क्या होता है स्ट्रोक या दौरा या ब्रेन अटेक?
मस्तिष्क और नाड़ियों को जीवित और सक्रिय रहने के लिए भरपूर ऑक्सीजन और पौषक तत्वों की निरंतर आवश्यकता रहती है जो रक्त द्वारा प्राप्त होते हैं। मस्तिष्क और नाड़ी-तंत्र के सभी हिस्सों में विभिन्न रक्त-वाहिकाऐं निरंतर रक्त पहुँचाती है। जब भी इनमें से कोई रक्त-वाहिका क्षतिग्रस्थ या अवरुद्ध हो जाती है तो मस्तिष्क के कुछ हिस्से को रक्त मिलना बन्द हो जाता है। यदि मस्तिष्क के किसी हिस्से को 3-4 मिनट से ज्यादा रक्त की आपूर्ति बन्द हो जाये तो मस्तिष्क का वह भाग ऑक्सीजन व पौषक तत्वों के अभाव में नष्ट होने लगता है, इसे ही स्ट्रोक या दौरा कहते हैं।
सबसे अच्छी बात यह है कि चिकित्सा-विज्ञान ने इस रोग के उपचार में बहुत तरक्की कर ली है और आज हमारे न्यूरोलोजिस्ट पूरा ताम-झाम लेकर बैठे हैं और उनके पिटारे में इस रोग के बचाव और उपचार के लिए क्या कुछ नहीं है। इसीलिए पिछले कई वर्षों में स्ट्रोक से मरने वाले रोगियों का प्रतिशत बहुत कम हुआ है। बस यह जरुरी है कि रोगी बिना व्यर्थ समय गंवाये तुरन्त अच्छे चिकित्सा-कैंन्द्र पहुँचे ताकि उसका उपचार जितना जल्दी संभव हो सके शुरू हो सके। समय पर उपचार शुरू हो जाने से मस्तिष्क में होने वाली क्षति और दुष्प्रभावों को काफी हद तक रोका जा सकता है।
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मिस्तष्क कदौरा या स्�ो
Dr. O.P.Verma
M.B.B.S.,M.R.S.H.(London)
President, Flax Awareness Society
7-B-43, Mahaveer Nagar III, Kota (Raj.)
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09460816360
मिस्तष्- शरीर का सर�कट बोडर्
• मिस्तष्क क� औसत चौड़ा = 140 िम.िम./5.5 इंच,
लम्बा = 167 िम.िम./6.5 इंच, ऊं चाई = 93
िम.िम./3.6 इंच और भार 1300-1400 �ाम होता है।
• मिस्तष्कके आधे न्यूरोन्स सेरीबेलम म�होते ह� जब
आकार म� वह मिस्तष्कके दसव� िहस्से के बराबर हो
है।
• मिस्तष्क क85% िहस्सा सेरी�ल कॉट�क्स होता है
• ��ाण्ड म�100 िबिलयन िसतारे होते ह� और इतने ही
मिस्तष्क म� न्यूरोन होते ह
• सेरी�ल कॉट�क्स के िविभ� उपांग� का �ितशत-
�न्टल लोब 41%, टेम्पोरल लो 22%, पेराइटल
लोब 19% और ओिसिपटल लोब 18% होता है।
• मिस्तष्कके बांये गोलाधर् 18.6 करोड़ न्यूरोन अिधक होते ह, इसे �मुख गोलाधर्(Dominant Hemisphere) कहते ह�।
• मिस्तष्क म750-1000 िम.ली. र� �ित िमनट �वािहत होता है, िजससे उसे 46 cm3 ऑक्सीजन �ा� होती है। इस
ऑक्सीजन का 6% सफेद-�� (White Matter) को और शेष स्लेट-�� (Grey Matter) को िमलता है।
• मिस्तष्क ऑक्सीजन के िब4 से 6 िमनट जीिवत रह सकता है, उसके बाद इसक� कोिशकाय� मरने लगती ह�।
• न्यूरोन्स म� सूचना�के �वाह क� न्यूनतम ग416 �क.मी. �ित घन्टा है जो िव� क� सबसे तेज सुपर कार से भी अिधक है।
• मिस्तष्क को र� िमलना बंद हो जाये त10 सेकण्ड म� �ि� बेहोश हो जाता है।
• मिस्तष्क का भार शरीर का मा2% होता है ले�कन यह शरीर क� 20% ऊजार् �हण करता है। इस ऊजार्स25 वाट का बल्ब
जल सकता है।
• मिस्तष्क म70,000 िवचार �ित�दन आते ह�।
• तीस वषर् के बाद मिस्तष्क हर स0.25% िसकुड़ जाता है।
• मिस्तष्क म� िजतने िव�ुत संदेश एक �दन म� पैदा होते ह� उतने दुिनया भरकेटेलीफोन भी नह� करते ह�
क्या होता है स्�ोक या दौया �ेन अटेक?
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मिस्तष्क औनािड़य� को जीिवत और स��य रहने के िलए भरपूर
ऑक्सीजन और पौषक तत्व� क� िनरंतर आवश्यकता रहती है
र� �ारा �ा� होते ह�। मिस्तष्क औ नाड़ी-तं� के सभी िहस्स� म�
िविभ� र�-वािहका� िनरंतर र� प�ँचाती है। जब भी इनम� से
कोई र�-वािहका क्षित�स्थ या अव�� हो जाती है तो मिस्तष्
कुछ िहस्से को र� िमलना बन्द हो जाता है। य�द मिस्तष्क के �
िहस्से को3-4 िमनट से ज्यादा र� क� आपू�त बन् हो जाये तो
मिस्तष्क का वह भाग ऑक्सीजन व पौषक तत्व� के अभाव म�
होने लगता है, इसे ही स्�ोकया दौरा कहते ह�।
सबसे अच्छी बात यह है �क िच�कत्-िवज्ञानने इस रोगक
उपचार म� ब�त तर�� कर ली है और आज हमारे न्यूरोलोिजस्
पूरा ताम-झाम लेकर बैठे ह� और उनके िपटारे म� इस रोग के बचाव
और उपचार के िलए क्या कुछ नह� है। इसीिलए िपछले कई वष� म�
स्�ोक से मरने वाले रोिगय� का �ितशत ब�त कम �आ है। बस यह
ज�री है �क रोगी िबना �थर् समय गंवाये तुरन्त अच्छे िच�क-
क�न्� प�ँचे ता�क उसका उपचार िजतना जल्दी संभव हो सके शु
हो सके। समय पर उपचार शु� हो जाने से मिस्तष्क म� होने वाल
क्षित और दुष्�भाव� को काफ� हद तक रोका जा सकता है
स्�ोक क� �ापकता
• िव� म� हर 45 सेकन्ड म� �कसी न �कसी को स्�ोक हो जाता ह
(एक वषर् म�700,000)।
• िव� म� हर तीन िमनट म� स्�ोक का एक रोगी परलोक िसधार जाता है।
• स्�ोक �दयरोग और क�सर के बाद मृत्यु का तीसरसबसे बड़ा कारण है।
• हमारे देश म� 60 वषर्से ऊपर क� उ� के लोग� म� मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण स्�ोक है
• 15 से 59 आयुवगर् म� मृत्यु का पांचवां सबसे बड़ा कारण ह
• स्�ोकदीघर्कालीन िवकलागता का सबसे बड़ा कारण है।
• मधुमेह के रोिगय� म� स्�ोक का जोिखम2-3 गुना अिधक रहता है।
• उच्-र�चाप के 30-50% रोिगय� को स्�ोक का जोिखमरहता है।
• हर छठे �ि� को जीवन म� कभी न कभी स्�ोकहोता है।
• हर साल 29 अक्टूबर को स्�ोक जाग�कता �दवस मनाया जाता ह
• नेशनल इंिस्ट�ूट ऑफ़ न्युरोलोिजकल िडसऑडर्सर् एंड स NINDS �ारा करवाए गए एक पांच सालाना अध्ययन से पता चला
है िजन लोग� को स्�ोक शु� होने के तीन घंटे के भीतरटीपीए दवा का इन्जेक्शनदे �द जाता है, उनम� स्�ोक से पैदा�ई खराबी
के ठीक होने क� संभावना 30% और बढ़ जाती है तथा तीन मही ने बाद इनम� नाम मा� क� अक्षमता हीशेष रह जाती और
अक्सर लक्षण पूरी तरह समा� हो जाते ह
FAST यह फास्ट �कस बला का नाम ह?
FAST या एफ.ए.एस.टी. स्�ोक के �मुख लक्षण� को तुरन्त पहचानने और िबना समय गंवाये रोगी को अस्पताल ले और
जाग�कता लाने का स्मृितसू�(Mnemonic) है। ता�क रोगी का समय पर उपचार शु� हो सके और उसक� जान बचाई जा सके। इसे
इंगलैन्ड के स्�ोक िवशेषज्ञ�1998 म� िवकिसत �कया था। आप इसे याद रख� और दूसरे लोग� को भी बतलाय�।
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यहाँ FAST का मतलब है।
F = Facial weakness रोगी हँसे तो एक तरफ का चेहरा, ह�ठ या आँख लटक जांये,
A = Arm weakness
रोगी को दोन� हाथ उठा कर सामने फैलाने को कहा जाये तो एक हाथ ठीक से उठ न
पाये और अगर उठ भी जाये तो वापस नीचे झुक जाये,
S = Speech difficulty
रोगी क� आवाज लड़खड़ाये, वह छोटे-छोटे वाक्य भी न बोल पाये और समझ म�
नह� आये �क वह क्या कह रहा है।
T = Time to act
ऐसी िस्थित म� रोगी को तुरन्त अच्छे अस्पताल ले जाइये त3 घन्टे के भीतर उसे
�टश्यु प्लािज्मनोजन एिक्टवेटर काइन्जेक्शन लग जाये और उसक� जान बच
सके।
कारण
स्�ोकम� मिस्तष्क का कुछ िहस्सा-�वाह बािधत होने के कारण मृत होने लगता है। मुख्यतः स्�ोक दो �कार का होता है पहला है
अर�ता या इस्केिमक स्� जो सबसे आम है और �कसी धमनी के अव�� होने क� वजह से होता है। दूसरा है र��ाव दौरा या
हेमोरेिजक स्�ोकजो �कसी र�-वािहका के फटने या �रसाव होने पर होता है। एक तीसरे �कार का छोटा और अस्थाई दौरा भी होता है
िजसे क्षि-अर�ता दौरा या Transient Ischemic Attack (TIA) कहते ह�,
इसम� मिस्तष्क का -�वाह थोड़ी देर के िलए बािधत होता है।
1-अर�ता दौरा या इस्केिमक स्�ो–
80-85 �ितशत स्�ो इस्केिमक स्�ोक ही होते ह�। यह मिस्तष्क क� �कसी ध
के संक�णर् या अव�� होने के कारण होता है। यह स्�ोक भी दो िवकृितय�क
कारण होता है।
�ोम्बो�टक स्�ो – यह स्�ोक मिस्तष्क को र� प�ँचाने वाली कोई धमनी जैस
केरो�टड या मिस्तष्क क� कोई अन्य धम(सेरी�ल, व���ोबेसीलर या कोई छोटी धमनी) म� खून जम जाने या थ�ा ( Clot) बनने से
होता है। एथेरोिस्क्लरोिसस रोग म� धमिनय� क� भीतरी सतह पर फैट जमा हो जाता , िजसे प्लॉक कहते ह�। �ोम्बो�टक स्�ोक
प्लॉक पर खून का थ�ा बन जाने से धमनी म� आई �कावट के कारण होता है।
एम्बोिलक स्�ो– म� मिस्तष्कसे दूर कह� �कसी -वािहका म� बना (अमूमन �दय म�) खून का थ�ा या कोई कचरा र� के साथ बह
कर मिस्तष्क क� �कसी पतली धमनी म� आकर फंस जाता है और र�के �वाह म� �कावट पैदा करता है। इस तरहके थ�े को एम्बो
कहते ह�। यह एम्बोलस �ायः �दय के दोन� ऊपरी कक्( Atria या आिलन्) के असामान्य �प से धड़कने (Atrial Fibrillation) से
बनता है। आिलन्द� के असामान्य और अिनयिमत तरीकेसे धड़कन(या फड़फड़ाने) से �दय खून को ठीक से पंप नह� कर पाता है, �दय
म� एकि�त खून के थ�े बन जाते ह� जो र� �वाह म� बह कर मिस्तष्क क� धमनी म� जाकर फंस जाते ह� ।
2-र��ाव दौरा या हेमोरेिजक स्�ो –
हेमोरेिजक स्�ोक मिस्तष्क क� �कसी-वािहका म� र��ाव या �रसाव होने के कारण होता है। यह इस्केिमक स्�ोकसे ज्यादा गंभ
रोग है। यह मुख्यतः र�चाप के ब�त बढ़ जान, र�-वािहका म� कमजोरी से आये फुलाव (Aneurysms) या नस� क� �कसी जन्मजात
िवकृित जैसे Arteriovenous Malformation के फट जाने से होता है। हेमोरेिजक स्�ोक भी दो तरह के होते ह�।
इन्�ा�ेिनयल हेमोरेज- इस स्�ोक म� मिस्तष्क क� कोई नस फट जाती, र��ाव होता है जो आसपास फैल जाता और मिस्तष्कक
ऊतक� को क्षित प�ँचाता है। -वािहका म� �रसाव हो जाने से आगे क� मिस्तष्क कोिशका� को र� क� आपू�त भी घट जाती ह
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िजसके फलस्व�प वह क्षे� भी क्षित�स्त हो जाता है। इस स्�ोक का �मुख -र�चाप है। कालान्तर म� उ-र�चाप के कारण
र�-वािहकाएँ कड़ी, कमजोर और भंगुर हो जाती ह�, जो र�चाप के बढ़ने से फट जाती ह�।
सबअरेकनोयड हेमोरेज – इस स्�ोक म� र��ाव मिस्तष्क क� सतह या सतह के समीप क� �कसी वािहका म� होता है और र� मिस्
और कपाल के बीच क� जगह (सबअरेकनोयड स्पे) म� एकि�त हो जाता है। इस र�-�ाव के होते समय रोगी को खोपड़ी म� िबजली
कड़कने जैसी आवाज के साथ अचानक �चण्ड ददर् होता है और उसे लगता है जैसे उसका िसर फट जायेगा। यह स्�ोक मुख्यत-
वािहका म� जन्मजात या बाद म� बने एन्यु�रज(वािहका का गुब्बारे क� तरह कमजोर होकर फूल जान) के फट जाने से होता है।
र��ाव के बाद मिस्तष्क क� वािहका� म� आकष (vasospasm) हो जाता ह� िजससे भी आसपास के मिस्तष्क ऊतक क्षित�स्त
ह�।
स्�ोक के जोिखम घट
• प�रवार म� �कसी को स्�ोक या �दल का दौरा पड़ा हो य स्वयं रोगी को �दल का दौरा याTIA �आ हो।
• उ� 55 वषर् सेज्यादा हो
• मधुमेह - य�द आपको मधुमेह है तो िनि�त तौर पर आपको स्�ोक का खतरा भी काफ� बढ़ जाता है सामान्यतः जब मिस्तष्क
कोई धमनी म� �कावट आती है तो उसके आसपास क� धमिनयां उस अंग को र� प�ँचाने क� कौिशश करती ह�, ले�कन डायिबटीज
के रोगी म� आसपास क� ये धमिनयां भी एथेरोिस्क्लरोिस(धमिनय� का कड़ा होना) के कारण काफ� हद तक खराब हो चुक� होती
ह� और र� क� कमी से जूझते मिस्तष्क को कोई राहतदेने म� असमथर् होती है। यानी डायिबटीज म� स्�ोक से मिस्तष्क क
अिधक होती है। र�चाप 115/75 mm Hg से ज्यादा होना स्�ोक का जािखम घटक माना गया है
• िसकल-सेल एनीिमया, माइ�ेन और फाइ�ोमस्कुलर िडस्पेिप्स
• िनिष्�य जीवनशैल, स्थूलत, अित-म�दरापान, धू�पान या परोक्ष धू�पान औकॉलेस्�ोल200 mg/dL से अिधक होना।
• गभर्िनरोधक गोिलया, हाम�न्स जैसे इस्�ो, नशीली दवाइयां जैसे कोक�न आ�द।
• �दयरोग - �दयपात (heart failure), सं�मण, केरो�टड िस्टनोिस, माइ�ल िस्टनोिसस औरअिनयिमत �दय अनु�म
(abnormal heart rhythm)।
क्षिणक अर�ता दौरा Transient ischemic attack (TIA)
इसम� रोगी को लक्षण तो स्�ोक जैसे ही होते, जो थोड़ी ही देर (�ायः 24 घन्टे से क) रहते ह� और उसके बाद रोगी एक दम ठीक
महसूस करता है। इस क्षिणक और अस्थाई िवकार को िमनी स्�ोक भीकहते ह�। इसका कारणछोटे से अंतराल के िलए मिस्तष्
�कसी भाग म� र�-वािहका का अव�� हो जाना है। ले�कन इसम� मिस्तष्क म� स्थाई क्षित नह� होती है क्य��क वािहका म�
क्षिणक होती है
ले�कन इस अस्थाई दौरे के बाद रोगी िबलकुल ठीक हो जाये तो भी आप उसे तुरन्त �कसी अच्छे िच�कत्सा क�न्� ले जाकर ज�र �,
क्य��क यह अस्थाई दौरा �कसी बड़े खतर(सम्पूणर् दौरा या स्) क� चेतावनी भी हो सकता है। िसफर् लक्षण� के आधार पर यह कह
मुिश्कल होता है �क रोगी को क्षिणक अर�ता दौ(TIA) �आ है या यह एक संपूणर् दौरे के �ारंिभक लक्षण, भले ही लक्षण थोड़ी स
देर ही रहे ह�। TIA होने का मतलब है �क मिस्तष्क क� वािहका म� आकष(Spasm) या आंिशक अवरोध तो है ही जो कभी भी बढ़ कर
स्�ोक का िवकराल �प ले सकता है।
टी.आई.ए. होने के पाँच साल के अन्दर35% लोग� को पूणर् स्�ोक होने क� संभावनरहती है, िजनम� से 50% को तो पहले महीने म� ही
स्�ोकहो जाता है। स�ाई यह है �क टी.आइ.ए. हमे चेतावनी देता है और कहता है – मानव अभी भी समय है सतकर् हो जाइये। जाँच
करवा कर बचाव क� �दशा म� चिलये।
�ारंिभक लक्
दौरा पड़ने का समय ध्यान रख� क्यो�क उपचार करते समय कई िनणर्य इसी पर िनभर्र कर�गे। स्�ोक या दौरे के िन� लक्षण हो
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चलने म� �द�त होने लगे – य�द रोगी अचानक लड़खड़ाने लगे या च�र आ जाये, शरीर का संतुलन और सामंजस्य
िबगड़ने लगे यो समझ लीिजये उसे दौरा पड़ा है।
बात करने और समझने म� परेशानी होने लगे – रोगी �िमत और अस्त�स्त लगता , वह धीरे,
अस्प� तथा लड़खाकर मुिश्कलसे बोल पाता , अपनी तकलीफ बतलाने के िलए उसे सही शब्द याद नह� आ पाते ह�। हम समझ नह�
पाते ह� �क वह क्या कहना चाहता है।
चेहरे या शरीर म� एक तरफ पक्षाघा(लकवा) या सु�ता – रोगी के शरीर म� एक तरफ
अचानक कमजोरी, सु�ता या लकवा हो जाता है। य�द रोगी अपने दोन� हाथ सीधे फैलाने क� कौिशश करता है तो एक हाथ नीचे झुक
जाता है। मुँह क� मांस-पेिशया कमजोर होने से ह�ठ एक तरफ लटक जाते ह� और मुँह से लार टपकने लगती है।
एक या दोन� आँख� से देखने म� क�ठनाई हो – रोगी को एक या दोन� आँख� से धुँधला �दखाई देने
लगे, हर चीज दो दो �दखाई दे या आँख� के आगे अंधेरा छा जाये।
तेज िसर ददर्– रोगी को उलटी या च�र के साथ इतना तेज िसर ददर् हो �क उसे लगे जैसे उसका िसर फट जायेगा। रोगी कहे
�क उसे ऐसा िसर ददर् जीवन म� कभी नह� �आ।
स्�ोक के �कार
िमिडल सेरी�ल-आ�� स्�ोक या
MCA Stroke
MCA म� �कावट आने से मिस्तष्क म� िजस तरफ क्षित �ई हैउ
िवपरीत या उलटी तरफ शरीर क� माँस-पेिशय� म� कमजोरी ,
लकवा और संवेदना िवकार होता है। तथा साथ ही िजस तरफ क्षि
�ई है उस तरफ अधर-दृि�दोष (Hemianopsia) आ जाता है अथार्त
उस तरफ अंधापन आ जाता है तथा रोगी क� िनगाह� उसी तरफ
रहती ह�। रोगी अपने िम��, �रश्तेदार� या चीज� को पहचान नह�
पाता है। य�द स्�ोक �मुख गोलाधर(dominant hemisphere) म�
�आ है तो रोगी को बोलने या समझने म� परेशानी होती है। ले�कन स्�ोक अ�मु-गोलाधर् ( Nondominant hemisphere) म�
�आ है तो बेपरवाही , बेखबरी और बेखुदी जैसे लक्षण होते ह�। चूँ� MCA मिस्तष्क म� बाह� और हाथ� िनयं�ण-क्षे� को र� क
आपू�त करती है इसिलए कमजोरी, लकवा या संवेदना-िवकार आ�द लक्षण पै क� अपेक्षा हाथ� म� ज्याहोते ह�।
ऐन्टी�रयर सेरी�ल आटर्री स्�ोक ACA स्�ो
ACA स्�ोक मुख्यतः �न्टल लोब के काय� को �भािवत करता है जैसे उ� �व , शब्द, जुमल� या मु�ा� को अकारण बार-बार
दोहराना, चैतन्यता िवकार(altered mental status), सही िनणर्य न ले पान, �े�स्पग व स�कग �रफ्लेक्स आ�द ACA म� �कावट
आने से मिस्तष्क म� िजस तरफ क्षित �ई हैउसके िवपरीत उलटी तरफ मांस-पेिशय� म� कमजोरी , अक्षमता तथा संवेद-दोष ,
लड़खड़ा कर चलना और मू�-असंयमता (urinary incontinence) जैसे लक्षण होते ह�
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पोस्टी�रयर सेरी�-आ�� स्�ोक याPCA Stroke
PCA Stroke म� दृि� और िवचार संबन्धी िवकार होते ह� जैसे अध-दृि�दोष ( hemianopsia) अथार्त एक तरफ अंधाप, मिस्तष-
जिनत अंधापन, घर वाल� व प�रजन� को न पहचान पाना ( visual agnosia), चैतन्यता िवकार( altered mental status),
स्मृितदोष आ�द
वट��ोबेसीलर आटर्री स्�ो
वट��ोबेसीलर आटर्री स्�ोक म��ेिन-नािड़य�, सेरीबेलम और �ेन-स्टेम से संबिन्धत िविवध और िवस्तृत लक्षण होने के कारण
पकड़ पाना ब�त मुिश्कल होता है। इसम� �ेिनय-नाड़ी िवकार स्�ोक क� तरफ और मोटर िवकार उलटी तरफ होते ह�। इसके �मुख
लक्षण ह� च�र आ , आँख का अकारण अिवरत िहलते रहना ( Nystagmus), ि�दृि�ता ( Diplopia), िनगलने म� �द�त
(Dysphagia), अटक-अटक कर बोलना (Dysarthria), चेहरे म� संवेदना-िवकार (Facial hypesthesia), मूछार्(Syncope), दृि�-
क्षे� दो(Visual field deficits), लड़खड़ा कर चलना (Ataxia) आ�द।
लेक्युनर स्�ो
लेक्युनर स्�ोक मिस्तष्क क� गहराई म� िस्थत-छोटी धमिनय� के अवरोध के कारण होता है , िजसका माप ब�त छोटा �ायः 2-20
िमिलमीटर होता है। इसम� या तो केवल चालक-िवकार ( Motor Symptoms) ह�गे या �फर केवल संवेदना-िवकार ह�गे। कभी केवल
लड़खड़ा कर चलने क� तकलीफ हो सकती है। छोटा होने के कारण इसम� �ायः स्मृि , बोधन, वाणी और चैतन्यता संबन्धी लक्षण
होते ह�।
दुष्�भा
स्�ोक के कारण कई अस्थाई या स्थाई अक्षमता या अपंगता हो सकती है जो इस बात पर िनभर्र करती है �क र� का �वाह मिस्
�कस भाग म� और �कतनी देर बन्द रहा। स्�ोक म� िन� अक्षमता या अपंगता हो सकती
• पक्षाघा- माँस-पेिशय� म� दुबर्लता व गितहीनत – स्�ोक म� मां-पेिशयाँ दुबर्,
गितहीन, बेकार, िनिष्�य और िनज�व सी हो जाती ह�। स्�ोकके कारण मिस्तष्क म� िजस तरफ क्षित �ई है उसके िवपरीत या
तरफ शरीर क� माँस-पेिशय� म� कमजोरी और लकवा पड़ता है। अथार्त य�द मिस्तष्क म� खराबी बांई तरफ �ई है तो शरीर
दायां भाग लकवा -�स्त होता है। य�द पक्षाघात या लकवा शरीर केआधे भाग को �भािवत करता है तोइसे हेमीप्लेि
(Hemiplegia) और आधे शरीर म� आई माँस-पेिशय� क� दुबर्लता या कमजोरी को हेमीपरेिसस( Hemiparesis) कहते ह�।
हेमीपरेिसस या हेमीप्लेिजया के कारण रोगी को चलन-�फरने या कोई चीज पकड़ने म� �द�त होती है।
कभी कुछ मांस-पेिशय� का एक समूह बेकार हो जाता है जैसे �क बेल्स पाल्सी म� आधे चहेरे क�पेिशयां लक -�स्त होती ह�। दौरा
पड़ने पर रोगी के मुँह और गले क� मांस-पेिशयाँ कमजोर और िनिष्�य हो जाती ह� और उन पर रोगी का िनयं�ण नह� रहता ह,
िजससे उसे िनगलने और बोलने म� �द�त (dysphagia और dysarthria) हो सकती है। रोगी शरीर म� संतुलन और सामंजस्य
बनाये रखने म� (ataxia) भी असमथर् महसूस करता है
• संवेदनात्मक(Sensory) िवकार और ददर् – स्�ोक म� स्प, ददर, तापमान, गुंजन आ�द
संवेदना� को महसूस करने क� क्षमता कम हो जाती है। पक्षाघात से �स्त पैर या हाथ म, सु�ता, चुभन, जलन या झनझनाहड़
(paresthesia) हो सकती है। स्मृि, िवचार और सीखने क� योग्यता कमजोर पड़ जाती है। कुछ रोिगय� को अपने लकव -�स्त
हाथ या पैर क� अनुभूित ही नह� होती है। कई रोगी हाथ या पैर के असहनीय ददर् से परेशान रहते ह�। यह ददर् कई बार गितही
जोड़� आई अकड़न क� वजह से भी होता है। माँस-पेिशय� म� अकड़न और जकड़न आ जाना सामान्य बात है। उसके हाथ म� ठंड के
�ित संवेदना ब�त बढ़ सकती है। यह दुष्�भाव आमतौर पर स्�ोकके कई हफ्त� के बाद होता है। संवेदनात्मक िवकार के क
मू�त्याग और मलिवसजर्न पर िनयं�ण भी कमजोर पड़ जाता ह
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• वाणी, भाषा और सं�ेक् िवकार (Speech, Language and
Communication disabilities)
स्�ोक के25% रोिगय� को बोलने, पढ़ने, िलखने और समझने म� �द�त होती है। अपने िवचार� को भाषा और वाणी के माध्यम से
�� न कर पाने को वाचाघात या (aphasia) कहते ह�। स्मृि, िवचार और सीखने क� योग्यता कमजोर पड़ जाती है कभी रोगी
को उपयु� शब्द या वाक्य याद तो होता है पर वह बोल नह� पाता है इसे वाणीदो(dysarthria) कहते ह�।
• बोधन, िवचार और स्मृित िवकार( Cognitive, Thought and
Memory Problems)– स्�ोक रोगी क� सजगता और अल्पकाली स्मृित का �ास होता है। याददाश्
कमजोर पड़ जाती है या रोगी �िमत, अस्त�स, बुि�हीन और िववेकहीन �दखाई देता है। रोगी कोई योजना बनाने, नया काम
सीखने, िनद�श� का पालन करने म� असमथर् महसूस करता है। कई रोिगय� को िनणर्यले, तकर-िवतकर् करने और चीज� को समझने
म� ब�त �द�त होती है। कई बार रोगी को अपने शरीर म� आई अयोग्यता और अपंगत का अनुमान और अनुभूित भी नह� होती है।
• भावनात्मक िवकार( Emotional Disturbances) – स्�ोक से रोगी म� कई
भावनात्मक और �ि�त् सम्बंधी प�रवतर्न होते ह�। स्�ोक के रोगी अक्स, �चता, तनाव, कुंठा, �ोध, उ�ता, संताप,
अकेलेपन और अवसाद का िशकार हो ही जाते ह�। रोगी अपनी भावना� पर िनयं�ण नह� रख पाता है और उसके िलए अकारण
चीखना, िचल्लान, हंसना या मुस्कुराना सामान्य बात हो जाती है। उन्हे अपने दैिनक कायर्करने म� भी क�ठनाई होती है
प�रवार के �कसी सदस्य या नौकर पर आि�त रहना पड़ता ह�
• ल�िगक िवकार – स्�ोक के बाद ल�िगक समस्याएं होना स्वाभािवक बात है। स्�ोक के कारण रोगी औरउ
जीवनसाथी के आपसी �मानी संबन्ध� म� िशिथलता आ जाती है। कई बार स्�ोकके वष� बाद तक रोगी ल�िगक अयोग्यता
िशकार बना रहता है। स्�ोक के बाद दी जाने वाली िड�ेशन क� दवाइयाँ भी ल�िगक िवकार पैदा करती है। माँ-पेिशय� म� ददर,
एंठन, �खचाव, जोड़� म� आई जकड़न और शारी�रक िनष्चलता भी ल�िगक संसगर् को अ�िचकर और क�दायक बनादेती है। स्�
के कारण जननेिन्�य� म� चेतना और संवेदना भी ब�त कम हो जाती ह, पु�ष� म� स्तंभनदोष होना सामान्य बात है और मिस्तष्क
कामेच्छा और ल�िगक हाम�न्स को िनयंि�त करने वाला उपांग हाइपोथेलेमस भी क्षित�स्त हो जात
परीक्षण और िनदा
स्�ोक का सही उपचार इस बात पर िनभर्र करता है �क रोगी क स्�ोक इस्केिमक है याहेमोरेिजक है और मिस्तष्क के �कस िहस्स
नुकसान �आ है। कई बार स्�ोक जैसे लक्षण मिस्तष्क म� अ(Tumor) तथा �कसी दवा के �भाव से भी हो सकते ह�। डॉक्टर इन सबक�
जाँच करेगा। वह स्�ोक के जोिखम का आंकलन करने के िलए भी कुछ परीक्षणकरेग
शारी�रक परीक्ष– डॉक्टर रोगी और उसके प�रजन� से िवस्तार म� पूछताछ करेगा �क रोगी को क्या क्या तक
�ई, कब शु� �ई और तब वह क्या कर रहा था। �फर देखेगा �क क्या रोगी को अभी भी वह तकलीफ है। वह यह भी पूछेगा �क क्
रोगी को कभी िसर म� चोट लगी थी और वह कौन सी दवाइयाँ ले रहा है। वह पूछेगा �क रोगी को या प�रवार के �कसी सदस्य को कभी
�दयरोग, स्�ोक या टीआईए (TIA) तो नह� �आ था। इसके बाद वह रोगी का र�चाप नापेगा और स्टेथोस्कोपसे �दय और गदर्न
केरो�टड धमनी क� जाँच करेगा और पता लगा लेगा �क केरो�टड धमनी म� एथेरोिस्क्लरोिसस तो नह� �आ है। वह ऑफ्थेल्मोस्कोप
आँख� के दृि�-पटल क� जाँच करके पता लगा लेगा �क दृि�-पटल पर र� के थ�े या कॉलेस्�ोल के ��स्टल तो नह� बन� ह�।
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रोगी के �योगशाला-परीक्षण स्�ोक के कारण और अन्-िवकार� के बारे म� जानने के उ�ेश्य से �कये जाते ह�।
संम्पूणर् -परीक्ष(Complete Blood Cell Count) - यह र� क� �मुख जांच है
िजससे स्�ोक के कुछ अन्य कारण� पोलीसाइथीिम, �ोम्बोसाइटोिस, �ोम्बोसाइटोपीिनय, ल्युक�िमया आ�द क� जानकारी िमलती
है।
र� रसायन-परीक्ष (Blood Chemistry Panel) - इसम� र� शकर्र, यु�रया,
��ये�टनीन, कोएगुलेशन स्टडीज(BT, CT, PT, PTT, Fibrinogen etc.) आ�द परीक्षण �कये जाते ह�। य�द एन्टीकोएगुलेन्टदेने
तो कोएगुलेशन स्टडीज ज�री होती है और इनसे कोएगुलोपैथी क� जानकारी भी िमलती है। �दय के एन्जाइम(�ांसएमाइनेज) और
बायोमाकर्सर् भी �कये जाते ह� क्य��क स्�ोक और �दयरोग का सम्बंध-दामन का होता है। ब्लड गैस एनेलीिसस भी कर िलया जाता
है ता�क र� म� ऑिक्सजन का स्तर और अ-क्षार संतुलन का अनुमान हो सक
इनके अलावा ज�रत पड़ने पर िलिपड �ोफाइल, �ेगनेन्सी टेस, �रयुमेटॉयड फेक्ट, ई.एस.आर., एन्टीन्युिक्लयर ब, होमोिसस्टीन
आ�द भी �कये जाते ह�। मेिनन्जाइ�टस और सबअरे�ॉयड हेमरेज को पहचानने के िलए लंब-पंक्चर �कया जाता है।
सी.टी.स्केन
स्�ोक म� स.टी.स्केन सबसे महत्वपूणर् और आवश्यक जांच है.टी.स्केन मिस्तष्क क� संरच का
सटीक और ि�आयामी िच� ण करता है। हालां�क एम.आर.आई. क� तस्वीर� ज्यादा अच्छी और साफ होती ह� परन स्�ोकके आरंिभक
िनदान म� प्लेनसी.टी.स्केन कई कारण� से ए.आर.आई. से भी ब�ढ़या और सुिवधाजनक माना जाता है क्य��क यहहर जगह उपलब्ध
होता है और दस िमनट से कम म� हो जाता है। यह ब�त अहम बात है क्य��कयहाँ सुरिक्षसमय क� िखड़क� (Time Window) ब�त
छोटी होती है। दूसरा रोगी के शरीर म� पेसमेकर, एन्यु�रज्म िक्लप आ�दलगे होने के कारण .आर.आई. करना संभव न हो तो भी
सी.टी.स्केन �कया जा सकता है। िबना दवा के �कये गये सी.टी.स्के से मिस्तष्क क� संरचना और र��ाव क� जानकारी िमल जाती
िजससे इस्केिमक और हेमोरेिजक स्�ोक को पहचानना आसान हो जाता है। बाद म� जब भी फुरसत और मौका िमलता है या ज�री होत
है एम.आर.आई. करवाली जाती है।
सी.टी.एंिजयोए�ाफ� (CTA) एक िवशेष तरह का सी.टी.स्केन होता है िजसम एक्सरे क� दृि� से अपारदश�
दवा या डाई नस म� छोड़ी जाती है और एक्सरे �ारा र� वािहका� के ि�आयामी िच� िलये जाते ह�। सी.टी.एंिजयोए�ाफ� से
एन्यू�रज, ए��योवीनस मालफोरमेशन्स या वािहका� म� �कावट का पता चलता है।
केरो�टड अल्�ासाउन्– से हमे केरो�टड धमनी म� बने र� के थ�� और उसके संकुचन क� जानकारी िमलती है।
इसम� एक �ान्सडूसर को केरो�ट-धमनी के ऊपर क� त्वचा पर घुमाया जाता ह, इससे उ� आवृि� क� ध्वि-तरंगे िनकल कर ऊतक� म�
जाती ह� और पराव�तत होकर पुनः �ान्सडूसर म� लौटती ह� और मशीन के पटल पर केरो�ट-धमनी का रेखा-िच� �द�शत करती है।
इकोका�डयो�ाफ� - एक िवशेष तरह क� अल्�ासाउन्ड तकनीक है जो �दय क� संरचना क� जानकारीदेती है। इसक
�ारा िच�कत्सक को मालूम हो जाता है �क कैसे �दय म� बना एम्बोलस -स�रता म� बहता �आ मिस्तष्क प�ँचा और स्�ोक का का
बना। आपका िच�कत्सक �ान्सइसोफेिजयल इकोका�डयो�ाफ(TEE) भी करना चाहेगा क्य��क इसम� �दय क� बेहद स्प� और िवस्त
तस्वीर� �खचती है। इसम� रोगी को एक लचीली रबर क� नली िनगलनी पड़ती ह, िजसम� एक छोटा सा �ान्सडूसर लगा होता है। क्य��
�ान्सडूसर भोजन नली म� िबलकुल �दय के समीप रहता है इसिलए यह �दय क� स्प� तस्वीर� ख�चता है
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आरटी�रयो�ाफ� - यह तकनीक र�-वािहका� के अपेक्षाकृत ज्यादा स्प� ि�आयामी िच� ख�चती है। इसम� जांघ
ऊपरी िहस्से म� एक छोटा सा चीरा लगा कर रबर का एक महीन केथेटर जांघ क� धमनी म� घुसा कर मिस्तष्क क� मुख्य धमि
केरो�टड या वट��ल म� प�ँचाया जाता है। �फर डाई धमनी म� छोड़ दी जाती है और मशीन एक्सरे �ारा िच� ख�च लेती है।
चुम्बक�य गुन्जन िचकरण या मे�े�टक �रजोनेन्स इमे�जग (MRI) – स्�ोक के
िनदान और उपचार म� एम.आर.आई. एक महान तकनीक सािबत �ई है। इस तकनीक म� ती� चुम्बक�य क्षे� और रेिडयो तरंग�
मदद से मिस्तष्क क� स्प�तम और िवस्तृत ि�आयामी तस्वीर� ख�ची जाती ह.आर.आई. इस्केिमक स्�ोकसे क्षित�स्त �ए मि
के ऊतक� को �ारंिभक अवस्था म� ही पहचान लेती है। ए.आर.आई. मिस्तष्कके ऊतक� म� चयापचयके कारण आई िवकृितय� को भ
पहचान लेती है। मे�े�टक �रजोनेन् एिन्जयो�ाफ�(MRA) म� नस� म� डाई छोड़ कर मिस्तष्क और �ीवा क� धमिनय�के िच� िलय
जाते ह�।
उपचार
स्�ोक एक आपातकालीन रोग है और यहाँ हर पल क�मती है। यहाँ समय ही जीवन रेखा है। स्�ोक म� मिस्तष्क क� कोिशकाय� मृतह
लगती ह�। ज्य� ही लगे �क रोगी को स्�ोक �आ , तुरन्त आपातकालीन एम्बुलेन्स से रोगी को पास के अच्छे िच�कत्सा क�न्� लेकर ज
िन� िबन्दु� को हमेशा ध्यान म� रिखये
• स्�ोक क� संजीवनी बूंटी- �टश्य प्लािज्मनोजन एिक्टव rTPA - रोगी को य�द स्�ोक होने के तीन
घन्टे के भीतर �टश्यु प्लािज्मनोजन एिक्ट दे �दया जाता है तो यह धमिनय� म� जमे खून के थ�े को घोल कर इनका
पुननर्लीकरणदेता है और मिस्तष्क क� -आपू�त को पुनस्थार्िपत करदेता ह कोई कहता है यह रोगी के जीवन क� कुंजी है तो
कोई इसे स्�ो-उपचार का इंजन कहता है। हम� िसफर् तीन घन्टे का मुबारक व� िमलता है। इसी िवन्डो ऑफ अपोचुर्िनटी�टश्य
प्लािज्मनोजन एिक्टव देकर रोगी का जीवन बचाना होता है और यह तभी संभव है जब दौरा पड़ने के एक घन्टे के अन्दर रोग
अस्पताल प�ँचा �दया जाये यह rTPA स्�ोक के रोगी के िलए मू�छत ल�मण का जीवन बचाने के िलए वीर हनुमान �ारा
�ोणिग�र पवर्त से लाई गई संजीवनी बूटी के समान है।
TIME LOST = BRAIN LOST
TIME = BRAIN
• रोगी को दौरा �कस समय पड़ा या वह कब तक पूणर्तः स्वस्थ था याउसे दौरे के लक्षण कब पता चले यह याद रखना ब�त
है। इस समय को ठीक से याद रख�। इसके िबना टीपीए देने का िनणर्य करना मुिश्कल होगा
• कई बार स्�ोक रात म� होता है जब रोगी सो रहा होता है और उसे जगने पर ही पता चलता है �क उसे स्�ोक �आ है। दौरा पड़नेक
बाद राि� म� कई बार रोगी मदद के िलए प�रजन� को आवाज भी नह� लगा पाता है। ऐसी िस्थितय� म� उपचार म� िवलम्ब होन
स्वाभािवक है।
• रोगी म� स्�ोक के लक्षण होने पर यह कभी मत सोिचये �क शायद रोगी थोड़ी देर म� ठीक हो जायेगा और तकलीफबढ़ेगी तो बाद
अस्पताल ले चल�गे।
• डॉक्टर को घर पर मत बुलाइय, घर पर वह कुछ नह� कर पायेगा।
• रोगी को कोई घरेलू उपचार या एिस्प�रन मत दीिजये। डॉक्टर अपने िहसाबसे ज�रत होगी तोदेदेगा।
• रोगी अपने वाहन से िच�कत्सा क�न्� जाने क� कभी न सोचे
कमाले–बुज�दली है पस्त होना अपनी नजर� म�,
अगर थोड़ी-सी िहम्मत हो तो �फर क्या हो नह� सकत
�ारंिभक उपचार
स्�ोक का उपचार इस बात पर िनभर्र करता है �क रोगी क स्�ोक इस्केिमक है याहेमोरेिजक है। �ारंिभक उपचार म� िन� पहलु� क
ध्यान म� रखा जाता है।
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• स्�ोक के उपचार म� यह आवश्यक है �क रोगीसे पूछत, र� आ�द क� जाँच, सी.टी.स्के, अन्य आपातकालीन उपचा,
सी.टी.स्केन का िव�ेष, स्�ोक का िनदान और आगे के उपचार क� �परेखा बनाना आ�द सभी कायर् एक घन्टे म� पूरे कर ले
चािहये।
• स्�ोक के उपचार क� मुख्य धुरी मिस्तष्क अर�ता क्षेPenumbra (मिस्तष्क का वह भाग जो अर�ताके कारण पूरी तर
क्षित�स्त नह� �आ) म� र��वाह को पुनस्थार्िपत करना है। इसके िलए मिस्तष्क पर �ए अ-आघात क� गंभीरता और
अविध को न्यूनतम �कया जाता है। इसके पहले �क मिस्तष्क के ऊतक स्थाई �पमरने टीपीए के इंजेक्शन से अव�� धमनी का
पुननर्लीकरण कर �दया जाता है।
• दोन� हाथ� क� अच्छी िशरा� म�18 गॉज का केन्युला लगा कर िशर-पथ तैयार �कये जाते ह�, िजसके �ारा आवश्यकतानुसार
इन्जेक्शन और तरल �� चढ़ाये जाय�गे।
• ऑक्सीजन दी जाती है य�दSPO2 92% से कम हो ता�क मिस्तष्क को पयार्� ऑक्सीजन िमलती र
• रोगी को य�द �सन लेने म� �द�त हो तो समुिचत उपचार �कया जाता है।
• हाटर् अटेक के िवपरीत स्�ोक म� तुरन्त एिस्प�रन नह� दी जाती
• स्�ोक के सा-साथ उसके सह-िवकार� का उपचार भी आवश्यक है। ब्-शुगर पर नजर रखना और उसे सामान्य रखना ज�री है।
स्�ोक म� रोगी को बुखार हो सकता है। ऐसी अवस्था म� मुँह या मल�ारसेपेरासीटामोल दी जाती है
स्�ोक के उपचार म� सुरिक्षत समय क� िखड़क� छोटी होने के कारण िवशेषज्ञ� ने िन� �ोटोकोल को ध्यान म� रखने क� सलाह द
• �ार से डाक्टर क� अविध 10 िमनट
• �ार से सीटी स्केन क� अविध 25 िमनट
• �ार से सीटी स्केन क� �ाख्या क� अविध45 िमनट
• �ार से दवा क� अविध 60 िमनट
• �ार से आइ.सी.यू. बेड तक क� अविध 3 घन्टे
�ोम्बोलाइ�टक उपचार-
�ोम्बोलाइ�टक दवा(खून के थ�� को घोलने वाली दवा) इस्केिमक स्�ोक म� मिस्तष्क का र��वाह पुनरस्थािपत करती है और
को लक्-मु� करने म� ब�त सहायता करती है। ले�कन दुभार्ग्यसे यह कुछ रोिगय�के मिस्तष्क म� र��ाव कर सकती है। इस
िच�कत्सक सारे पहलु� को ध्यान म� रख कर ब�त सूझबूझ और िववेकसे िनणर्य लेता है �क रोगी को �ोम्बोलाइ�टक दवा देनी चाि
या नह�।
स्�ोक के िलए �रकोिम्बनेन्ट डीएनए तकनीक से बनी ि एल्टीप्ले ((rrTTPPAA)) ही अनुमो�दत क� गई है। इसे स्�ोक होने के तीन घन्ट
(ताजा शोध के नतीज� के अनुसार साढ़े चार घन्टे तक दी जा सकती ह) के भीतर ही स्�ोक से होने वाली क्षित को �भावशून्यकरने
अपंगता को रोकने के िलए �दया जाता है। यह खून के थ�� को घोल देती है। इसे िजतना जल्दी �दया जायेग, स्वास्-लाभ उतनी
जल्दी और अच्छा होगा। यह ब�त महँगी दवा , 50 िमली�ाम क� शीशी क� क�मत 40,000 �पये है। इसे हेमोरेिजक या र��ावी-
स्�ोक म� कभी नह� �दया जाता है क्य��क इससे मिस्तष्क म�-�ाव हो सकता है और लेने के देने पड़ सकते ह�। इसे बाँह क� िशरा म�
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छोड़ा जाता है। इसे देने के बाद रोगी को कम से कम 24 घन्टे आ.सी.यू. म� रखा जाता है और एहितयात रखी जाती है �क र��ाव न
हो। इसका सबसे घातक दुष्�भाव र��ाव है। इसे िन� िस्थितय� म� नह� �दया जाता है
• रोगी क� उ� 18 वषर् से कम हो।
• इन्�ा�ेिनयल हेमोरेज।
• हाल म� ही �दल का दौरा पड़ा हो।
• गभार्वस्था व स्तनप
• िपछले तीन महीने म� िसर म� गहरी चोट लगी हो।
• र��ाव िवकार।
• िपछले 14 �दन म� रोगी क� कोई शल्य��या �ई हो।
• मू� या मल म� हाल के �दन� म� र� आया हो।
• रोगी एन्टीकोएगुलेन्ट दवाय� �योग कर रहा हो
• मूछार् या कोमा।
आर.टी.पी.ए. या एल्टीप्ल क� मा�ा क� गणना िन� सू� से क� जाती है।
एल्टीप्ल कुल मा�ा = 0.9 िमली�ाम/ �कलो शारी�रक भार के िहसाब से
(अिधकतम मा�ा 90 िमली�ाम)
इस मा�ा का 10% न्युरोलोिजस्ट �ारा िशरा म60 सेकण्ड म� धीर-धीरे छोड़ा जाता है। शेष 90% मा�ा ि�प �ारा एक घन्टे क� अविध
म� पूरी दे दी जाती है।
एिस्प�रन–
इस्केिमक स्�ोकके बाद दूसरे दौरे को रोकने और खून को पतला रखनेके िल
एिस्प�रन सवर्�े� और स्थािपत दवा है। अमूमन इस325 िमली�ाम क� गोली
आपातकालीन कक्ष म�दे दी जाती है। य�द रोगी पहलेसे एिस्प�रन ले रहा है
इसक� मा�ा कम कर दी जाती है। र� को पतला रखने वाली अन्य दवाय� जैसे
डायिपरीडेमोल, कोमािडन, िहपे�रन, �टक्लोिपडी, क्लोिपडो�ेल आ�द भी �योग
क� जाती ह�, परन्तु एिस्प�रन ही सबसे ज्यादा �चिलत है
इडारावोन (Aravon)
यह एक नया और उमदा �ित-ऑक्सीकारक है जो2001 से जापान म� स्�ोक क� �ारंिभक अवस्था म� सफलतापूवर्क �योग म� िलया
रहा है। यह पहली सेरी�ल न्यूरो�ोटेिक्टव दवा है जो स्�ोक क� �ाथिमक अवस्था म� चमत्कारी असर �दखाती है। यह �रये
ऑक्सीजन िस्पसी(ROS) को सफाया कर मिस्तष्क म� अर�तासे जन्मे �दाह Inflamation (िजसके कारण मिस्तष्क म� सूज
और कोिशक�य क्षित क� वजहसे इनफाक्शर्न हो जात) को शांत करता है और शरीर के अन्य अंग� म� भी ऑक्सीकारक तत्व� को -
चुन कर मारता है। यह एथेरोिस्क्लरोिसस क� �गित को भी रोकता है। आर.पीए. के िवपरीत इसे स्�ोक होने के24 घन्टे के भीतर30
िमिल �ाम सुबह शाम सेलाइन म� िमला कर �दया जाता है। इसक� सुरक्षा िखड़क� आर.पीए. से बड़ी होती है। इसे 14 �दन तक भी
�दया जा सकता है। इसे इस्केिमक और हेमोरेिजक दोन� तरह के स्�ोक म� �दया जा सकता है।
िस�टकोलीन
यह एक सुरिक्षत और स्मृितवधर्क रसायन है िजसे स्�ोक के उपचार म� �योग म� िलया जाता है। यह मिस्तष्क म� फोस्फेटाइि
का स्तर बढ़ाता है। फोस्फेटाइिडलकोलीन मिस्तष्क क� कोिशका� के िलए ब�त ज�री यौिगक माना गया है। साथ म� यह मिस्तष
एक उपांग िहपोकेम्प, जो स्मृित का कैन्� माना जाता , म� एिसटाइलकोलीन का स्तर बढ़ाता है। एसीटाइलकोलीन एक नाड़ी
संदेशवाहक है जो िविभ� नाड़ी कोिशका� म� संपकर् और समन्वय बढ़ाता है। इसिलए िस�टकोलीन स्मृित और संज्ञानात
(Cognition) म� वृि� करता है। य�द स्�ोक होने के24 घन्टे के भीतर िस�टकोलीन दे �दया जाता है तो यह मिस्तष्क को क्षि
होने से बचाता है। इसक� मौिखक मा�ा 1000-2000 िमिल�ाम �ित�दन है, िजसे दो खुराक म� िवभािजत करके �दया जाता है। इसे
िशरा म� भी �दया जाता है। अिन�ा, िसरददर, दस्, उ� (या िन�) र�चाप, छाती म� ददर, धुँधली दृि� आ�द इसके पाष्वर्�भाव ह�
गभार्वस्था और स्तनपान म� यह व�जत है
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अस्पमाररोधी या एन्टीसीज्योर दवा – हालां�क स्�ोक म� सीज्योर या िमग�के जैसे दौरे ब�त क
पड़ते ह�। परन्तु य�द बा-बार पड़� तो खतरनाक िस्थित बन जाती है। इनके िलए डायजेपाम और लोरेजेपाम पहले उपचार माने जाते ह�।
एन्टीहाइपरटेिन्सव दवाए – लेबेटालोल, एनालेि�ल, िनका�डपीन, सोिडयम नाइ�ो�ुसाइड आ�द �योग म� ली
जाती है। स्�ोक म� र�चाप िनयं�ण ब�त बुि�मानी से �कया जाता है। आ.टी.पी.ए. देने के दौरान तो 24 घन्टे तक और ज्याद
सतकर्ता रखी जाती है। र�चाप के बढ़ने से र��ाव क� संभावना बढ़ती है और ज्यादा कम हो जाये तो अर�ता बढ़ सकती है।
य�द िसस्टोिलक र�चापSBP 185 से अिधक या डायस्टोिलक र�चापDBP 110-139 बना रहे तो 10 िम.�ा. लेबेटालोल िशरा म�
1-2 िमनट म� दे �दया जाता है और र�चाप हर 5-10 िमनट के अन्तराल म� नापा जाता है। य�द र�चाप कम न हो तो हर 10-20
िमनट म� 10 या 20 िम.�ा. लेबेटोल �दया जा सकता है। लेबेटालोल क� कुल मा�ा 150 िम.�ा. से अिधक न दी जाये। ध्यान रख� �क
र�चाप कम भी न हो पाये।
य�द �फर भी डायस्टोिलक र�चाप 140 से अिधक बना रहे तो सोिडयम नाइ�ो�ुसाइड 0.5-10 mg/kg/minute के
िहसाब से िशरा म� ि�प �ारा छोड़�। पूरी सतकर्ता बरत�।
आपातकालीन शल्य उपचार–
िपछले वष� म� स्�ोक के उपचार म� ब�त �गित �ई है और कई नई तकनीक� और शल-��याएं िवकिसत �ई है, िजन्हे िच�कत्सक आ
धड़ल्ले से �योग कर रहे ह� और रोिगय� को जीवन दान दे रहे है।
• आल्टीप्ले (rTPA) सीधा मिस्तष्कके अर�-�स्त क्षे� म� छोड़न िच�कत्सक जांघ के ऊपरी
िहस्से म� चीरा लगा कर जांघ क� धमनी म� केथेटर डाल कर मिस्तष्क तक प�ँचा कर सीधा उस जगह छोड़ता है जहाँ धमनी
�कावट आई है। इस तकनीक म� सुरिक्षत समय का झरोखा थोड़ा बड़ा होता है
• िच�कत्सक धमनी म� जमा खून का थ�ा एक िवशेष केथेटर के �ारा पकड़ कर िनकाल देते ह� और धमनी का अवरोध तुरन्त ठीक ह
जाता है।
• केरो�टड एन्डआरटेक्टॉम- स्�ोक के बाद दूसरे स्�ो
या टी.आई.ए. के जोिखम को कम करने के �योजन से बुरी तरह अव��
केरो�टड या अन्य धमनी को साफ करने के िलए शल्य��या भी क� जाती है
इस ��या म� शल्-िच�कत्सक गदर्न म� िस्थत केरो�टड धमनी के ऊपर
नीचे के दोन� िसर� को बाँध देता है, �फर केरो�टड धमनी म� चीरा लगा कर
धमनी के अन्दर जमा सारे प्लॉक को िनकाल कर धमनी को पुनः िसलदेता ह
और धमनी के िसर� को खोल देता है। इस ��या से इस्केिमक स्�ोक क
जोिखम कम हो जाता है। हालां�क कभी-कभी धमनी के घाव� पर बने थ�े
टूट कर �दय या मिस्तष्क क� धमिनय� म� फँस सकते ह� और रोगी को हाट
अटेक या स्�ोक हो सकता है।
• एिन्जयोप्लास्टी औरस्ट- कोरोनरी बेलून
एिन्जयोप्लास्टी क� भांित मिस्तष्क क� प्लॉक से अव�� धमिन
बेलून से फुला कर चौड़ा कर �दया जाता है। इस ��या म� एक बेलून
केथेटर के िसरे पर िविश� धातु का बना स्टेन्ट िपचक� �ई अवस्था
चढ़ाकर अव�� धमनी म� घुसाया जाता है। जब केथेटर का अिन्तम छौर
अवरोध तक प�ँच जाये तो बेलून को फुलाया जाता है, िजससे स्टेन्ट फै
कर लोक हो जाता है और धमनी को भी फैला देता है। इसके बाद बेलून
को िपचका कर केथेटर को वापस ख�च िलया जाता है।
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हेमोरेिजक स्�ोकका उपचार
हेमोरेिजक स्�ोक के उपचार का मुख्य उ�ेश्य र��ाव को रोकना और मिस्तष्क म� र��ाव के कारणबढ़ते दबाव को कम करना
भिवष्य म� जोिखम कम करने हेतु शल्य��या भी एक िवकल्प है। य�द रोगी पहले से कोमािडन या �बबाणुरोधी दवा क्लोिपडो�ेल
रहा है तो उनके �भाव को िनिष्�य करने के िलए उिचत दवा या र� �दया जाता है। र�चाप को कम करने के िल, सीज्योर को रोकने
के िलए और मिस्तष्क म�वेजोस्पाज्म रोकने के िलए दवाएँ दी जाती हेमोरेिजक स्�ो म� टीपीए, एन्टीकोएगुलेन्ट्स और �बबाणुरो
(खून को पतला करने क� दवाइयाँ) एिस्प�रन आ�द कभी भी नह� दी जाती ह�। क्य��कये र��ाव को बढ़ा सकती ह
ज्य� ही मिस्तष्क म� र��ाव �क जाये रोगी को पूणर् आराम और सपो�टव उपचार �दया जाता है। ता�क इस बीच मिस्तष्क
र��ाव घुलने लगे। य�द र��ाव ज्यादा �आ हो तो मिस्तष्क से र� को िनकालने और दबाव कम करने हेतु शल्य��या क� जाती
हेमोरेिजक स्�ोकम� र�-वािहका� के िवकार� और असामान्यता� को ठीक करने के िलए भी शल्य��या क� जाती है। स्�ोक के बाद
एन्यु�रज्म या ए��योवीनस मालफोरमेशन(AVM) के फटने का जोिखम हो तो िन� शल्य ��याएँ क� जाती ह�।
• एन्यु�रज्म िक्ल�– एन्यु�रज्मके आधार पर एक छोटा सा धातु का िक्लप लगा �दया जाता है औरउसे मु
र�-�वाह से अलग कर �दया जाता है, िजससे एन्यु�रज्मसे र��ाव होने क� संभावना खत्म हो जाती है। िक्लप हमेशा लगा
�दया जाता है।
• एवीएम (ए��योवीनस मालफोरमेशन्) को शल्य��या �ारा िनकाल दना
- हालां�क बड़े और मिस्तष्क म� गहराई पर िस्थत एवीएम को िनकाल पानाहमेशा संभव नह� होता है। ले�कन छोटे एवीएम
आसानी से िनकाल �दया जाता है और एवीएम के फटने क� संभावना तो समा� हो जाती है �फर भी र��ाव का जोिखम तो रहता
ही है।
स्�ोक से बचने के उपा
य�द आपको डायिबटीज है और आपके िच�कत्सक को लगता है �क आपको एथेरोिस्क्लरोि(धमिनय� का कड़ा होना) भी है तो वह
आपको आहार एवं जीवनशैली म� सुधार करने के िलए कहेगा तथा र� को पतला रखने के िलए कुछ दवाइयां भी देगा। स्�ोक के जोिखम
को कम करने के िलए आपको िन� �बदु� का सख्ती से पालन करने क� सलाह देगा
• धू�पान तुरंत बंद कर�।
• िनयिमत िलिपड �ोफाइल चेक करवाते रह� और य�द र� म� LDL कोलेस्�ोल क� मा�ा 100 mg/dl से ज्यादा है तो उसे
कम करने हेतु दवाइयां ल�।
• फल, सिब्जयाँ और रेशायु� भोजन खूब खाय�।
• कॉफ�, सं�� वसा, चीनी, �रफाइन्ड ते, वनस्पित घ, एनीमल फैट, फास्ट फू, और प�रष्कृत फूड आ�द का सेवन न कर�।
• म�दरापान एक पैग �ित�दन से ज्यादा कभी ना ल�।
• अपना वजन संतुिलत रख�।
• र�-चाप िनयिमत नपवाते रह� और ज्यादा रहे तो दवा ल�।
• िच�कत्सक �ारा बतलाए गये आहार िनद�श� का पालन कर�।
• रोज तेज �मण करे और �ायाम कर�।