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स्�ोकपुनवार्स औ आरोग्य�ाि
Dr. O.P.Verma
M.B.B.S.,M.R.S.H.(London)
President, Flax Awareness Society
7-B-43, Mahaveer Nagar III, Kota(Raj.)
Join me at http://flaxindia.blogspot.com/
http://memboy.blogspot.com/
E-mail – dropvermaji@gmail.com
                       +919460816360
स्�ोक के आपातकालीन उपचार के बाद हमारा पूरा ध्यान रोगी को शारी�  और  मानिसक �प से स्वस्थ रख , स्�ोक से आई
अश�ता, अक्षम, अयोग्यता और अपंगता को दूर करने तथा उसे अिधक से अिधक आत्मिनभर्र बनाने क� ओर रहता है। यही अच
स्�ो पुनवार्स या �रहेब  कायर्�म Rehabilitation (“rehab”) Program का मुख्य
उ�ेश्य होता ह, िजसम� िवशेषज्ञ� क� टोली पराम, �िशक्, अभ्या, �ायाम आ�द के 
�ारा  रोगी म� आई कमजोरी, अयोग्यता और िवकलांगता को दूर करने म� हर संभव मदद
करती है। पुनवार्स तभी शु� हो जाता है जब आप अस्पताल म� भरती होते हो और बाद म
आप के घर या �कसी पुनवार्स कैन् म� चलता  है।  पुनवार्स इन तीन �मुख िबन्दु� प
कैिन्�त होता है।
• रोगी को अिधक से अिधक आत्मिनभर्र बनाना
• स्�ोक से आई अक्षमता और अपंगता को दूर क, स्वीकार करने और उनके साथ
जीने क� कला िसखाना। 
• स्�ोक से जन्मी नई प�रिस्थितय� के अनुसार रोगी को, प�रवार, कायर्स्थल औ
समाज म� पुनस्थार्िपत करना।
शब्दाथर: िशकस्त– हारना,  िगरदाब – भंवर,  दौरे-तलातुम - पानी का मौज� मारना, बाढ़
क्या स्�ोक से स्थाई अक्षमता और िवकलांगता आ?
खा-खा के िशकस्त फतह पाना सीख, िगरदाब म� कहकहा लगाना सीखो,
इस  दौरे-तलातुम म� अगर जीना है,  खुद अपने को तूफान बनाना सीखो।
तुम अपना  रंजोगम  अपनी  परेशानी  मुझे  दे  दो,
मुझे अपनी  कसम यह दुख यह हैरानी मुझे दे दो।
म� देखूं तो सही, यह दुिनया तुझे  कैसे  सताती है,
कोई �दन के िलये तुम अपनी िनगहबानी मुझे दे दो।
ये माना  म� �कसी  कािबल नह� इन िनगाह�  म�,
बुरा क्या है अग  इस �दल क� वीरानी मुझे दे दो।
                              सािहर लुिधयानवी
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स्�ोक मिस्तष्क के कुछ भाग को क्षित�स्त  करता है जो शरीर के कई काय� जैस, गित आ�द का  सम्पादन  करता था। ऐसी
िस्थित म� मिस्तष्क के स्वस्थ ऊतक इन काय� को करने लगत अिधकतर रोगी  पुनवार्स से  अपनी खोई �ई अक्षमता औअपंगता
को ठीक कर लेते ह�।  
ले�कन कई रोिगय� म� थोड़ी ब�त स्थाई अपंगता रह ही जाती है। नेशनल स्�ो
एसोिसयेशन के अनुसार:
• 10% रोगी पूणर्तया ठीक हो जाते ह�।  
• 25% रोिगय� म� मामूली अक्षमता रह जाती है
• 40% रोिगय� म� मध्यम से गंभीर स्तर क� अक्षमता और अपंगता रह जाती
तथा िवशेष देखरेख क� आवश्यकता होती है।
• 10% रोिगय�  को लम्बे समय तक िच�कत्-क�� या पुनवार्स क�� म� रखना
पड़ता है।  
पुनवार्स कब तक चलता ह?
अिधकतर रोिगय� म� पुनवार्स जीवन पयर्न्त चलता है। आरोग्य �ाि� क� यह डगर ,  उबाऊ और थकाने वाली ज�र है, ले�कन
आप दृढ़ इच्छा शि� और सकारात्मक दृि�कोण रख�गे तो राह� ब�त आसान हो जायेगी। बस आप बतलाये गये �ाय, अभ्या,
कायर् और ददर् िनवारण  के िलए यथासंभव उपाय करते जाइये। िवशेषज्ञ आप क� मदद के िलए सदैव तत्पर रहते ह�। आपके प�
और िम�� का प्या,  �ोत्साहन और �ेरणा तो जादू क� झप्पी का काम करेगी। वैसे तो कुछ ही हफ्त� या महीन�  म� आप काफ� ठ
हो जायेगे  परन्तु स्वास-सुधार क� यह ���या धीरे-धीरे  वष� तक चलती ही रहेगी। बस आप आशा के दीपक को कभी बुझने मत 
देना।  
कसरते-गम म� लुत्फ-गमख्वार, सागरे-मय का काम देती है,
व� पर इक लफ्ज-हमदद�,   इ�े-म�रयम का काम देती  है।
शब्दाथर: कसरत - बा�ल्, अिधकता,  सागरे-मय - शराब का प्यला,  गमख्वारी– हमदद�, इ�े-म�रयम - म�रयम का पु� ईसा जो 
फूंक से मुद� को िजला देते थे।
स्�ोक पुनवार्स का एक ज�री उ�ेश्य भिवष्य म� दूसरे संभािवत दौरे को रोकना भी है। आरोग्य �ाि� हेतु रोगी को दवाइयां दी 
है, उसके िलए बेहतर आहार तथा �ायाम बतलाये जाते है  और जीवनशैली म� बदलाव लाया जाता है। पुनवार्स से सबसे अिधक लाभ
शु� के कुछ महीन� म� होता है, इसिलए पुनवार्सकायर्�मिजतना जल्दी संभव हो शु� कर देना चािहए।          
स्�ोक से खोई �ई अक्षमता और अपंगता के �ा� करन
मिस्तष्क एक अनूठा और शि�शाली अंग , जो ज�रत पड़ने 
पर नये स�कट बना लेता है, अपनी कोिशका� को नये काम 
करने के िलए �ो�ाम कर देता है और अपनी क्षमता� क
िवस्तार कर लेता है। स्�ोक म� इसके कुछ ऊतक बेकार हो जात
ह�, तो मिस्तष्क का स्वस्थ भाग स्�ोक से क्षित�स्त �
के कायर् अपने हाथ म� ले लेता है। 
पुनवार्स कायर्�म म� सबसे पहले सुधार चल, हाथ� और पैर� 
को िहलाने-डुलाने आ�द काय� म� आता है। �ायः पुनवार्स स्�ो
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के 24 से 48 घन्टे बाद ही शु� हो जाता ह, जब रोगी आई.सी.यू. या वाडर् म� ही होता है। जैस-जैसे रोगी सश� और स��य होने 
लगता है,  नसर् या थैरेिपस्ट रोगी को छ-छोटे काम िसखाना शु� कर देती है िजन्ह� वह स्�ोक के कारण कर पाने म� अक्षम हो च
था। हर रोगी क� पुनवार्स या�ा अल-अलग होती है और रोगी क� ज�रत और प�रिस्थित पर िनभर्र करती है। मसलन य�द रोग
को �दयरोग है तो उसे धीरे-धीरे काम िसखाये जाय�गे। 
अस्पताल से छु�ी होने के बाद पूरा ध्यान पुनवार्स पर �दया जाता है। रोगी पुनवार्स अपन, न�सग होम या �कसी अच्छे �रहे-
सेन्टर म� ले सकता है। दैिन चयार् के काम दोबारा िसखाने के िलए ऑक्युपेशन थैरेपी का भी सहारा िलया जाता है । इसके तहत 
�ायाम, �िशक्षऔर अभ्यास करवाया जाता ह।  स्�ोक के बादरोगी को खाना, पीना, िनगलना, नहाना-धोना, तैयार होना, कपड़े 
पहनना, खाना पकाना, िलखना, पढ़ना, बाथ�म जाना आ�द  सभी  कायर् नए िसरे से िसखलाये जाते ह�।   मरीज़ को पूरी तरह 
आत्मिनभर्र बनाना इसका ल�य होता ह
स्�ोक के दुष्�भ
स्�ोक के कारण कई अस्थाई या स्थाई अक्षमता या अपंगता हो सकती है जो इस बात पर िनभर्र करती है �क र� का �वाह म
के �कस भाग म� और �कतनी देर बन्द रहा।  स्�ोक म� िन� अक्षमता या अपंगता हो सकती 
• पक्षाघा- माँस-पेिशय� म� दुबर्लता व गितहीनत – स्�ोक म� मां-पेिशयाँ दुबर्, गितहीन, बेकार, िनिष्�य
और िनज�व सी हो जाती ह�। स्�ोक के कारण मिस्तष्क म� िजस तरफ क्षित �ई है उसके िवपरीत या दूसरी तरफ शरीर क�-
पेिशय�  म� कमजोरी और लकवा पड़ता है। अथार्त य�द मिस्तष्क म� खराबी बांई तरफ �ई है तो शरीर का दायां भाग ल-�स्त
होता है। य�द पक्षाघात या लकवा शरीर के आधे भाग को �भािवत करता है तो इसे हेमीप्लेिज( Hemiplegia) और  आधे 
शरीर म� आई माँस-पेिशय� क� दुबर्लता या कमजोरी को हेमीपरेिसस(Hemiparesis) कहते ह�।  हेमीपरेिसस  या हेमीप्लेिजया
के कारण रोगी को चलने-�फरने या कोई चीज पकड़ने म� �द�त होती है। 
कभी कुछ मांस-पेिशय� का एक समूह बेकार हो जाता है जैसे �क बेल्स पाल्सी म� आधे चहेरे क� पेिशयां लक -�स्त होती ह�।
दौरा पड़ने पर रोगी के मुँह और गले क� मांस-पेिशयाँ कमजोर और िनिष्�य हो जाती ह� और उन पर रोगी का िनयं�ण नह�
रहता है, िजससे उसे िनगलने और बोलने म� �द�त (dysphagia और dysarthria) हो सकती है। रोगी  शरीर म� संतुलन और 
सामंजस्य बनाये रखने म�(ataxia) भी असमथर् महसूस करता है
• संवेदनात्मक(Sensory) िवकार और ददर्– स्�ोक म� स्प, ददर, तापमान,  गुंजन आ�द संवेदना� को महसूस 
करने क� क्षमता कम हो जाती है। पक्षाघात से �स्त पैर या हाथ म, सु�ता, चुभन, जलन या  झनझनाहड़ (paresthesia)
हो सकती है। स्मृि, िवचार और सीखने क� योग्यता कमजोर पड़ जाती है।  कुछ रोिगय� को अपने लकव -�स्त हाथ या पैर क�
अनुभूित ही नह� होती है। कई रोगी हाथ या पैर के असहनीय ददर् से परेशान रहते ह�। यह ददर् कई बार गितहीन जोड़� आ
अकड़न क� वजह से भी होता है। माँस-पेिशय� म� अकड़न और जकड़न आ जाना सामान्य बात है।  उसके हाथ म� ठंड के �ित
संवेदना ब�त बढ़ सकती है। यह दुष्�भाव आमतौर पर स्�ोक के कई हफ्त� के बाद होता है।  संवेदनात्मक िवकार के क
मू�त्याग  और मलिवसजर्न पर िनयं�ण भी कमजोर पड़ जाता है।
• वाणी, भाषा और सं�ेक्  िवकार (Speech, Language and Communication
disabilities) -   
स्�ोक के25%  रोिगय� को बोलने, पढ़ने, िलखने और समझने म� �द�त होती है। अपने िवचार� को भाषा और वाणी के माध्यम
से �� न कर पाने को वाचाघात या ( aphasia) कहते ह�। स्मृि, िवचार और सीखने क� योग्यता कमजोर पड़ जाती है कभी 
रोगी को उपयु� शब्द या वाक्य याद तो होता है पर वह बोल नह� पाता है इसे वाणीदो(dysarthria) कहते ह�।
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• बोधन, िवचार और स्मृित िवकार( Cognitive, Thought and Memory Problems)–
स्�ोक रोगी क� सजगता औरअल्पकाली स्मृित का �ास करता है। याददाश्त कमजोर पड़ जाती है या रोगी �ि, अस्त�स,
बुि�हीन और िववेकहीन �दखाई देता है।  रोगी कोई योजना बनाने, नया काम सीखने, िनद�श� का पालन करने म� असमथर्
महसूस करता है। कई रोिगय� को िनणर्य लेन, तकर-िवतकर् करने और चीज� को समझने म� ब�त �द�त होती है। कई बार रोगी को
अपने शरीर म� आई अयोग्यता और अपंगत का अनुमान और अनुभूित भी नह� होती है।  
• भावनात्मक िवकार( Emotional Disturbances) – स्�ोक से रोगी म� कई भावनात्मक औ �ि�त्
सम्बंधी प�रवतर्न होते ह�।  स्�ोक के रोगी अक्स, �चता, तनाव, कुंठा, �ोध, उ�ता, संताप, अकेलेपन और अवसाद का
िशकार हो ही जाते ह�। रोगी अपनी भावना� पर िनयं�ण नह� रख पाता है और उसके िलए अकारण चीखना, िचल्लान, हंसना  
या मुस्कुराना सामान्य बात हो जाती है।  उन्हे अपने दैिनक कायर् करने म� भी क�ठनाई होती है और प�रवार के �कसी सदस्
नौकर पर आि�त रहना पड़ता ह�।
• ल�िगक िवकार – स्�ोक के बाद ल�िगक समस्याएं होना स्वाभािवक बात है। स्�ोक के कारण रोगी और उसके जीवनसाथी
आपसी �मानी संबन्ध� म� िशिथलता आ जाती है। कई बार स्�ोक के वष� बाद तक रोगी ल�िगक अयोग्यता का िशकार बना रह
है। स्�ोक के बाद दी जाने वाली िड�ेशन क� दवाइयाँ भी ल�िगक िवकार पैदा करती है। माँ-पेिशय� म� ददर, एंठन, �खचाव, जोड़� 
म� आई जकड़न  और शारी�रक िनष्चलता भी ल�िगक संसगर्  अ�िचकर और क�दायक बना देती है। स्�ोक के कारण
जननेिन्�य� म� चेतना और संवेदना भी ब�त कम हो जाती ह, पु�ष� म� स्तंभनदोष होना सामान्य बात है और मिस्तष्क
कामेच्छा और ल�िगक हाम�न्स को िनयंि�त करने वाला उपांग हाइपोथेलेमस भी क्षित�स्त हो जात
पुनवार्स टीम–
स्�ोक पुनवार्-  य�द आपके �कसी अजीज को स्�ोक होता है तो िसफर् उसे सांत्वना देने 
उसक� देखभाल करने मा� से काम चलने वाला नह� है। आपको अच्छे पुनवार्स क�न्� से संप
करना होगा और िवशेषज्ञ� से तालमेल रख कर उसका पुनवार्स उपचार शु� करवाना होग
रोगी के पुनवार्स म� सबसे महत्वपूणर् भूिमका तो उसके प�रवार के सदस्य� क� होती है। डाक
और प�रचा�रका� के अलावा पुनवार्स टोली म� मुख्यतः िन� िवशेषज्ञ होते 
1- भौितक िच�कत्सक( Physiotherapist) पुनवार्स टोली का ब�त महत्वपूणर् सदस्, जो 
स्�ोक से अंगो क� खोई �ई शि, गित और स��यता को पुनः �ा� करने म� आपक� मदद 
करता है और आपके दुबर्ल और अपंग �ए अंग� के िलए उिचत �ायाम करना िसखलाता है।
यह आपको व्हीलचेय, वाकर आ�द का सही �योग करना बतलाता है।  शारी�रक संतुलन
और सामंजस्य बनाये रखना िसखलाता है।
2- ऑक्युपेशनल थैरेिपस्– आपको खाना, नहाना, कपड़े पहनना, िलखना और दैिनक-चयार् के
काम िसखलाता है।
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3- संभाषण िवशेषज्( speech-language therapist) – यह स्�ोक के बाद आपक� वाणी म� आई
िवकृितय� को दूर करने म� मदद करता है। आपको िनगलना िसखलाता है। आपको  सं�ेक् के अन्य तरीके जैसे हा-भाव, मु�ा
आ�द िसखलाता है। यह आपक� संज्ञानात्मक क्षमता 
योजना बनाना, िनद�श� का पालन करना, िनणर्य लेन,
तकर-िवतकर् करना आ�द  को पुनः �ा� करने म� मदद करता
है।
4- समाजसेवक या केस मेनेजर ( social
worker or case manager) – यह रोगी 
और पुनवार्स टोली दोन� के  बीच संपकर् और सामंजस
रखता है और आपको घर पर पुनवार्स करना म� यथासंभव
मदद करता है।
5- मनोिवशेषज्ञ या सलाहका – यह  घबराहट,
िचन्त, उ�ता और अवसाद से उबरने म� आपक� मदद करता है और भावनात्मक सम्बल देता है।
6- आहार िच�कत्सकDietitian – रोगी को  वजन घटना, मू�-असंयमता और  िनगलने म� �द�त हो सकती है। आहार 
िच�कत्सक सभी पहलु� को ध्यान म� रख कर आपका आहार सुिनि�त करता है। वह आपको कम सोिडयम और �दयानुकू
(heart-healthy) आहार क� सलाह देता है ता�क आपको भिवष्य म� दूसरा दौरा न पड़े
ध्यान रख�स्�ोकका दूसरा दौरा न पड़ जाये 
स्�ोक के बाद स्� का दूसरा दौरा पड़ने क� संभावना भी बनी रहती है। इसिलए हम� पूरी सतकर्ता रखनी चािहए ता�क रोगी को 
दूसरा दौरा न पड़े। दौरे से बचने के िलए िन� उपाय करने चािहए। 
• धू�पान तुरंत बंद कर�। 
• एिस्प�रन औत अन्य �बबाणुरोधी दवाइयां
• िनयिमत िलिपड �ोफाइल चेक करवाते रह� और य�द र� म� LDL कोलेस्�ोल क� मा�ा 100 mg/dl   से ज्यादा है तो उसे
कम करने हेतु दवाइयां ल�। 
• य�द रोगी को ए��यल �फि�लेशन (Atrial Fibrillation) हो तो उसका समुिचत उपचार ज�री है। 
• फल, सिब्जयाँ और रेशायु� भोजन खूब खाय�।
• कॉफ�, सं�� वसा, चीनी, �रफाइन्ड ते, वनस्पित घ,  एनीमल फैट, फास्ट फू, और प�रष्कृत फूड आ�द का सेवन न कर�। 
• म�दरापान एक पैग �ित�दन से ज्यादा कभी ना ल�।
• अपना वजन संतुिलत रख�। 
• र�-चाप और र�-शकर्रा को िनयं�ण म� रख। 
• िच�कत्सक �ारा बतलाए गये आहार िनद�श� का पालन कर�।
• रोज तेज �मण करे और �ायाम कर�। 
पुनवार्स कायर्
चूं�क स्�ोक मिस्तष्क के िविभ� िहस्स� को �भािवत करत, इसिलए इसम� लक्षण भी िविवध और िवस्तृत होते ह� और िच�कत
तथा पुनवार्स  करते समय इन्ह� ध्यान म� रखा जाता है। पुनवार्स का मुख्य उ�ेश्-पेिशय� को शि�शाली बनाना और उन्ह� �ठन
और �खचाव से बचाना होता है।  म� कुछ महत्वपूणर्  कायर्�म� को संक्षेप म� नीचे िलख रहा
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• �ायाम और अभ्यास-  स्�ोक के बाद हमारी �ाथिमकता यही रहती है �क रोगी को िजतना जल्दी हो सके चलने का अभ्य
करवा �दया जाये, ता�क उसे डीप वेन �ोम्बोिसस(DVT) जैसे क�दायक कु�भाव से भी बचाया जा सके।  रोगी को रोज कम से 
कम 50 फुट चलने का अभ्यास करना चािहये। रोगी को चलने का अभ्यास करने म��े�, छड़ी, वाकर और �ेडिमल आ�द ब�त 
मददगार होते ह�। रोगी को �ायाम और अभ्यास करवाते समय उसक� शारी�रक दशा को ध्यान म� रखा जाता है। �ायाम म
ऐरोिबक्, स्�ेन, स्�े�चग और न्युरोमस्कुलर ��याएं करवाई जाती ह
• माँस-पेिशय� का अभ्यास– माँस-पेिशय� के तनाव और जकड़न को दूर करने के िलए स्�े�चग और मोशन �ायाम करवाये जाते
ह�। इन अभ्यास� को िनयिमत और बा-बार पुनरावृि� करने से दुबर्ल और लकवा�स्त मा-पेिशयां धीरे-धीरे स��य होने लगती 
ह�।  
• स्पीच थैरेप - स्पीच थैरेपी भाषा और वा-पटुता , संभाषण करने के अलावा सम्� कण के वैकिल्प तरीके भी िसखलाती है । 
िजन लोग� को संभाषण और िलिखत शब्द� को समझने म� �द�त आ रही ह, वाक्य बनान, बोलने म�  मुिश्कल  रही है, स्पीच
िथरेपी उनके िलए अनुकूल िस� होती है। स्पीच िथरेिपस्ट भाषागत �वीणता के अलावा इन्ह� तालमेल िबठाने के तरीके 
िसखलाता है, ता�क उन्ह� अपने आपको अिभ�� न कर पान का दुख न हो। धीरे-धीरे धैयर् के साथ मरी वह सब कुछ भी सीख 
सकता है, जो उसे स्�ोक सेपहले आता था।  
• ध्यान �िशक्(Attention training) – स्�ोक म� ध्य, सजगता, बोधन और संज्ञानात्मकता संब समस्याएं होना सामान्
बात है। रोगी को िवशेष अनुभूित (stimuli) के �त्यु�र म� कोई अमुक कायर् ब-बार सम्प� करना िसखाया जाता है। उदाहरण
के िलए जैसे रोगी को एक अमुक संख्या सुन कर एक घन्टी बजाने को कहा जाता है। इन्ह� तरीक� म� बदलाव करके रोगी को 
ज�टल कायर् जैसे �ाइव करन, बातचीत करना या अन्य कायर् करना िसखाया जाता है
• ल�िगक समस्या� का समाधान– 1- सेक्स थैरेपी 2- अपने जीवनसाथी से इस िवषय पर खुल कर बात कर� और आपस म� िमल 
कर ल�िगक आनंद के नये सरल तरीके खोज�।  3- अपने िच�कत्सक से पूछ� �क क्या उसे ऐसी कोई दवा तो नह� दी गई है िजसक
कारण उसे ल�िगक िवकार �आ हो। 4- स्पश, चुम्बन और आ�लगन जैसी �े-��ड़ा� से संबन्ध� को पुनः �मानी बनाने का य�
कर�। 5- औषिधयाँ। 
• बो�ुिलनम टॉिक्सन–  कई बार हेिमपरेिसस के रोिगय� क� मासँ-पेिशय� म� तनाव, �खचाव और अकड़न भी आ जाती है। इसके 
उपचार म� बो�ुिलनम टॉिक्सन के इंजेक्शन ब�त फायदेमंद सािबत �ए है। आजकल तीन तरह के बो�ुिलनम टॉिक्सन उपल
ह�। िजनके नाम टाइप-ए - बोटोक्स और िडस्पोटर् तथा ट-बी - मायोब्लॉक ह�।  
• रोबो�टक उपकरण – स्�ोक पुनवार्स म� आजकल क
रोबो�टक उपकरण काम म� िलए जा रहे ह�। ये उपकरण 
रोगी को उनके लकवा-�स्त पैर या हाथ� क� खोई �ई
शि� और अपंगता को पाने म� ब�त कारगर सािबत हो 
रहे ह�। इनक� मदद से रोिगय� को कसरत और अभ्यास
करने म� ब�त स�िलयत होती है और काम करना जल्दी
सीखते है। रोबोट एक अच्छे �ि कक क� तरह रोगी के 
हाथ या पैर� क� हरकत पर पैनी नजर रखते ह�, उसी 
िहसाब से कसरत करवाते ह�। य�द रोगी िगरने लगे तो 
रोबोट उसे पकड़ कर थाम लेते ह�। रोगी य�द अपने हाथ 
या पैर से कोई हरकत न कर पाये तो रोबोट उसे सहारा
देता है और हरकत करने म� मदद करता है। कसरत क� 
बार-बार पुनरावृि� और अभ्यास  करवाता है। आप संत
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कबीर का दोहा प�ढ़ये।  संल� िच� म� रोगी लोकोमोट रोबोट पर कसरत कर रहा है। 
हाथ� क� कसरत के िलए इनमोशन-2, इनमोशन-3, एमािडयो, मायोमो ई-100 और पैर� के िलए लोकोमोट, एंकलबोट, पीके-
100, �रयोएम्बुलेटर आ�द रोबोट ब�त �चिलत हो रहे ह�। 
• काल्पिनकवास्तिवकत (Virtual Reality) - इस तकनीक म� कम्प्युट सॉफ्टवेयर के
�ारा एक वास्तिवक लगने वाली ले�कन काल्पिनक दुिनयां सजाई  जाती , िजसक� 
मदद से रोगी अपने हाथ और पैर� से कई तरह के काम करना सीखते ह�। इस तकनीक के 
अच्छे प�रणाम िमल रहे ह� और इसे रोबो�टक उपकरण� के साथ भी �योग �कया जा
रहा है।  
• एक्युपंक्च– यह चीन क� ब�त पुरानी और सुरिक्षत उपचार प�ित है िजसम� त्वचा के खास ऊजार् क म� सुइयां घुसाई जाती 
ह�। स्�ोक के कई लक्षण� जैसे म-पेिशय� क� दुबर्लत, तनाव और ददर् म� एक्युपंक्चर से काफ� फायदा िमलता इससे लाभ 
भले धीरे-धीरे िमलता है परन्तु यह पूणर्तः सुरिक्षत उपचार ह
• िव�ुत उ�ेजना (Electrical stimulation) – इस तकनीक म� कमजोर माँस-पेिशय� म� कम िवभव क� िव�ुत-धारा �वािहत क� 
जाती है िजससे उनका संकुचन होता है और वे अपनी खोई �ई शि� पुनः �ा� करती ह�।  
स्�ोक पुनवार्स म� दवाइया
स्�ोक के बाद  रोगी को शारी�रक वेदना, पीड़ा, ददर, आकषर्( Muscular spasm), �ाकुलता, �चता, अिन�ा और अवसाद 
(Depression) रहता है िजसके उपचार के िलए समुिचत दवाइयां दी जाती ह�। 
ददर् िनवारक और अवसादरोधी दवाइयां–
सलेिक्टव सीरोटोिनन �रअपटेक इिन्हिबटस–
इनम� िसटेलो�ाम, एिसटेलो�ाम, फ्लुओक्से�, परोक्से�ट, सट�िलन आ�द �मुख ह�। SSRIs मिस्तष्क म�मुख नाड़ीसंदेशवाहक� का
संतुलन बनाये रखते ह�, िजससे अवसाद के लक्षण� म� सुधार आता है। अवसाद के अलावा ये वेद, पीड़ा और ददर् का भी िनवारण
करते ह�। ये ि�च��य, चतुचर्��य अवसादरोधी और माओ इिन्हिबटसर् से ज्यादा सुरिक्षत माने जात SSRIs का असर एक से तीन
स�ाह म� होने लगता ह� ले�कन रोगी को पूरा लाभ छः से आठ स�ाह म� होता है। इन्ह� कभी भी अचानक बंद नह� करना चािहए।
SSRIs से कभी-कभी  रोगी को ल�िगक-िवकार हो सकता है।  िजसके िलए उसे िसलडेना�फल दी जा सकती है। बु�ोिपयोन से ल�िगक-
िवकार कम होते ह�।  
इनके पाष्वर् �भाव िमत, भूख न लगना, दस्त लगन, अधैयर्त, िचड़िचड़ापन, सुस्त, िन�ा-िवकार, काम-दुबर्लत, ल�िगक-िवकार,
िसरददर, च�र, आत्महत्या करने का िवचार आना आ�द होते ह�
ि�च��य और चतुचर्��य अवसादरोध
8 | P a g e
िजनम� एिम��प्टीली, डेिस�ेमीन, डोक्सेपी, इिम�ेिमन, नोर��प्टीली आ�द �मुख ह�। ये मिस्तष्क म� मन को �स� रखने और दद
क� अनुभूित को कम करने वाले कुछ नाड़ीसंदेशवाहक� का स्तर बढ़ाते ह�। कम मा�ा म� ये अच्छे ददर् िनवारक है और ज्यादा मा�ा
अवसादरोधी ह�। कम मा�ा म� ये िचरकारी ददर-िवकार� ( Long-term Pain Syndrome) म� ब�त असरकारी ह�। साथ म� ये  मन म�
उदासी, अिन�ा, ग्लाि, कुन्ठ, बेचैनी और �ाकुलता से भी राहत �दलाते ह�। इन्ह� राि� म� सोने के पहले �दया जाता है क्य��क इन्ह
लेने के बाद सुस्ती आती है।SSRIs क� भांित इनका असर भी एक से तीन स�ाह म� होने लगता ह� ले�कन रोगी को पूरा लाभ छः से 
आठ स�ाह म� होता है। इन्ह� कभी भी अचानक बंद नह� करना चािहए।    
इनके पाष्वर् �भाव मुँह सीख, च�र, सुस्ती आन, िसरददर, वजन बढ़ना, कब्ज, िमतली, उलटी, �ासक�, ह�ठ, जीभ, चेहरे या गले 
म� सूजन, आत्महत्या करने का िवच, उ�ता, बैचेनी, दौरा पड़ना, �दयगित तेज होना आ�द ह�।  
अप्समाररोधी(Anticonvulsants)
काबार्मापेजी, गाबापेिन्ट, ऑक्सकाब�जी, वेल�ोइक एिसड, ि�गाबािलन, टोिपरामेट आ�द दवाइयां �योग म� ली जाती ह�। ये 
संभवतः मिस्तष्क म� ददर् क� संवेदना� के �वाह को बािधत करती ह� इसिलए िचरकारी और नाड़ीजिनत -िवकार� म� ब�त 
�भावशाली ह�। इन्ह� भी कम मा�ा से शु� करके धीर-धीरे मा�ा बढ़ाई जाती है और अचानक बंद नह� �कया जाता है।    
इनके मुख्य पाष्वर् �भाव िसरद, वजन बढ़ना/कम होना, �िमत होना, भूख न लगना, त्वचा म� चक�, िमतली, उलटी, पेट ददर, पैर� 
म� सूजन आ�द ह�।  
िन�ाकारी दवाइयां (Sedatives) – स्�ोक के बाद रोगी को न�द न आना सामान्य घटना है। इसके िलए रोगी क
िन�ाकारी या अवसादरोधी दवाइयां जैसे नाइ�ेजेपाम,  मटार्जेपी, जोिल्पडो, जोिपक्लो आ�द दी जाती ह�।
�शांतक दवाइयां   (Tranquilizers) – स्�ोक के रोिगय� म�  अधैयर्त, उत्सुकत, घबराहट, दुिनया भर  िचन्त और  
तनाव रहना सामान्य बात ह,  िजसके उपचार के िलए बेन्जोडायजेपीन्स जैसे डायजेप, लोराजेपाम, एल्�ाजोला, बुिस्परो ,
क्लोनाजेपा, ए�टजोलाम आ�द दी जाती ह�। िमथाइल फेिनडेट (Addwise 10-30 mg/day in div doses) रोगी के मन को �स�
रखने और मनोदशा को सकारात्मक बनाये रखने के िलए �दया जाता है। 
मनोिवयोगी और मनोिवकाररोधी दवाइयाँ ( Neuroleptics are Antipsychotic
Medicines) -  स्�ोक म� य�द रोगी को उ�त, उ�ेजना और  �ाकुलता हो तो हेलोपे�रडोल, �रसपे�रडोल आ�द िलखी जाती 
ह�। 
मसल-�रलेक्सेन्ट दवाईया- माँस-पेिशय� म� �खचाव, तनाव और अकड़न दूर करने के िलए डेन्�ोली, �टजािनडीन,
बेक्लोफेन आ�द गुणकारी सािबत �ई ह�। 
थ�ारोधी दवाईयाँ (Anticoagulants) – स्�ोक के बाद पैर� क� िशरा� म� र� के थ�े न बने इसिलए िहपे�रन दी
जाती है।   
लेख के अंत म� स्�ोक के रोिगय� को ये शेर भ�ट करता �ँ
9 | P a g e
इन्सान   मुसीबत   में  िहम्मत  न अगर  हार,
आसाँ से वो आसां है, मुिश्कल से जो मुिश्कल ह

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  • 1. 1 | P a g e स्�ोकपुनवार्स औ आरोग्य�ाि Dr. O.P.Verma M.B.B.S.,M.R.S.H.(London) President, Flax Awareness Society 7-B-43, Mahaveer Nagar III, Kota(Raj.) Join me at http://flaxindia.blogspot.com/ http://memboy.blogspot.com/ E-mail – dropvermaji@gmail.com +919460816360 स्�ोक के आपातकालीन उपचार के बाद हमारा पूरा ध्यान रोगी को शारी� और मानिसक �प से स्वस्थ रख , स्�ोक से आई अश�ता, अक्षम, अयोग्यता और अपंगता को दूर करने तथा उसे अिधक से अिधक आत्मिनभर्र बनाने क� ओर रहता है। यही अच स्�ो पुनवार्स या �रहेब कायर्�म Rehabilitation (“rehab”) Program का मुख्य उ�ेश्य होता ह, िजसम� िवशेषज्ञ� क� टोली पराम, �िशक्, अभ्या, �ायाम आ�द के �ारा रोगी म� आई कमजोरी, अयोग्यता और िवकलांगता को दूर करने म� हर संभव मदद करती है। पुनवार्स तभी शु� हो जाता है जब आप अस्पताल म� भरती होते हो और बाद म आप के घर या �कसी पुनवार्स कैन् म� चलता है। पुनवार्स इन तीन �मुख िबन्दु� प कैिन्�त होता है। • रोगी को अिधक से अिधक आत्मिनभर्र बनाना • स्�ोक से आई अक्षमता और अपंगता को दूर क, स्वीकार करने और उनके साथ जीने क� कला िसखाना। • स्�ोक से जन्मी नई प�रिस्थितय� के अनुसार रोगी को, प�रवार, कायर्स्थल औ समाज म� पुनस्थार्िपत करना। शब्दाथर: िशकस्त– हारना, िगरदाब – भंवर, दौरे-तलातुम - पानी का मौज� मारना, बाढ़ क्या स्�ोक से स्थाई अक्षमता और िवकलांगता आ? खा-खा के िशकस्त फतह पाना सीख, िगरदाब म� कहकहा लगाना सीखो, इस दौरे-तलातुम म� अगर जीना है, खुद अपने को तूफान बनाना सीखो। तुम अपना रंजोगम अपनी परेशानी मुझे दे दो, मुझे अपनी कसम यह दुख यह हैरानी मुझे दे दो। म� देखूं तो सही, यह दुिनया तुझे कैसे सताती है, कोई �दन के िलये तुम अपनी िनगहबानी मुझे दे दो। ये माना म� �कसी कािबल नह� इन िनगाह� म�, बुरा क्या है अग इस �दल क� वीरानी मुझे दे दो। सािहर लुिधयानवी
  • 2. 2 | P a g e स्�ोक मिस्तष्क के कुछ भाग को क्षित�स्त करता है जो शरीर के कई काय� जैस, गित आ�द का सम्पादन करता था। ऐसी िस्थित म� मिस्तष्क के स्वस्थ ऊतक इन काय� को करने लगत अिधकतर रोगी पुनवार्स से अपनी खोई �ई अक्षमता औअपंगता को ठीक कर लेते ह�। ले�कन कई रोिगय� म� थोड़ी ब�त स्थाई अपंगता रह ही जाती है। नेशनल स्�ो एसोिसयेशन के अनुसार: • 10% रोगी पूणर्तया ठीक हो जाते ह�। • 25% रोिगय� म� मामूली अक्षमता रह जाती है • 40% रोिगय� म� मध्यम से गंभीर स्तर क� अक्षमता और अपंगता रह जाती तथा िवशेष देखरेख क� आवश्यकता होती है। • 10% रोिगय� को लम्बे समय तक िच�कत्-क�� या पुनवार्स क�� म� रखना पड़ता है। पुनवार्स कब तक चलता ह? अिधकतर रोिगय� म� पुनवार्स जीवन पयर्न्त चलता है। आरोग्य �ाि� क� यह डगर , उबाऊ और थकाने वाली ज�र है, ले�कन आप दृढ़ इच्छा शि� और सकारात्मक दृि�कोण रख�गे तो राह� ब�त आसान हो जायेगी। बस आप बतलाये गये �ाय, अभ्या, कायर् और ददर् िनवारण के िलए यथासंभव उपाय करते जाइये। िवशेषज्ञ आप क� मदद के िलए सदैव तत्पर रहते ह�। आपके प� और िम�� का प्या, �ोत्साहन और �ेरणा तो जादू क� झप्पी का काम करेगी। वैसे तो कुछ ही हफ्त� या महीन� म� आप काफ� ठ हो जायेगे परन्तु स्वास-सुधार क� यह ���या धीरे-धीरे वष� तक चलती ही रहेगी। बस आप आशा के दीपक को कभी बुझने मत देना। कसरते-गम म� लुत्फ-गमख्वार, सागरे-मय का काम देती है, व� पर इक लफ्ज-हमदद�, इ�े-म�रयम का काम देती है। शब्दाथर: कसरत - बा�ल्, अिधकता, सागरे-मय - शराब का प्यला, गमख्वारी– हमदद�, इ�े-म�रयम - म�रयम का पु� ईसा जो फूंक से मुद� को िजला देते थे। स्�ोक पुनवार्स का एक ज�री उ�ेश्य भिवष्य म� दूसरे संभािवत दौरे को रोकना भी है। आरोग्य �ाि� हेतु रोगी को दवाइयां दी है, उसके िलए बेहतर आहार तथा �ायाम बतलाये जाते है और जीवनशैली म� बदलाव लाया जाता है। पुनवार्स से सबसे अिधक लाभ शु� के कुछ महीन� म� होता है, इसिलए पुनवार्सकायर्�मिजतना जल्दी संभव हो शु� कर देना चािहए। स्�ोक से खोई �ई अक्षमता और अपंगता के �ा� करन मिस्तष्क एक अनूठा और शि�शाली अंग , जो ज�रत पड़ने पर नये स�कट बना लेता है, अपनी कोिशका� को नये काम करने के िलए �ो�ाम कर देता है और अपनी क्षमता� क िवस्तार कर लेता है। स्�ोक म� इसके कुछ ऊतक बेकार हो जात ह�, तो मिस्तष्क का स्वस्थ भाग स्�ोक से क्षित�स्त � के कायर् अपने हाथ म� ले लेता है। पुनवार्स कायर्�म म� सबसे पहले सुधार चल, हाथ� और पैर� को िहलाने-डुलाने आ�द काय� म� आता है। �ायः पुनवार्स स्�ो
  • 3. 3 | P a g e के 24 से 48 घन्टे बाद ही शु� हो जाता ह, जब रोगी आई.सी.यू. या वाडर् म� ही होता है। जैस-जैसे रोगी सश� और स��य होने लगता है, नसर् या थैरेिपस्ट रोगी को छ-छोटे काम िसखाना शु� कर देती है िजन्ह� वह स्�ोक के कारण कर पाने म� अक्षम हो च था। हर रोगी क� पुनवार्स या�ा अल-अलग होती है और रोगी क� ज�रत और प�रिस्थित पर िनभर्र करती है। मसलन य�द रोग को �दयरोग है तो उसे धीरे-धीरे काम िसखाये जाय�गे। अस्पताल से छु�ी होने के बाद पूरा ध्यान पुनवार्स पर �दया जाता है। रोगी पुनवार्स अपन, न�सग होम या �कसी अच्छे �रहे- सेन्टर म� ले सकता है। दैिन चयार् के काम दोबारा िसखाने के िलए ऑक्युपेशन थैरेपी का भी सहारा िलया जाता है । इसके तहत �ायाम, �िशक्षऔर अभ्यास करवाया जाता ह। स्�ोक के बादरोगी को खाना, पीना, िनगलना, नहाना-धोना, तैयार होना, कपड़े पहनना, खाना पकाना, िलखना, पढ़ना, बाथ�म जाना आ�द सभी कायर् नए िसरे से िसखलाये जाते ह�। मरीज़ को पूरी तरह आत्मिनभर्र बनाना इसका ल�य होता ह स्�ोक के दुष्�भ स्�ोक के कारण कई अस्थाई या स्थाई अक्षमता या अपंगता हो सकती है जो इस बात पर िनभर्र करती है �क र� का �वाह म के �कस भाग म� और �कतनी देर बन्द रहा। स्�ोक म� िन� अक्षमता या अपंगता हो सकती • पक्षाघा- माँस-पेिशय� म� दुबर्लता व गितहीनत – स्�ोक म� मां-पेिशयाँ दुबर्, गितहीन, बेकार, िनिष्�य और िनज�व सी हो जाती ह�। स्�ोक के कारण मिस्तष्क म� िजस तरफ क्षित �ई है उसके िवपरीत या दूसरी तरफ शरीर क�- पेिशय� म� कमजोरी और लकवा पड़ता है। अथार्त य�द मिस्तष्क म� खराबी बांई तरफ �ई है तो शरीर का दायां भाग ल-�स्त होता है। य�द पक्षाघात या लकवा शरीर के आधे भाग को �भािवत करता है तो इसे हेमीप्लेिज( Hemiplegia) और आधे शरीर म� आई माँस-पेिशय� क� दुबर्लता या कमजोरी को हेमीपरेिसस(Hemiparesis) कहते ह�। हेमीपरेिसस या हेमीप्लेिजया के कारण रोगी को चलने-�फरने या कोई चीज पकड़ने म� �द�त होती है। कभी कुछ मांस-पेिशय� का एक समूह बेकार हो जाता है जैसे �क बेल्स पाल्सी म� आधे चहेरे क� पेिशयां लक -�स्त होती ह�। दौरा पड़ने पर रोगी के मुँह और गले क� मांस-पेिशयाँ कमजोर और िनिष्�य हो जाती ह� और उन पर रोगी का िनयं�ण नह� रहता है, िजससे उसे िनगलने और बोलने म� �द�त (dysphagia और dysarthria) हो सकती है। रोगी शरीर म� संतुलन और सामंजस्य बनाये रखने म�(ataxia) भी असमथर् महसूस करता है • संवेदनात्मक(Sensory) िवकार और ददर्– स्�ोक म� स्प, ददर, तापमान, गुंजन आ�द संवेदना� को महसूस करने क� क्षमता कम हो जाती है। पक्षाघात से �स्त पैर या हाथ म, सु�ता, चुभन, जलन या झनझनाहड़ (paresthesia) हो सकती है। स्मृि, िवचार और सीखने क� योग्यता कमजोर पड़ जाती है। कुछ रोिगय� को अपने लकव -�स्त हाथ या पैर क� अनुभूित ही नह� होती है। कई रोगी हाथ या पैर के असहनीय ददर् से परेशान रहते ह�। यह ददर् कई बार गितहीन जोड़� आ अकड़न क� वजह से भी होता है। माँस-पेिशय� म� अकड़न और जकड़न आ जाना सामान्य बात है। उसके हाथ म� ठंड के �ित संवेदना ब�त बढ़ सकती है। यह दुष्�भाव आमतौर पर स्�ोक के कई हफ्त� के बाद होता है। संवेदनात्मक िवकार के क मू�त्याग और मलिवसजर्न पर िनयं�ण भी कमजोर पड़ जाता है। • वाणी, भाषा और सं�ेक् िवकार (Speech, Language and Communication disabilities) - स्�ोक के25% रोिगय� को बोलने, पढ़ने, िलखने और समझने म� �द�त होती है। अपने िवचार� को भाषा और वाणी के माध्यम से �� न कर पाने को वाचाघात या ( aphasia) कहते ह�। स्मृि, िवचार और सीखने क� योग्यता कमजोर पड़ जाती है कभी रोगी को उपयु� शब्द या वाक्य याद तो होता है पर वह बोल नह� पाता है इसे वाणीदो(dysarthria) कहते ह�।
  • 4. 4 | P a g e • बोधन, िवचार और स्मृित िवकार( Cognitive, Thought and Memory Problems)– स्�ोक रोगी क� सजगता औरअल्पकाली स्मृित का �ास करता है। याददाश्त कमजोर पड़ जाती है या रोगी �ि, अस्त�स, बुि�हीन और िववेकहीन �दखाई देता है। रोगी कोई योजना बनाने, नया काम सीखने, िनद�श� का पालन करने म� असमथर् महसूस करता है। कई रोिगय� को िनणर्य लेन, तकर-िवतकर् करने और चीज� को समझने म� ब�त �द�त होती है। कई बार रोगी को अपने शरीर म� आई अयोग्यता और अपंगत का अनुमान और अनुभूित भी नह� होती है। • भावनात्मक िवकार( Emotional Disturbances) – स्�ोक से रोगी म� कई भावनात्मक औ �ि�त् सम्बंधी प�रवतर्न होते ह�। स्�ोक के रोगी अक्स, �चता, तनाव, कुंठा, �ोध, उ�ता, संताप, अकेलेपन और अवसाद का िशकार हो ही जाते ह�। रोगी अपनी भावना� पर िनयं�ण नह� रख पाता है और उसके िलए अकारण चीखना, िचल्लान, हंसना या मुस्कुराना सामान्य बात हो जाती है। उन्हे अपने दैिनक कायर् करने म� भी क�ठनाई होती है और प�रवार के �कसी सदस् नौकर पर आि�त रहना पड़ता ह�। • ल�िगक िवकार – स्�ोक के बाद ल�िगक समस्याएं होना स्वाभािवक बात है। स्�ोक के कारण रोगी और उसके जीवनसाथी आपसी �मानी संबन्ध� म� िशिथलता आ जाती है। कई बार स्�ोक के वष� बाद तक रोगी ल�िगक अयोग्यता का िशकार बना रह है। स्�ोक के बाद दी जाने वाली िड�ेशन क� दवाइयाँ भी ल�िगक िवकार पैदा करती है। माँ-पेिशय� म� ददर, एंठन, �खचाव, जोड़� म� आई जकड़न और शारी�रक िनष्चलता भी ल�िगक संसगर् अ�िचकर और क�दायक बना देती है। स्�ोक के कारण जननेिन्�य� म� चेतना और संवेदना भी ब�त कम हो जाती ह, पु�ष� म� स्तंभनदोष होना सामान्य बात है और मिस्तष्क कामेच्छा और ल�िगक हाम�न्स को िनयंि�त करने वाला उपांग हाइपोथेलेमस भी क्षित�स्त हो जात पुनवार्स टीम– स्�ोक पुनवार्- य�द आपके �कसी अजीज को स्�ोक होता है तो िसफर् उसे सांत्वना देने उसक� देखभाल करने मा� से काम चलने वाला नह� है। आपको अच्छे पुनवार्स क�न्� से संप करना होगा और िवशेषज्ञ� से तालमेल रख कर उसका पुनवार्स उपचार शु� करवाना होग रोगी के पुनवार्स म� सबसे महत्वपूणर् भूिमका तो उसके प�रवार के सदस्य� क� होती है। डाक और प�रचा�रका� के अलावा पुनवार्स टोली म� मुख्यतः िन� िवशेषज्ञ होते 1- भौितक िच�कत्सक( Physiotherapist) पुनवार्स टोली का ब�त महत्वपूणर् सदस्, जो स्�ोक से अंगो क� खोई �ई शि, गित और स��यता को पुनः �ा� करने म� आपक� मदद करता है और आपके दुबर्ल और अपंग �ए अंग� के िलए उिचत �ायाम करना िसखलाता है। यह आपको व्हीलचेय, वाकर आ�द का सही �योग करना बतलाता है। शारी�रक संतुलन और सामंजस्य बनाये रखना िसखलाता है। 2- ऑक्युपेशनल थैरेिपस्– आपको खाना, नहाना, कपड़े पहनना, िलखना और दैिनक-चयार् के काम िसखलाता है।
  • 5. 5 | P a g e 3- संभाषण िवशेषज्( speech-language therapist) – यह स्�ोक के बाद आपक� वाणी म� आई िवकृितय� को दूर करने म� मदद करता है। आपको िनगलना िसखलाता है। आपको सं�ेक् के अन्य तरीके जैसे हा-भाव, मु�ा आ�द िसखलाता है। यह आपक� संज्ञानात्मक क्षमता योजना बनाना, िनद�श� का पालन करना, िनणर्य लेन, तकर-िवतकर् करना आ�द को पुनः �ा� करने म� मदद करता है। 4- समाजसेवक या केस मेनेजर ( social worker or case manager) – यह रोगी और पुनवार्स टोली दोन� के बीच संपकर् और सामंजस रखता है और आपको घर पर पुनवार्स करना म� यथासंभव मदद करता है। 5- मनोिवशेषज्ञ या सलाहका – यह घबराहट, िचन्त, उ�ता और अवसाद से उबरने म� आपक� मदद करता है और भावनात्मक सम्बल देता है। 6- आहार िच�कत्सकDietitian – रोगी को वजन घटना, मू�-असंयमता और िनगलने म� �द�त हो सकती है। आहार िच�कत्सक सभी पहलु� को ध्यान म� रख कर आपका आहार सुिनि�त करता है। वह आपको कम सोिडयम और �दयानुकू (heart-healthy) आहार क� सलाह देता है ता�क आपको भिवष्य म� दूसरा दौरा न पड़े ध्यान रख�स्�ोकका दूसरा दौरा न पड़ जाये स्�ोक के बाद स्� का दूसरा दौरा पड़ने क� संभावना भी बनी रहती है। इसिलए हम� पूरी सतकर्ता रखनी चािहए ता�क रोगी को दूसरा दौरा न पड़े। दौरे से बचने के िलए िन� उपाय करने चािहए। • धू�पान तुरंत बंद कर�। • एिस्प�रन औत अन्य �बबाणुरोधी दवाइयां • िनयिमत िलिपड �ोफाइल चेक करवाते रह� और य�द र� म� LDL कोलेस्�ोल क� मा�ा 100 mg/dl से ज्यादा है तो उसे कम करने हेतु दवाइयां ल�। • य�द रोगी को ए��यल �फि�लेशन (Atrial Fibrillation) हो तो उसका समुिचत उपचार ज�री है। • फल, सिब्जयाँ और रेशायु� भोजन खूब खाय�। • कॉफ�, सं�� वसा, चीनी, �रफाइन्ड ते, वनस्पित घ, एनीमल फैट, फास्ट फू, और प�रष्कृत फूड आ�द का सेवन न कर�। • म�दरापान एक पैग �ित�दन से ज्यादा कभी ना ल�। • अपना वजन संतुिलत रख�। • र�-चाप और र�-शकर्रा को िनयं�ण म� रख। • िच�कत्सक �ारा बतलाए गये आहार िनद�श� का पालन कर�। • रोज तेज �मण करे और �ायाम कर�। पुनवार्स कायर् चूं�क स्�ोक मिस्तष्क के िविभ� िहस्स� को �भािवत करत, इसिलए इसम� लक्षण भी िविवध और िवस्तृत होते ह� और िच�कत तथा पुनवार्स करते समय इन्ह� ध्यान म� रखा जाता है। पुनवार्स का मुख्य उ�ेश्-पेिशय� को शि�शाली बनाना और उन्ह� �ठन और �खचाव से बचाना होता है। म� कुछ महत्वपूणर् कायर्�म� को संक्षेप म� नीचे िलख रहा
  • 6. 6 | P a g e • �ायाम और अभ्यास- स्�ोक के बाद हमारी �ाथिमकता यही रहती है �क रोगी को िजतना जल्दी हो सके चलने का अभ्य करवा �दया जाये, ता�क उसे डीप वेन �ोम्बोिसस(DVT) जैसे क�दायक कु�भाव से भी बचाया जा सके। रोगी को रोज कम से कम 50 फुट चलने का अभ्यास करना चािहये। रोगी को चलने का अभ्यास करने म��े�, छड़ी, वाकर और �ेडिमल आ�द ब�त मददगार होते ह�। रोगी को �ायाम और अभ्यास करवाते समय उसक� शारी�रक दशा को ध्यान म� रखा जाता है। �ायाम म ऐरोिबक्, स्�ेन, स्�े�चग और न्युरोमस्कुलर ��याएं करवाई जाती ह • माँस-पेिशय� का अभ्यास– माँस-पेिशय� के तनाव और जकड़न को दूर करने के िलए स्�े�चग और मोशन �ायाम करवाये जाते ह�। इन अभ्यास� को िनयिमत और बा-बार पुनरावृि� करने से दुबर्ल और लकवा�स्त मा-पेिशयां धीरे-धीरे स��य होने लगती ह�। • स्पीच थैरेप - स्पीच थैरेपी भाषा और वा-पटुता , संभाषण करने के अलावा सम्� कण के वैकिल्प तरीके भी िसखलाती है । िजन लोग� को संभाषण और िलिखत शब्द� को समझने म� �द�त आ रही ह, वाक्य बनान, बोलने म� मुिश्कल रही है, स्पीच िथरेपी उनके िलए अनुकूल िस� होती है। स्पीच िथरेिपस्ट भाषागत �वीणता के अलावा इन्ह� तालमेल िबठाने के तरीके िसखलाता है, ता�क उन्ह� अपने आपको अिभ�� न कर पान का दुख न हो। धीरे-धीरे धैयर् के साथ मरी वह सब कुछ भी सीख सकता है, जो उसे स्�ोक सेपहले आता था। • ध्यान �िशक्(Attention training) – स्�ोक म� ध्य, सजगता, बोधन और संज्ञानात्मकता संब समस्याएं होना सामान् बात है। रोगी को िवशेष अनुभूित (stimuli) के �त्यु�र म� कोई अमुक कायर् ब-बार सम्प� करना िसखाया जाता है। उदाहरण के िलए जैसे रोगी को एक अमुक संख्या सुन कर एक घन्टी बजाने को कहा जाता है। इन्ह� तरीक� म� बदलाव करके रोगी को ज�टल कायर् जैसे �ाइव करन, बातचीत करना या अन्य कायर् करना िसखाया जाता है • ल�िगक समस्या� का समाधान– 1- सेक्स थैरेपी 2- अपने जीवनसाथी से इस िवषय पर खुल कर बात कर� और आपस म� िमल कर ल�िगक आनंद के नये सरल तरीके खोज�। 3- अपने िच�कत्सक से पूछ� �क क्या उसे ऐसी कोई दवा तो नह� दी गई है िजसक कारण उसे ल�िगक िवकार �आ हो। 4- स्पश, चुम्बन और आ�लगन जैसी �े-��ड़ा� से संबन्ध� को पुनः �मानी बनाने का य� कर�। 5- औषिधयाँ। • बो�ुिलनम टॉिक्सन– कई बार हेिमपरेिसस के रोिगय� क� मासँ-पेिशय� म� तनाव, �खचाव और अकड़न भी आ जाती है। इसके उपचार म� बो�ुिलनम टॉिक्सन के इंजेक्शन ब�त फायदेमंद सािबत �ए है। आजकल तीन तरह के बो�ुिलनम टॉिक्सन उपल ह�। िजनके नाम टाइप-ए - बोटोक्स और िडस्पोटर् तथा ट-बी - मायोब्लॉक ह�। • रोबो�टक उपकरण – स्�ोक पुनवार्स म� आजकल क रोबो�टक उपकरण काम म� िलए जा रहे ह�। ये उपकरण रोगी को उनके लकवा-�स्त पैर या हाथ� क� खोई �ई शि� और अपंगता को पाने म� ब�त कारगर सािबत हो रहे ह�। इनक� मदद से रोिगय� को कसरत और अभ्यास करने म� ब�त स�िलयत होती है और काम करना जल्दी सीखते है। रोबोट एक अच्छे �ि कक क� तरह रोगी के हाथ या पैर� क� हरकत पर पैनी नजर रखते ह�, उसी िहसाब से कसरत करवाते ह�। य�द रोगी िगरने लगे तो रोबोट उसे पकड़ कर थाम लेते ह�। रोगी य�द अपने हाथ या पैर से कोई हरकत न कर पाये तो रोबोट उसे सहारा देता है और हरकत करने म� मदद करता है। कसरत क� बार-बार पुनरावृि� और अभ्यास करवाता है। आप संत
  • 7. 7 | P a g e कबीर का दोहा प�ढ़ये। संल� िच� म� रोगी लोकोमोट रोबोट पर कसरत कर रहा है। हाथ� क� कसरत के िलए इनमोशन-2, इनमोशन-3, एमािडयो, मायोमो ई-100 और पैर� के िलए लोकोमोट, एंकलबोट, पीके- 100, �रयोएम्बुलेटर आ�द रोबोट ब�त �चिलत हो रहे ह�। • काल्पिनकवास्तिवकत (Virtual Reality) - इस तकनीक म� कम्प्युट सॉफ्टवेयर के �ारा एक वास्तिवक लगने वाली ले�कन काल्पिनक दुिनयां सजाई जाती , िजसक� मदद से रोगी अपने हाथ और पैर� से कई तरह के काम करना सीखते ह�। इस तकनीक के अच्छे प�रणाम िमल रहे ह� और इसे रोबो�टक उपकरण� के साथ भी �योग �कया जा रहा है। • एक्युपंक्च– यह चीन क� ब�त पुरानी और सुरिक्षत उपचार प�ित है िजसम� त्वचा के खास ऊजार् क म� सुइयां घुसाई जाती ह�। स्�ोक के कई लक्षण� जैसे म-पेिशय� क� दुबर्लत, तनाव और ददर् म� एक्युपंक्चर से काफ� फायदा िमलता इससे लाभ भले धीरे-धीरे िमलता है परन्तु यह पूणर्तः सुरिक्षत उपचार ह • िव�ुत उ�ेजना (Electrical stimulation) – इस तकनीक म� कमजोर माँस-पेिशय� म� कम िवभव क� िव�ुत-धारा �वािहत क� जाती है िजससे उनका संकुचन होता है और वे अपनी खोई �ई शि� पुनः �ा� करती ह�। स्�ोक पुनवार्स म� दवाइया स्�ोक के बाद रोगी को शारी�रक वेदना, पीड़ा, ददर, आकषर्( Muscular spasm), �ाकुलता, �चता, अिन�ा और अवसाद (Depression) रहता है िजसके उपचार के िलए समुिचत दवाइयां दी जाती ह�। ददर् िनवारक और अवसादरोधी दवाइयां– सलेिक्टव सीरोटोिनन �रअपटेक इिन्हिबटस– इनम� िसटेलो�ाम, एिसटेलो�ाम, फ्लुओक्से�, परोक्से�ट, सट�िलन आ�द �मुख ह�। SSRIs मिस्तष्क म�मुख नाड़ीसंदेशवाहक� का संतुलन बनाये रखते ह�, िजससे अवसाद के लक्षण� म� सुधार आता है। अवसाद के अलावा ये वेद, पीड़ा और ददर् का भी िनवारण करते ह�। ये ि�च��य, चतुचर्��य अवसादरोधी और माओ इिन्हिबटसर् से ज्यादा सुरिक्षत माने जात SSRIs का असर एक से तीन स�ाह म� होने लगता ह� ले�कन रोगी को पूरा लाभ छः से आठ स�ाह म� होता है। इन्ह� कभी भी अचानक बंद नह� करना चािहए। SSRIs से कभी-कभी रोगी को ल�िगक-िवकार हो सकता है। िजसके िलए उसे िसलडेना�फल दी जा सकती है। बु�ोिपयोन से ल�िगक- िवकार कम होते ह�। इनके पाष्वर् �भाव िमत, भूख न लगना, दस्त लगन, अधैयर्त, िचड़िचड़ापन, सुस्त, िन�ा-िवकार, काम-दुबर्लत, ल�िगक-िवकार, िसरददर, च�र, आत्महत्या करने का िवचार आना आ�द होते ह� ि�च��य और चतुचर्��य अवसादरोध
  • 8. 8 | P a g e िजनम� एिम��प्टीली, डेिस�ेमीन, डोक्सेपी, इिम�ेिमन, नोर��प्टीली आ�द �मुख ह�। ये मिस्तष्क म� मन को �स� रखने और दद क� अनुभूित को कम करने वाले कुछ नाड़ीसंदेशवाहक� का स्तर बढ़ाते ह�। कम मा�ा म� ये अच्छे ददर् िनवारक है और ज्यादा मा�ा अवसादरोधी ह�। कम मा�ा म� ये िचरकारी ददर-िवकार� ( Long-term Pain Syndrome) म� ब�त असरकारी ह�। साथ म� ये मन म� उदासी, अिन�ा, ग्लाि, कुन्ठ, बेचैनी और �ाकुलता से भी राहत �दलाते ह�। इन्ह� राि� म� सोने के पहले �दया जाता है क्य��क इन्ह लेने के बाद सुस्ती आती है।SSRIs क� भांित इनका असर भी एक से तीन स�ाह म� होने लगता ह� ले�कन रोगी को पूरा लाभ छः से आठ स�ाह म� होता है। इन्ह� कभी भी अचानक बंद नह� करना चािहए। इनके पाष्वर् �भाव मुँह सीख, च�र, सुस्ती आन, िसरददर, वजन बढ़ना, कब्ज, िमतली, उलटी, �ासक�, ह�ठ, जीभ, चेहरे या गले म� सूजन, आत्महत्या करने का िवच, उ�ता, बैचेनी, दौरा पड़ना, �दयगित तेज होना आ�द ह�। अप्समाररोधी(Anticonvulsants) काबार्मापेजी, गाबापेिन्ट, ऑक्सकाब�जी, वेल�ोइक एिसड, ि�गाबािलन, टोिपरामेट आ�द दवाइयां �योग म� ली जाती ह�। ये संभवतः मिस्तष्क म� ददर् क� संवेदना� के �वाह को बािधत करती ह� इसिलए िचरकारी और नाड़ीजिनत -िवकार� म� ब�त �भावशाली ह�। इन्ह� भी कम मा�ा से शु� करके धीर-धीरे मा�ा बढ़ाई जाती है और अचानक बंद नह� �कया जाता है। इनके मुख्य पाष्वर् �भाव िसरद, वजन बढ़ना/कम होना, �िमत होना, भूख न लगना, त्वचा म� चक�, िमतली, उलटी, पेट ददर, पैर� म� सूजन आ�द ह�। िन�ाकारी दवाइयां (Sedatives) – स्�ोक के बाद रोगी को न�द न आना सामान्य घटना है। इसके िलए रोगी क िन�ाकारी या अवसादरोधी दवाइयां जैसे नाइ�ेजेपाम, मटार्जेपी, जोिल्पडो, जोिपक्लो आ�द दी जाती ह�। �शांतक दवाइयां (Tranquilizers) – स्�ोक के रोिगय� म� अधैयर्त, उत्सुकत, घबराहट, दुिनया भर िचन्त और तनाव रहना सामान्य बात ह, िजसके उपचार के िलए बेन्जोडायजेपीन्स जैसे डायजेप, लोराजेपाम, एल्�ाजोला, बुिस्परो , क्लोनाजेपा, ए�टजोलाम आ�द दी जाती ह�। िमथाइल फेिनडेट (Addwise 10-30 mg/day in div doses) रोगी के मन को �स� रखने और मनोदशा को सकारात्मक बनाये रखने के िलए �दया जाता है। मनोिवयोगी और मनोिवकाररोधी दवाइयाँ ( Neuroleptics are Antipsychotic Medicines) - स्�ोक म� य�द रोगी को उ�त, उ�ेजना और �ाकुलता हो तो हेलोपे�रडोल, �रसपे�रडोल आ�द िलखी जाती ह�। मसल-�रलेक्सेन्ट दवाईया- माँस-पेिशय� म� �खचाव, तनाव और अकड़न दूर करने के िलए डेन्�ोली, �टजािनडीन, बेक्लोफेन आ�द गुणकारी सािबत �ई ह�। थ�ारोधी दवाईयाँ (Anticoagulants) – स्�ोक के बाद पैर� क� िशरा� म� र� के थ�े न बने इसिलए िहपे�रन दी जाती है। लेख के अंत म� स्�ोक के रोिगय� को ये शेर भ�ट करता �ँ
  • 9. 9 | P a g e इन्सान मुसीबत में िहम्मत न अगर हार, आसाँ से वो आसां है, मुिश्कल से जो मुिश्कल ह