ज्यादा लाभप, जीने क� राह है, लाइफ लाइन है। िफर क्या थ, मैंने स्वय
अलसी का सेवन शु� िकया और अपने रोिगयों को भी अलसी खाने के िलए प्रे�रत करता रहा। कुछ महीने बाद म
िजन्दगी में आ�यर्जनक बदलाव आना शु� ह�आ। मैं अपार शि� व उत्स संचार अनुभव करने लगा, शरीर
चुस्ती फुत� तथा
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गज़ब के आत्मिव�ास से भ गया। तनाव, आलस्य व क्रोध सब गायब हो चुके थे। मेरा उच्च र, डायिबटीज़
ठीक हो चुके थे। अब मैं मानिसक व शारी�रक �प से उतना ह शि�शाली महसूस कर रहा था जैसािक 30 वषर्
पहले था।
अलसी पोषक तत्वों का खज़ान-
आइये, हम देखें िक इस चमत्का, आयुवधर्, आरोग्यवधर्क व दैिवक भोजन अलसीमें ऐसी क्या खास बात
अलसी का बोटेिनकल नाम िलनम यूज़ीटेटीिसमम् यानी अित उपयोगी बीज है। इसे अंग्रेजीमें िलनसीड
फ्लेक्सस, गुजराती में अड़स, िबहार में ितस, बंगाली में िशी, मराठी में जवा, कन्नड़ में अग, तेलगू
में अिवसी िजंजाल, मलयालम में चे�चना िवद, तिमल में अली िवराई और उिड़या में पेसी कहते हैं। अलसी के पौ
में नीले फ ूल आते हैं। अलसी का बीज ितल जैसा छो, भूरे या सुनहरे रंग का व सतह िचकनी होती है। प्राचीनल
से अलसी का प्रयोग भो, कपड़ा, वािनर्श व रंगरोगन बनाने के िलये होता आया है। हमारी दादी मां जब हमें फो-
फुं सी हो जाते थे तो अलसी क� पुलिटस बनाकर बांध देती थी। अलसी में मुख्य पौि�क तत्व ओम-3 फेटी एिसड
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एल्फ-िलनोलेिनक एिसड, िलगनेन, प्रोटीन व फाइबर ते हैं। अलसी गभार्वस्था से वृद्धावस्था तक फायदेमं
महात्मा
गांधीजी ने स्वास्थ्य पर भी शोध क� व बह�त सी पुस्तकें भी िलखीं। उन्होंने अलसी पर भी , इसके
चमत्कारी गुणों को पहचाना और अपनी एक पुस्तक में िलख, “जहां अलसी का सेवन िकया जायेगा, वह समाज
स्वस्थ व समृद्ध रह”
आवश्यक वसा अम्ल ओमे-3 व ओमेगा-6 क� कहानीः-
अलसी में लगभग18-20 प्रितशत ओमे-3 फै टी एिसड ALA होते हैं। अलस ओमेगा-3 फै टी एिसड का पृथ्वी पर
सबसे बड़ा स्रोत है। हमारे स्वास्थ अलसी के चमत्कारी प्रभावों को भली भांित समझने कए हमें ओमेग-3 व
ओमेगा-6 फेटी एिसड को िवस्तार से समझना होगा। ओमेग-3 व ओमेगा-6 दोनों ह हमारे शरीर के िलये आवश्यक
हैं यानी ये शरीर में नहीं बन स, हमे इन्हें भोजन द्वारा ही ग्रहण करना होता है।-3 अलसी के अलावा
मछली, अखरोट, िचया आिद में भी िमलते ह। मछली मेंDHA और EPA नामक ओमेगा-3 फै टी एिसड होते है, ये
अलसी में मौजूदALA से शरीर में बन जाते हैं
ओमेगा-6 मूंगफली, सोयाबीन, सेफ्लाव, मकई आिद तेलों में प्रचुर मात्रा म है। ओमेगा-3 हमारे शरीर के
िविभन्न अंगों िवशेष तौर पर मिस्, स्नायुतं व ऑखों के िवकास व उनक सुचा� �प से संचालन में महत्वपू
योगदान करते हैं। हमारी कोिशकाओं क� िभि�यां ओमेग-3 यु� फोस्फोिलिप से बनती हैं। जब हमारे शरीर मे
ओमेगा-3 क� कमी हो जाती है तो ये िभि�यां मुलायम व लचीले ओमेगा-3 के स्थान पर कठोर व कु�प ओमगा-6
फै ट या ट्रांस फैट से बनती है। और यहीं से हमारे शरीर में उच्च , मधुमेह प्रक-2, आथ्रार्इ, मोटापा,
कै ंस, आिद बीमा�रयों क� शु�आत ह जाती है।
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अल्फ-िलनोलेिनक एिसड (ALA) के कायर
o यह उत्कृ� प्-आक्सीकरक है और शरीर क� र�ा प्रणाली�ढ़ रखता है।
o प्रदाह या इन्फ्लेमेशन को शांत करता
o ऑखो, मिस्तष्क ओर ना-तन्त्र का िवकास व इनक� हर कायर् प्रणाली मे, अवसाद और व अन्य
मानिसक रोगों के उपचार में सहा, स्मरण शि� और शै�िणक �मता को बढ़ाये
o आपरािधक गितिविध से दूर रखे।
o ई.पी.ए. और डी.एच.ए. का िनमार्ण
o र� चाप व र� शकर ्र-िनयन्त, कॉलेस्ट्-िनयोजन, जोड़ों को स्वस्थ रखे
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o भार कम करता है, क्योंिक यह बुिनयादी चयापचय द(BMR) बढ़ाता है, वसा कम करता है, खाने क�
ललक कम करता है।
o यकृत, वृक्क और अन्य सभी ग्रंिथयों क�-�मता बढ़ाये।
o शुक्राणुओं के िनमार्ण में सहायता कर
शरीर में ओमेग-3 क� कमी व इन्फ्लेमेशन पैदा करने वाले ओमे-6 के ज्याद हो जाने से प्रोस्टाग्ले-ई 2
बनते हैं जो िलम्फोसाइट्स व माक्र को अपने पास एकित्रत करते हैं व िफर ये साइटोकाइन व कोक्स एंज
का िनमार्ण करते हैं। और शरीरमें इनफ्लेमेशन फैलाते हैं। मैं आपको सरल से समझाता ह�ं। िजस प्रकार ए
अच्छी िफल्म बनाने के िलए नायक और खलना दोनों ही आवश्यक होते हैं। वैसे ही हमारे शरीर के ठीक प्
से संचालन के िलये ओमेगा-3 व ओमेगा-6 दोनों ही बराबर यान 1:1 अनुपात में चािहये। ओमेग-3 नायक हैं तो
ओमेगा-6 खलनायक हैं। ओमेग-6 क� मात्रा बढ़ने से हमारे शर में इन्फ्लेमेशन फैलते है तो ओम-3 इन्फ्लेमेश
दूर करते है, मरहम लगाते हैं। ओमेग-6 हीटर है तो ओमेगा-3 सावन क� ठंडी हवा है। ओमेगा-6 हमे तनाव, सरददर,
िडप्रेशन का िशकार बनाते हैं तो ओम-3 हमारे मन को प्रसन्न रखते, क्रोध भगाते , स्मरण शि� व बुिद्धम
बढ़ाते हैं ओमेगा-6 आयु कम करते हैं, तो ओमेग-3 आयु बढ़ाते हैं। ओमेग-6 शरीर मे रोग पैदा करते हैं तो ओमेग-
3 हमारी रोग प्रितरोधक �मता बढ़ाते । िपछले कु छ दशकों से हमारे भोजन में ओमे-6 क� मात्रा बढ़
जा रही हैं और ओमेगा-3 क� कमी होती जा रही है। मल्टीनेशनल कम्पिन द्वारा बेचे जा रहे फास्ट फूड व ज
फूड ओमेगा-6 से भरपूर होते हैं। बाजा में उपलब्ध सभी �रफाइंड तेल भी ओमे-6 फै टी एिसड से भरपूर होते हैं।
हाल ही में ह�ई शोध से पता चला है िक हमारे भोजन में ओमे-3 बह�त ही कम और ओमेगा-6 प्रचुर मात्रा में होन
कारण ही हम उच्च र�चा, �दयाघात, स्ट्, डायिबटीज़, मोटापा, गिठया, अवसाद, दमा, कै ंसर आिद रोगों क
िशकार हो रहे हैं। ओमेग-3 क� यह कमी 30-60 ग्राम अलसी से पूरी कर सकते हैं। ओमेगा-3 ही अलसी को सुपर
स्टार फ ूड का दजार् िदलाते हैं
�दय और प�रवहन तंत्र के िलए गुणकार-
अलसी हमारे र�चाप को संतुिलत रखती है। अलसी हमारे र� में अच् कॉलेस्ट्रॉHDL-Cholesterol) क�
मात्रा को बढ़ाती हऔर ट्राइग्लीसराइड्स व खराब कॉलेस्टLDL-Cholesterol) क� मात्रा को करती है।
अलसी िदल क� धमिनयों में खून के थक्के बनने से रोकती है �दयाघात व स्ट्रोक जैसी बीमा�रयों से ब
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करती है। अलसी सेवन करने वालो को िदल क� बीमा�रयों के कारण अकस्मात मृत्यु होती। �दय क� गित को
िनयंित्रत रखती है और वेन्ट्रीकुलर ए�रिद्मया से होने वाली मृत बह�त कम करती है।
कै ंसर रोधी िलगनेन का पृथ्वी पर सबसे बड़ा �ो-
िलगनेन अत्यन्त महत्वपूणर् सात िसतारा पौषक तत, िजसका पृथ्वी पर सबसे बड़ा स्रोलसी है। िलगनेन के
अन्य स्रोत जैसे क, बाजरा, जौ, सोयाबीन आिद में िलगनेन क� मात्रा नगण्-6 माइको ग्राम िलगनेन प्रित ग
होती है जबिक अलसी में िलगनेन क� मात्रा 800 माइक्रोग्राम प्रितग्राम होती है। िलगनेन बीज के बाहर
होता है। िलगनेन अलसी के तेल में नहीं होता है। अलसीमें पाये जाने वाले िलगनेन का रसायि नक न
सीकोआइसोले�रिस रेज़ीनोल डाई-ग्लूकोसाइड SDG) है। ये पोलीफेनोल श्रेणीमें आते हSDG क� खोज तो
1956 में हो गई थ, पर िविभन्न खाद्यान्नों में िलगनेन क� मात्रा नगण्य होने के कारओंने इस पर िवशेष
ध्यान नहीं िदया। 1980में ह�ए परी�णों में यह देखा गया िक स्तन कैंसर से ग्रिसत मिहलाओं के शरीर म
क� मात्रा सामान्य मिहलाओं से बह�त कम होती थी और शाकाहा�रयों के शरीर में िलगनेन क� मात्रा ज्यादा,
तो दुिनया भर के शोधकतारओंने िलगनेन को कै ंसर के उपचार में एक आशा क� िकरण के �पमें देखा और दुिन
भर में िलगनेन पर शोध होने लगी। िलगनेन पर अमरीका क� राष्ट्रीय कैंसर संस्थान भी शोध कर रही है
इस नतीजे पर पह�ंचा है िलगनेन कै ंसररोधी है। िलगनेन हमें प्रो, बच्चेदान, स्त, आंत, त्वचा आिद के कैंसर स
बचाता हैं जो ि�यां प्रचुर मात्रा में िलगनेन यु� भोजन करती है उन्हें स, युट्रस कै, आंत का कै ंसर होने
क� सम्भावना कम रहती हैं। एड्स �रसचर् अिसस इंिस्टट्यूट ARAI) सन् 2002 से एड्स के रोिगयों पर िलगनेन
के पभावों प शोध कर रही है और आ�यर्जनक प�रणाम सामने आए हैंARAI के िनद�शक डॉ. डेिनयल देव्ज
कहते हैं िक जल्दी ही िलगनेन एड्स का सस, सरल और कारगर उपचार सािबत होने वाला है।
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िलगनेन दो प्रकार के होते हैं- वानस्पितक िलगनेन SDG) और स्तनधा�रयों पाये जाने वाले
कोआइसोले�रिसरेज़ीनोलिलगनेन सी (SECO), एन्ट्रोिडयED) और एन्ट्रोलेक्टEL) । जब हम
वनस्पितक िलगनेन SDG) सेवन करते हैं तो आंतो में िवद्यमान क�टाणु इनको स्तनधारी िलगनेन ED
और EL में प�रवितर्त कर देते हैं।
कै ंसर समेत ई बीमा�रयों क� शु�आत मु� कणों से होने वाली �ित के कारण होती है। आजकल �रफाइंड त,
ट्रांसफ, फास्टफ ू, जंकफूड, तले ह�ए खाद्य पदा, िविभन्न प्रकार के िवि, प्रदूषण आिद के कारण शरीरम
मु� कणों से होने वाली �ित में भारी वृिद्ध ह�ई है। सामानटीऑक्सीडेंट मु� कणों के इस आक्रमण को िन
करने में असमथर् होते , फलस्व�प हम िविभन्न रोगों से ग्रिसत हो जाते हैं। शरीर में उपिस्थत एन्टी
और मु� कणों का सन्तुलन ही स्वास्थ्य और रोग या जीवन और मृत्यु के बीच संतुलन तय करत
िव� िक कई संस्थाओं मे िलगनेन पर शोध ह�आ है और शोधकतार् इस िनष्कषर् पर पह�ंचे हैं िक िलगनेन िव-ई
से भी ज्यादा शि�शाली एन्-ऑक्सीडेन्ट है। स्तन धारSGD िलगनेन तो िवटािमन-ई से लगभग पांच गुना
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ज्यादा शि�शाली एन्टीऑक्सीडेन्ट है। िलगकॉलेस्ट्रोल करता है और ब्लड शुगर िनयंित्रत रखता है
िलगनेन जीवाणुरोधी, िवषाणुरोधी, एन्ट-फंगल और कै ंसररोधी है।
डॉ. के नेथ शेसेल ई.एच. डी. जो िचल्ड्रनस होिस्पटल मेिडकल सेंटर िसनिसनाटी के आचायर् डॉ. केनेथ
ई.एच.डी. ने पहली बार यह पता लगाया था क� िलगनेन का सबसे बड़ा स्रोत अलसी है। ह�आ यूँ था क� 1978म
डॉ. के नेथ और उनके साथी िलगनेन पर शोध कर रहे थे। और इस हेतु वे लोगों के मूत्र में िलगनेन क� मात्रा
करते थे लेिकन एक बार िकसी सेम्पल में िलगनेन क� मात्रा असाधारण �प से ज्यादा थी। उन्होंने शायद
टेस्ट करने में गलती हो गई है परन्तु उस सेम्पल में हर बार िलगनेन क� मात्रा ज्यादा आ रही थी। जब
को बुलाकर पूछताछ क� तो उसने बताया िक वह रोजाना अपनी रोटी में अलसी िमलाता था।
िलगनेन वनस्पित जगत में पाये जाने वाला महत्वपूणर् पौषक तत्व �ी हाम�न ईस्ट्रोजन का वानस्प
प्रित�प है और नारी जीवन क� िविभन्न अवस्थाओं जैसे रज, गभार्वस्, प्र, मातृत्व और रजिनवृि� में
िविभन्न हाम�न का समुिचत संतुलन रखता है। िलगनेन मािसकधमर् को िनयिमत और संतुिलत रखता है। िलगनेन
बांझपन और अभ्स्त गभर्पात का प्राकृितक उपचार है। िलगनेन दुग्धवध, यिद मां के आंचल में स्तनमें द
नहीं आ रहा है तो अलसी िखलाने के 24 घंटे के भीतर स्तन दूध से भर जाते हैं। यिद अलसी का सेवन करती है
तो उसके दूध में पयार्� ओमे-3 रहता है और बच्चा अिधक बुिद्ध व स्वस्थ पैदा होता है। कई मिहलाएं अक्
प्रसव के बाद मोटापे का िशकार बन जाती , पर िलगनेन ऐसा नहीं होने देते। रजोविनवृि� के बाद ईस्ट्रोजन
बनना कम हो जाने से मिहलाओंमें हॉट फ्लेश, अिस्-�य, शुष्कयोिन जैसी कई परेशािनयां होती ह, िजनमें यह
बह�त राहत देता है। यिद शरीर में प्राकृितक ईस्ट्रोजन का स्राव अिधक हो जैसे स्तन कैंसर में तो यह क
ईस्ट्रोजन अिभग्राहकों से ईस्ट्रोजन को स्थानच्युत कर स्वयं कोिशकाओं से संलग्न ह ोकर ईस्ट्
कम करता है और स्तन कैंसर से बचाव करता ह
हालांिक आजकल अलसी को आवश्यक वसा अम्ल के अच्छे स्रोत के िलये जाना जाता है। लेिकन हालह
िलगनेन के बारे में दुिनया भर के संस्थानों में जो शोध हो रही है और जो जानका�रयां पतली गिलयों में हैं
देखकर ऐसा लगता है िक भिवष्य में अलसी को िलगनेन के सबसे बड़स्रोत के �पमें जाना जायेग
पाचन तंत्र और फाइब-
अलसी में27 प्रितशत घुलनशील (म्यूिसलेज) और अघुलनशील दोनों ही तर फाइबर होते हैं अतः अलसी
कब्ज़, मस्स, बवासीर, भगंदर, डाइविटर्कुलाइिट, अल्सरेिटव कोलाइिटस और आई.बी.एस. के रोिगयों को बह�
राहत देती है। कब्ज में अलसी के सेवन से पहले ही िदन से राहत िमल जाती है। हाल ही में ह�ई श से पता चला है
िक कब्ज़ी के िलए यह अलसी इसबगोल क� भुस्सी से भी ज्य लाभदायक है। अलसी िप� क� थैली में पथरी
नहीं बनने देती और यिद पथ�रया बन भी चुक� हैं तो छोटी पथ�रयां तो घलने लगती हैं
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प्राकृितक सौंदयर् प्-
यिद आप त्वच, नाखून और बालों क� सभी समस्याओं का एक शब्द में समाधान चा हती हैं तो उ�र है
“ओमेगा-3 या ॐ-3 वसा अम्ल”। मानव त्वचा को सबसे ज्यादा नुकसान मु� कणों या फ्र� रेिडकलस् से होता है
हवा में मौजूद ऑक्सीडेंट्स के कण त्वचा क� कोलेजन कोिशकाओं से इलेक्ट्रोन चुरा लेते
प�रणाम स्व�प त्वचामें महीन रेखाएं बन जाती हैं जो -धीरे झु�रर्यों व झाइयों का �प ले लेती, त्वचा मे
�खापन आ जाता है और त्वचा वृद्ध सी लगने लगती हअलसी के शि�शाली एंटी-ऑक्सीडेंट ओमे-3 व
िलगनेन त्वचा के कोलेजन क� र�ा करते हैं और त्वचा को आक, कोमल, नम, बेदाग व गोरा बनाते हैं। स्वस
त्वचा जड़ों को भरपूर पोषण दे कर बालों को स, चमकदार व मजबूत बनाती हैं
अलसी एक उत्कृ� भोज्सौंदयर् प्रसाधन है जो त्वचा में अंदर से िनखार लाता है। अलसी त्वचा क� बीमा�रय
मुहांसे, एग्ज़ीम, दाद, खाज, सूखी त्वच, खुजली, छाल रोग (सोरायिसस), ल्यूप, बालों का सूखा व पतला होन,
बाल झड़ना आिद में काफ� असरकारक है। अलसी सेवन करने वाली ि�यों के लों में न कभी �सी होती है औ
न ही वे झड़ते हैं। अलसी नाखूनों को भी स्वस्थ व सुन्दर आकार प्रदान करती है। अलसी यु� भोजन खाने
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तेल क� मािलश से त्वचा के दा, धब्ब, झाइयां व झु�रर्यां दूर होती हैं। अलसी आपको युवा बनाये रखती है। आ
अपनी उम्र से काफ� टी िदखती हैं। अलसी आपक� उम्र बढ़ाती
रोग प्रितरोधक �मत-
अलसी हमारी रोग प्रितरोधक �मता बढ़ाती है। आथ्रार, गाउट, मोच आिद मे अत्यंत लाभकारी है। ओमेग-3 से
भरपूर अलसी यकृत, गुद�, एडरीनल, थायरायड आिद ग्रंिथयों को सुचा� �प से काम करने सहायक होती है।
अलसी ल्यूप नेफ्राइिटस और अस्थमा में राहत देती
मिस्तष्क और स्नायु तंत्र के िलए दैिवक -
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स्वस्थ मिस्तष्क मे
प्रितशत वसा होती है औ
इसका 50 प्रितशत ओमे-3
वसा अम्ल होते हैं, िजनक
सबसे बड़ा स्रोत अलसी है
इससे हम अनुमान लगा
सकते हैं िक ओ-3 वसा
अम्ल मिस्तष्क और स्न
तंत्र के िलए िकतने महत्वपू
हैं। अलसी से बुिद्ध,
शै�िणक �मता,
सृजनशीलता,
कल्पनाशीलता व स्मरणशि� बढ़ती है। अलसी हमारे मन को शांत रखती है, इस के सेवन से िच� प्रसन्न रहता
सकारात्मक�ि�कोण बना रहता है, चुस्ती फुत� रहती है, िकसी भी काम में आलस्य नहीं आता, रचनात्मक
में �िच बढ़ती है, अच्छे िवचार आते हैं, तनाव दूर होता है, सहनशीलता आती है तथा क्रोध कोसों दूर रहत
अच्छे च�रत्र का िनमार्ण होता है, बुरे िवचार नहीं आते व वगर् बुरी आदतों या व्यसनों से बचता है। अलसी
सेवन से मन और शरीर में एक दैिवक शि� और ऊजार् का प्रवाह होता है। योग, प्राणायाम, ई�र क� भ
आध्याित्मक काय�में मन लगता है। अलसी के सेवन से मन और शरीर में एक दैिवक और ऊजार् का प्रव
होता है। अलसी एल्ज़ीमस, मल्टीपल स्क�रोि, अवसाद (Depression), माइग्र, शीज़ोफ्रेिनया व पािकर्नस
आिद बीमा�रयों म बह�त लाभदायक है। गभार्वस्थामें िशशु क� ऑखों व मिस्तष्क के समुिचत के िलये
ओमेगा-3 अत्यंत आवश्यक होते हैं। ओम-3 से हमारी नज़र अच्छी ह जाती है, रंग ज्यादा स्प� व उजले िदखा
देने लगते हैं।
ऑखों में अलसी तेल डालने से ऑखों का सूखापन दूर होता है और काला पानी व मोितयािबंद होन क�
संभावना भी बह�त कम होती है। अलसी बढ़ी ह�ई प्रोस्टेट ग, नामद�, शीघ्रप, नपुंसकता आिद के उपचार में
महत्वपूणर् योगदान देती ह
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डायिबटीज़ और मोटापे पर अलसी का चमत्कार-
अलसी ब्लड शुगर िनयंित्रत रखती, डायिबटीज़ के शरीर पर होने वाले दुष्प्रभावों को कम करती हैं। िचि
डायिबटीज़ के रोगी को कम शकर ्रा औ ज्यादा फाइबर लेने क� सलाह देते हैं। अलसी फाइबर क� मात्रा अिध
होती है। इस कारण अलसी सेवन से लंबे समय तक पेट भरा ह�आ रहता है, देर तक भूख नहीं लगती है यह
बी.एम.आर. को बढ़ाती है, शरीर क� चब� कम करती है और हम ज्यादा कैलोर खचर् करते हैं। अतः मोटापे के रोग
के िलये अलसी उ�म आहार है।
डायिबटीज के रोिगयों के िलए अलसी एक आदशर् और अमृत तुल्य भोजन, क्योंिक यहजीरो काबर् भोज
है। चौंिकयेगा नह, यह सत्य है। मैं आपको समझाता ह�ँ। 14 ग्राम अलसी में 2.56 ग्रा, 5.90 ग्राम फ,
0.97 ग्राम पानी और 0.53 ग् राम राख होती है। 14 में से उपरो� के जोड़ को घटाने पर जो शेष
(14-{0.97+2.56+5.90+0.53}=4.04 ग्राम) 4.04 ग्राम बचेगा वह काब�हाइड्रेट क� मात्रा ह�ई। िविदत
फाइबर काब�हाइड्रेट क� श्रेणी में ही आते हैं। इस 4.04 काब�हाइड्रेट में 3.80 ग्राम फाइबर न र� में
अवशोिषत होता है और न ही र�शकर ्रा को प्रभािवत करता है। अतः 14 ग्राम अलसी में काब�हाइड
व्यावहा�रक मात्रा तो 4.- 3.80 = 0.24 ग्राम ही ह, जो 14 ग्राम के सामने नगण्य मात्रा है इसिलये
शा�ी अलसी को जीरो काबर् भोज मानते है।
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डाक्टर योहाना बुडिवज का कैंसर रोधी प्रोटो-
1931 में डॉ. ओटो वारबगर् ने िसद्ध कर िदया था िक कैंसर का मुख्य कारण कोिशकाओं में होने वाली �स
का बािधत होना है और यिद कोिशकाओंको पयार्� ऑक्सीजन िमलती रहे तो कैंसर का अिस्तत्व ही नहीं है।
इसके िलए उन्हें नोबेल पुरस्कार िदया गया था। परन्तु तब वारबगर् यह पता नहीं कर सके िक कैंसर कोिशक
बािधत �सन िक्रया को कैसे ठीक िकया जाय
डॉ. योहाना बुडिवज जमर्नी क� िव� िवख्यात कैंसर वै�ािनक थी। डॉ. योहाना अपने प�र�णों से यह िस चुक�
थी िक अलसी के तेल में िवद्यमान इलेक्ट्रोन यु�, असंतृ�-3 वसा कोिशकाओंमें ऑक्सीजन को आकिषर
करने क� अपार �मता रखती हैं। पर मुख्य समस्या र� में अघुलनशील अलसी के तेल को कोिशकाओं
पह�ंचाने क� थी। वष� तक शोध करने के बाद वे मालूम कर पाई िक सल्फर यु� प्रोटीन जैसे पनीर अलसी के त
को धुलनशील बना देते हैं और तेल सीधा कोिशकाओं तक पह�ंच कर ऑक्सीजन को कोिशकाओंमें खींचता ह
कै ंसर खत्म होने लगता ह
इस तरह उन्होंने अलसी के त, पनीर, कै ंसर रोधी फलों और सिब्ज़यों से कैंसर के उपचार का तरीकिसत
िकया था, जो बुडिवज प्रोटोकोल के नाम से िवख्यात ह�आ। क् र, कुिटल, कपटी, किठन, क�प्रद ककर् का
सस्त, सरल, सुलभ, संपूणर् और सुरि�त समाधा माना जाता है। उन्होंने सभी प्रकार के , गिठया,
�दयाघात, डायिबटीज आिद बीमा�रयों का इलाज अलसी के तल व पनीर से िकया। इन्हें 90 प्रितशत से ज्
सफलता िमलती थी। इसके इलाज से वे रोगी भी ठीक हो जाते थे िजन्हें अस्पताल में यह कहकर िडस्चाज
िदया जाता था िक अब कोई इलाज नहीं बच, िसफर ् दुआ ही काम आयेगी। अमेरीका में ह�ई शोध से पता चला है ि
अलसी में 27 सेज्यादा कैंसर रोधी तत्व होते हैं। डॉ. योहाना का नाम नोबेल पुरस्कार के िलए 7 बार चयिन
ह�आ पर उन्होंने अस्वीकार कर िदया क्योंिक उनके सामने शतर् रखी गई थी िक वे अलसी पनीर -साथ
क�मोथेरेपी व रेिडयोथेरेपी भी काम में लेंगी जो उन्हें मंजूर नही
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बॉडी िबिल्डंग के िलए भी नंबर वन-
अलसी बॉडी िबल्डर के िलए आवश्यक व संपूणर् आहार है। अलसी 20 प्रित आवश्यक अमाइनो एिसड यु�
अच्छे प्रोटीन होते हैं। प्रोटीन मांस-पेिशयों का िवकास होता है। अल्-लेनोलेिनक एिसड स्नायु कोिशका मे
इन्सुिलन क� संवेदनशीलता बढ़ाते है, िस्टरोयड हाम�न का स्राव बढ़ाते हैं, स्वस्थ को� िभि�यों का िनमा
हैं, हाम�न्स का �ाव िनयंित्रत करते हैं, प्रितर�ा प्रणाली िनयंित्रत करते हैं, हाम�न्स को अपने ल�य त
मदद करते हैं, बुियादी चयापचय दर बढ़ाते हैं, कोिशकाओं तक ऑक्सीजन पह�ंचाते हैं, र� में वसा को गित
रखते हैं नाड़ी और स्वाय� नाड़ी तंत्र को िनयंित्रत करते है-संदेश प्रसारण का िनयंत्रण करते हैं और �द
पेिशयों को सीधी ऊजार् देते हैं। कसरत के बाद म पेिशयों क थकावट चुटिकयों में ठीक हो जाती है। बॉड
िबिल्डंग पित्रका मीिडया 2000 में प्रकािशत आल“बेस्ट ऑफ द बेस” में अलसी को बॉडी क िलए सुपर
फूड माना गया है। िम. डेकन ने अपने आलेख ‘ऑस्क द गु’ में अलस को नम्बर वन बॉडी िबिल्डंग फूड क
िखताब िदया। हॉलीवुड क� िवख्यात अिभनेत्री िहलेरी स्वांक ने िमिलयन डॉलर बेबी िफल्म के िलये मांसल
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बनाने हेतु अलसी मां का ही सहारा िलया था, तभी उसने ऑस्कर जीता। अलसी हमारे शरीर को भरपू ताकत
प्रदान करती , शरीर में नई ऊजार् का प्रवाह करती है तथा स्ट बढ़ाती है।
उपरो� सभी बातों का सीधा अथर्
शरीर क� वसा कम होना,
स्नायु कोिशकाओं में थकान न होन
ऊजार् का सव��म स्र
ऑक्सीजन और अन्य पोषक तत्वों क� उपयोिगता में
स्वास्थ्य में वृ
यानी छरहरी बिल� मांसल देह
सेवन का तरीकाः-
हमें प्िदन 30-60 ग्राम अलसी का सेवन करना चािहये। रो30-60 ग्र अलसी को िमक्सी के चटनी जार मे
सूखा पीसकर आटे में िमलाकर रोट, परांठा आिद बनाकर खायें। इसक� ब्, के क, कु क�ज़, सेव, चटिनयां,
आइसक्र, अलसी भोग लड्डू आिद स्वािद व्यंजन भी बनाये जाते हैं। अलसी बाफले बाटी कोटा में बड़े चाव
से खाये जाते हैं। अलसी भोग लड्डू पूरे िव� में प्रशंिसत हो रहे हैं। अलसी के गट्टे मेरे दोस्तों को कबाब जैस
लगते हैं। अंकु�रत अलसी का स्वाद तो कमाल का होता है। इ आप सब्ज़, दही, दाल, सलाद आिद में भी डाल
कर ले सकते हैं। इसे पीसकर नह रखना चािहये। इसे रोजाना पीसें। ये पीसकर रखने से खराब हो जाती है। अलस
के िनयिमत सेवन से व्यि� के जीवन में चमत्कारी कायाकल्प हो जाता