1. वे दिन कह ाँ से ल ऊाँ ?!
प्रण म / नमस्ते
कोयल की आव ज़ ईश्वर की िेन है जो सुननेव लों को मुग्ध कर िेती है, ब र-ब र सुनने की इच्छ जगती
है | फू लों क रंग, सौन्ियय, सुगंध आदि हमें अपनी ओर आकर्षयत करते हैं | ऊाँ चे-ऊाँ चे पह ड़ िुगयम होने
पर भी हम र ध्य न खींचते हैं | पन्ने-सी हररय ली हमें भ ती है | कु छ लोगों के बोलने क ढंग हमें अपने
वश में कर लेत है, ब र-ब र उनकी ब तें सुनने की च ह उभरती है | कु छ लोगों क व्यवह र इतन
श लीन होत है कक उनसे ब र-ब र ममलने क मन करत है | कु छ के मुाँह से ननकले शब्ि हमें सतपथ
दिख ते हैं | कु छ की अमभव्यक्तत हमें सही मशक्ष िेती है | कु छ क व त्सल्य हमें इतन भ व-र्वभोर कर
िेत है कक उनक अभ व अखरत है | कु छ इतने स्नेदहल होते हैं कक उनकी संगनत अच्छी लगती है |
उपरर मलखखत ब तें के वल भूममक ब ाँधने के मलए नहीं, मेरे दिल की गहर ई में छु पे अनुभव के प्रतीक हैं,
एक शब्ि भी कृ त्रिम नहीं है |
मैं आप लोगों को अपने स थ चौर लीस स ल पीछे ले ज रही हूाँ जबलपुर | ऊब को िूर रखकर मेरे
अनुभवों क मन से अनुभव कीक्जएग , मेरे संग जीवन पथ के र्पछड़े र स्ते के हमर ही बननएग |
जबलपुर (जह पइल पुरव – अरबी) अथ यत ् पह ड़ी ढल न | वैसे भी जबल म ने पह ड़, पुर म ने शहर | इस
सुन्िर शहर के पीछे एक और आख्य न है – ज ब ली ऋर्ष क व सस्थ न; होते-होते उसमें र्वक र आ गय
और बन गय वह ‘जबलपुर’
आप लोगों को लगत होग कक मैं तयों जबलपुर की यों त रीफ़ कर रही हूाँ | मैं वह ाँ िो वषय थी
स्न तकोत्तर छ ि बनकर मह कोशल कल मह र्वद्य लय की |
लगत होग कक इसमें कौन-स महत्व नछप है | कई लोग वह ाँ के पढ़े हुए हैं अब भी कई वह ाँ मशक्ष
प्र प्त करते होंगे | महत्वपूणय ब त तो यह है कक उस मह र्वद्य लय के प्र च यय थे श्री र मेश्वर प्रस िजी
‘शुतल’ क्जन्हें आधुननक दहन्िी स दहत्य क श के सप्तर्षययों में से र्वशेष स्थ न प्र प्त (है) थ |
मेरे र्पत जी मुझे भती कर ने स थ चले थे | मुगलसर य से जबलपुर पहुाँचते – पहुाँचते क फ़ी िेर लगी |
वह ाँ (आर्डयनन्स फै तटरी) आयुध क रख ने में क ययरत श्री गंग धरनजी के घर खमररय पहुाँचे – क फ़ी र त
हो चुकी थी | र स्ते भर र्पत जी मुझे अञ्चलजी की रचन ओं के ब रे में सुन ते आए |
2. (बन रस के मैसूर घ ट में बने मैसूर धमयश ल के चबूतरे पर बैठे मेरे र्पत जी तूल र मन थजी शम य से
संस्कृ त की मशक्ष प्र प्त करते हुए क शी नरेश के िरब री स मवेि पक्डडत श्री कृ ष्णमूनतयजी श्रौती | यही
चचि धमययुग में भी छप थ |)
3. (के रल मठ के मखण श स्िी तथ अरुण चल श स्िी वेि तथ संस्कृ त सीखते हुए िश यए गये हैं - ि
इल्लस्तट्रेट्ड़ वीकमल आफ इक्डडय - 1972)
श्री गंग धरजी और उनकी श्रीमतीजी ने हम री खूब ख नतरि री की | बन रस दहन्िू र्वश्वर्वद्य लय के
कन यटक संगीत र्वभ ग में उनके अनत ननकट के ररश्तेि र सुब्रह्मडयमजी गोट्टु व द्यम के मशक्षक थे | वे
और उनकी कन्य मेरे र्पत जी से दहन्िी सीखते थे | उन्होंने ही हमें गंग धरनजी क पत िेकर भेज थ |
िूसरे दिन उन्होंने हमें कॉलेज पहुाँच य , उनके घर से (खमररय से) मह मह र्वद्य लय क फ़ी िूर पड़त
थ | कु छ िेर तक हम लोग प्रतीक्ष कक्ष में बैठे थे | मुझे डर ममचश्रत आनन्ि क अनुभव हुआ कक इतने
प्रनतक्ष्ठत व्यक्तत र्वशेष से मैं ममलनेव ली हूाँ |
उन्होंने जब हमें अन्िर बुल य मेरे र्पत जी ने नमस्क र कर अपन पररचय दिय और आने क क रण
बत य | अञ्चलजी ने मुस्कु र कर प्रनत वन्िन ककय और बैठने के मलये कह | र्पत जी ने कह कक
अपनी बेटी को सौभ ग्य से उनकी र्वद्य चथयनी बनने क सुअवसर ममल है | कफर उनकी कु छ रचन ओं
क गूढ थय तथ लक्ष्य थय को सर ह | अञ्चलजी मुस्कु र नयुतत चेहरे से र्पत जी की समीक्ष सुनते रहे |
उन्होंने र्पत जी से यह कहकर आश्व सन दिय कक अब िो वषय तक आपकी कन्य बन रस की नहीं
जबलपुर की बनकर रहेगी | कफर र्वभ ग ध्यक्ष श्रीमती कमल जी जैन को बुलव कर हम र पररचय
कर कर उत्तरि नयत्व सौंप दिय | कमल गुरुजी हमें नेर्पयर ट उन ले गईं अपने घर | श्रीम न (न म य ि
नहीं) जैन वह ाँ के सुप्रमसद्ध वकील थे | गुरुजी क व्यवह र हम लोगों के प्रनत अपन पन क थ | वे मेरे
र्पत जी को “भैय जी” कहकर संबोचधत करने लगीं और मैं उन्हें ‘बुआजी’ |
मह कोशल मह र्वद्य लय के छ िों के मलए श यि तीन छ ि व स थे पर लड़ककयों के मलए छ ि व स नहीं
थ | इस क रण मुझे पचमढ़ी ले गईं जह ाँ र्वश्वर्वद्य लय थ | श्रीमती अवस्थी / पर शर से ममलकर मेर
र्वश्वर्वद्य लय के छ ि व स में रहने क प्रबंध ककय | र्पत जी ननक्श्चन्त हो बन रस लौट चले |
खमररय से अपन स म न लेकर कमल गुरुजी के स थ मैं छ ि व स पहुाँची | वह ाँ र्वश्वर्वद्य लय की
छ ि एाँ थीं कु छ मेरे कॉलेज की भी | मेरे स थ कु म री कल्य णी श ह थी जो र्वश्वर्वद्य लय में एम.ए कर
रही थी | उसकी सहप दठन थी कु म री संतोष ममश्र जो जबलपुर की ही थी| अतसर वह कल्य णी के स थ
छ ि व स आ ज ती और कल्य णी की तरह उसके स थ भी ननकटत पटने से हम सहेमलय ाँ बन गईं |
छ ि व स में के वल िो जून ही ख न ममलत थ | सुबह सबको खुि च य-प नी क प्रबंध करन थ |
हम रे आव स के पीछे ग्व मलन चुनकी ब ई क घर थ , वह हमें िूध िे ज ती थी | सप्त हभर के समय में
मैं सबसे दहलममल गई | ख ने की मेज़ पर ज ते ही एक दिन यूाँ ही कु छ लड़ककयों ने मुझे ग ने के मलए
कह , सोच होग कक मुझे ग न नहीं आत है और मेरी अच्छी मज़ क उड़ एाँ | पर मैंने ग न शुरू ककय
‘कोयमलय बोले अंबुआ की ड़ ल पर ‘ – सब िंग रह गईं (मैंने कु छ समय तक संगीत सीख थ और
नृत्य भी) | मेरी आव ज़ भी तब बहुत मीठी थी | कफर तय थ – अतसर मुझसे फरम तीं और मैं भी
ग ती | उनकी पसंि के कु छ गीत थे – ‘र ज की आएगी ब र त, कजर मोहब्बतव ल , खझलममल मसत रों
क आाँगन होग , छम-छम ब जे प यमलय , ओ..गंग मैय में जब तक यह प नी रहे ..’ इत्य दि- इत्य दि |
4. कमल गुरुजी को मैं कभी-कभी ग कर सुन ती, सुनकर वे बहुत खुश होती थीं| प ठक ब ई ख न बन ती
थीं बहुत स्व दिष्ट, पर मैं प्य ज – लहसून नहीं ख ती, ख ने में मुझे तकलीफ़ होती थी | चन्ि ब ई
ग इकव ड़ हम री िेखरेख के मलये ननयुतत थीं | हम लोग उनसे भी िोस्त न व्यवह र ही करती थीं |
बीच में ककसी रर्वव र को हम िस-पन्रह लड़ककय ाँ भेड़ घ ट िेखने गईं | नमयि जी ऊपर से नीचे क फी
गहर ई में उछलती-कू िती उतरती हैं, इस तरह कु छ िूर तक सफे ि ब िल छ य -स लगत है कक कु छ
दिख ई नहीं पड़त , उसक उचचत न मकरण ककय है धुआाँध र | िेखने ल यक दृश्य है, क्ज़न्िगी में हरेक
को एक ब र वह ाँ ज कर िेखन आवश्यक है | कफर नीचे थोड़ी िूर-तक उछल-कू ि मच ते हुए म ाँ नमयि
हमें भयभीत कर िेती है, उसके ब ि श न्त बह व लेकर चलती है | िोनों ओर ऊाँ चे-ऊाँ चे चमकि र (श यि
संगमरमर) गुल बी, सफे ि पत्थरों, चट्ट नोंव ले पह ड़ खड़े हैं | आगे चलनेपर (नौक से) लखनऊ जैस वह ाँ
भी भुलभुलैय है | पत ही नहीं चलत है कक ककस ओर से नमयि जी बहती है, ऐस भ्रम उत्पन्न होत है
कक तीनों ओर से ध र क प्रव ह है | बड़ मनमोहक दृश्य है |
प्रथम वषय दिव ली की छु दट्टयों में हम सब (अचधकतर लड़ककय ाँ) अपने घर गईं, मैं भी बन रस अपने घर |
कल्य णी मुझे लेकर छ ि कल्य ण अचधष्ठ त श्रीम न अजेय चौह न के प स गई रेलवे-कन्सेशन फ मय के
मलए | मुझे पत चल कक वे सुप्रमसद्ध कवनयिी सुभर कु म रीजी के सुपुि हैं | उनके घर भी मुझे ले गई |
घर के आगे के आाँगन में सुभर जी की कं धों तक की मूनतय आगन्तुकों की अगव नी करती है | उनक
5. जन्म उत्तर प्रिेश के इल ह ब ि के ननह लपुर में सन् 1904 को हुआ तथ र्वव ह खडड़व में | उसके ब ि
वे जबलपुर में रहने लगीं | ग ड़ी की िुघयटन में उनक स्वगयव स सन् 1948 को हुआ थ | दहन्िी जगत
के मलए उनक अभ व िुभ यग्य की ब त है | उनके एक और पुि हैं अशोक चौह न | िोनों को घमडड़ क
न म तक श यि पत नहीं, उनक व्यवह र अत्यंत सरल थ | मैंने मन-ही-मन कल्य णी को धन्यव ि
ककय |
दिव ली की छु दट्टयों के ब ि मेरी म त जी मुझे जबलपुर छोड़ने गईं | िो दिन वहीं रहीं | संतोष हम लोगों
को लेकर अपने घर गई, कल्य णी भी स थ थी | उसके घर के लोगों ने इस तरह हम रे स थ व्यवह र
ककय कक मुझे आज तक भुल ए नहीं भूलत | भ रतीय संस्क र के अनुस र म त जी के प ाँव धुलव कर
उन्हें आसन (पीढ़ ) पर त्रबठ कर चौकी पर ख न परोस | श यि मसंघ ड़े की पूररय ाँ, स व ाँ क खीर, पत
नहीं ककतने तरह की चीज़े थीं | त्रबजली के पंखे के होने के ब वजूि ब जू में बैठकर संतोष की म त जी
ह थ क पंख झलती रहीं | सन्ध्य तक हम लोग वहीं रहीं, कफर एक ब र च य-प नी, सच में ऐसी
मेहम नि री मैंने श यि ही कहीं िेखी |
छ ि व स की कई लड़ककय ाँ म त जी से ममलीं | उनकी ब तें सबको पसन्ि आईं | मना करने पर भी
कइयों ने आग्रहपूवयक उन्हें घर की ममठ इय ाँ खखल ईं | वे जब बन रस के मलए ख न हुईं तब कई स्टेशन
तक उन्हें छोड़ने चलीं, सबने उनसे मेरी खूब त रीफ़ की |
बड़े दिन की छु दट्टयों में कमल गुरुजी अपने बेटों और बेटी को लेकर अपनी ग ड़ी से मेरे स थ बन रस
चलीं | हम रे घर क ख न उन्हें खूब भ य | उन्हें लेकर र्पत जी स रन थ गए | स रन थ क अवशेष िेख
गुरुजी बहुत प्रभ र्वत हुईं | गंग जी में न व से चलते हुए बन रस के स रे घ टों के िशयन ककए | र म नगर
(क शी नरेश की कोठी) चलकर वह ाँ क संग्रह लय िेख | उसके ब ि मुझे स थ लेकर जबलपुर लौटीं |
नव (अंग्रेज़ी) वषय के कई क ययक्रमों में उन्हें भ ग लेने क ननमंिण थ , वे मुझे भी स थ ले गईं और
कइयों से मेर पररचय कर य | उन्होंने भी कई ब र मुझे अपने ह थ क ख न खखल य थ | छ ि व स
बन्ि होने के क रण उन्होंने मुझे अपने घर अपने स थ रख |
छु दट्टयों के ब ि सब लड़ककय ाँ लौट आईं | मैंने गुरुजी से कह कक उन्हें मह र्वद्य लय से क फ़ी िूर
चलकर मुझे ल न पड़त है, इसमलए कहीं िूसरी जगह मेरे रहने क प्रबंध हो ज ए तो सुर्वध होगी |
उन्हें नेर्पयर ट उन और मह र्वद्य लय के र स्ते में एक मदहल वसनत गृह ममल | वह ाँ ज कर व ड़यन
श्रीमती (प्रभ वती) ओक से ममलीं | उन्हें जाँच तो उन्होंने वह ाँ मेरी रहने की व्यवस्थ की | श्रीमती ओक
के ब रे में यह ाँ मलखन बहुत ज़रूरी है | उनकी िो बेदटय ाँ थीं, बड़ी मोहन तथ छोटी चचि जो वल्ड़य पीस
आगयन इज़ेशन की सिस्य थीं उस समय अमेररक में थीं | वे मुझे अपनी भ नजी म नने लगीं | उन्हें
आध रत ल में कृ र्ष र्वश्वर्वद्य लय की ओर से घर ममल थ |
उनके पनतिेव वहीं रहते, कभी-कभी जबलपुर के ननव स (घर) आते | एक ब र की ब त है, श्रीमती ओक
ब हर गई हुई थीं, हम प ाँच लड़ककय ाँ आव स में थीं | श्रीम न ओक नौसेन के अवक श-प्र प्त ओहिेि र थे
| मैंने उन्हें त्रबठ य और प नी र्पल कर च य न श्ते की तैय री की | उन्होंने मेरे ब रे में पूछ , इतने में
6. श्रीमती ओक आ गईं | श्रीम न ओक ने मेरी क फी त रीफ की | वैसे तो कॉलेज में भी मेरे स्वभ व-
व्यवह र की खूब प्रशंस होती थी | श्रीमती ओक ने मेरी प्रशंस करते हुए मेरे र्पत जी को पि भी मलख
भेज थ | कॉलेज के सब गुरुजन यह कहकर मुझे सर हते कक म त -र्पत की इकलौती पुिी होने पर भी
अत्यंत नम्र स्वभ वव ली, आज्ञ प लन करनेव ली, बड़ों के प्रनत आिर और श्रद्ध क व्यवह र करनेव ली,
ममलनस र, अध्ययनशील लड़की है |
उस स ल व र्षयकोत्सव के अवसर पर मुख्य अनतचथ को म ल पहन कर उनक स्व गत करने क
महत्वपूणय क म मुझे सौंप गय | कमल गुरुजी ने कह कक इसे नृत्य भी म लूम है | अत: नृत्य करते
हुए मंच से उतरकर अनतचथ को म ल पहन ए तो अच्छ रहेग | प्र च ययजी को भी यह ब त अच्छी लगी |
पर कई स ल पहले मैंने नृत्य सीख थ | मुझे ड़र लग कक पत नहीं कै से अपन क्ज़म्म ननभ प ऊाँ गी |
ज़र अभ्य स भी करने लगी |
आखखर व र्षयकोत्सव क दिन आ ही गय | मैं मंच पर गई | मंच के नीचे पहली पंक्तत में बीचों बीच
अनतचथ के स थ प्र च ययजी बैठे अनतचथ की ओर आाँखों से इश र कर रहे थे ! उधर तबले की आव ज़, मेरे
ह थ में म ल , प ाँव में कम्पन, कफर भी बोल के अनुस र प ाँव चथरकने लगे | श यि मैहर मह र ज के पुि
ने तबल -व िन ककय | प ाँच ममनट के नृत्य के ब ि ह थ जोड़ सबक वन्िन ककय , कफर धीमी गनत से
सीदढय ाँ उतरकर प्र च यय गुरुजी के इश रे के अनुस र उन्हें म ल पहन कर झुककर प्रण म ककय , उन्होंने
मेरे म थे पर ह थ धरकर आशीव यि ककए | कफर अचग्रम पंक्तत में र्वर जे हुए सबको मसर झुक कर
सुस्व गत करते हुए प्रण म ककय | त मलयों की आव ज़ से सब आगंतुकों ने अपन हषय व्यतत ककय |
मुझे लग कक मेरे पर उग आए और मैं आसम न में उड़ रही हूाँ | कफर एक के ब ि एक स र क ययक्रम
खूबी से सम्पन्न हुआ | श्रीमती ओक ने एक एक ंकी न दटक हम लोगों (प ाँच लड़ककयों) से करव ईं |
उसमें मैंने सरि रनी क प ि (धर) बहुत अच्छी तरह ननभ य ! मेर अमभनय सबको अच्छ लग | यह
मेरे जीवन की अत्यंत महत्वपूणय-अर्वस्मरणीय घटन है |
िूसरे स ल िशहर -दिव ली की छु दट्टयों में मुझे कल्य णी अपने स थ वध य ले गई | हम रे स थ सरल र ठी
भी थी जो र्वश्वर्वद्य लय के प्रो.ड .र ठी की पुिी थी | उनके ब रे में कहन बहुत ज़रूरी है | वे र्वल यत
होकर आए थे य वह ाँ अध्ययन कर लौटे थे, पर वे तथ उनकी श्रीमतीजी िोनों इतने व त्सल्यमय
व्यवह र करते थे कक मैं कभी उन्हें भूल नहीं सकती | वध य के प स के ग ाँव में बेटे अपने खेतों को
साँभ लते वहीं रहते थे, बीच-बीच में फु रसत से जबलपुर आते थे |
जबलपुर से वध य ज ते र स्ते में न गपुर पड़त है | र स्ते में िोनों ओर हररय ली ही हररय ली दृक्ष्टगोचर
हुई | मेरे ख्य ल से सेलू न मक ग ाँव संतरों तथ के लों के ब ग- बगीचों से भर पड़ थ | यह भी सुन
कक कोई भी बगीचों में ज कर फल तोड़कर ख सकत है, पर ब हर ल नहीं सकत |
वध य में प्र त:क ल ‘नीर ’ (खजूरहटी – खजूर की ज नत के छोटे-छोटे पीले गोल फ़लों क रस) ममलत है
जो बहुत ही स्व दिष्ट होत है |
7. कल्य णी क घर वध य के प्रत प चौक में थ | उसके र्पत जी श्रीम न मुन्न ल लजी श ह ग ाँधीव िी थे |
उसकी म त जी कई स ल ग ाँधीजी के स थ ही रहती थीं | च च जी सि घर के आगे के कमरे में चख य,
कु छ पुस्तकों के स थ ख िी वस्ि पहने चौकी पर बैठे रहते थे | ख न तो अत्यन्त स क्त्वक (उनके
स्वभ व-स ), त्रबन नमक-ममचय-तेल ख ते | कल्य णी क एक छोट भ ई थ बड़ ही प्य र | च च जी ने
मेर प्रण म स्वीक र और आशीव यि ककये | वह ाँ ज न मेरे मलए अत्यन्त भ ग्य की ब त थी | मुन्न ल ल
च च जी हम सबको लेकर मगनव ड़ी गए | वह ाँ के ख स लोगों से मेर पररचय कर य | सरल सुबह
अपने ग ाँव से अपने बड़े भ ई के स थ आ ज ती और श म को य तो हम रे स थ रह ज ती य कभी घर
लौट ज ती |
वध य में (महर ष्ट्र में) दिव ली क त्यौह र प ाँच दिन तक मन य ज त है | स रे घर के ले के पेड़, तोरण, रंगोली से
सजे होते | िेखने में बहुत अच्छ लगत थ | वैसे तो च च जी वध य के कई प्रनतक्ष्ठत व्यक्ततयों के घर मुझे ले गए
| हर घर में ग ाँधीजी की तस्वीर टाँगी िेखी | वह ाँ के अचधकतर लोगों ने स्वतंित संग्र म में ककसी-न-ककसी रूप में
भ ग मलय थ | उन सबसे ममलकर मैं स्वयं को धन्य म नने लगी |
वे हमें सेव ग्र म के आश्रम ले गये | ग ाँधीजी क अंनतम ननव स स्थ न दिख य | वह ाँ के लोगों से भी ममलव य |
(From Left: पौनार में - श्रीमती मुन्न ल लजी, कल्य णी क छोट भ ई, श न्त शम य और कल्य णी श ह)
(From Left: सेव ग्र म आश्रम में श्री मुन्न ल ल च च जी के स थ श न्त शम य)
उसके ब ि संत र्वनोब जीभ वे के पौन र आश्रम ले गये | हम लोग र्वनोब जी के िशयन कर, उनकी प्र थयन सभ में
भ ग लेकर वहीं एक दिन ठहरे | वह ाँ क भोजन भी अत्यन्त स क्त्वक --- त्रबन नमक-ममचय तेल के उबली सक्ब्जय ाँ
ह थ की बनी मोटी रोदटय ाँ आदि | उनके आश्रम में कई र्वल यती भी रहते थे | र्वनोब जी तस्वीर नहीं खखंचव ते थे
| च च जी के अनुरोध पर उनके अनुज कनोब जी भ वे ने हम लोगों के स थ तस्वीर खखंचव ई | संत र्वनोब जी सुबह
चखे पर सूत क तते हुए भ षण िेते, बकरी क िूध और मूाँगफली – यही उनक सुबह क भोजन थ | उन्हें प्रण म
अर्पयत कर उनके आशीव यि मलए |
8. कफर हम लोग बोरधरण गए | ग ाँधीजी की अक्स्थयों पर बने खंभे के िशयन ककये |
(From Left – Sarala’s brother, kalyani’s younger brother, Sarala, Shanta & Kalyani)
ऐस अवसर, ऐसे गडय-म न्य लोगों क स थ, र्वरले ही व्यक्ततयों को ममलत है – उनमें से मैं एक, है न भ ग्य की
ब त ? – मुझे तो र्वश्व स ही नहीं होत थ | बीस – पच्चीस दिन कै से गुज़रे – पत ही न चल |
(मुन्न ल ल च च जी ग ाँधीजी के स थ)
वह ाँ से लौटन ही थ | छु दट्टय ाँ खत्म हो रही थीं | कल्य णी और सरल
के स थ मैं जबलपुर लौटी | कमल गुरुजी के स थ कॉलेज ज न ,
अध्ययन, श्रीमती ओक क स्नेदहल व्यवह र – सब पूवयवत् चलत रह |
होली के अवसर पर छ ि र्पचक ररय ाँ लेकर तंग करने आएाँगे | इसमलए
श्रीमती ओक मुझे आध रत ल अपने घर ले गईं | आजू – ब जू के लोग
ममलने आएाँगे, इस क रण उन्होंने िेखते-िेखते नमकीन बन य और
उनके यह ाँ की चने की ि ल की पूरण पोळी (पोली) क स्व ि और कहीं मैंने चख ही नहीं | तीन दिन मैं वह ाँ रही,
तरह-तरह के पकव न बन कर उन्होंने रंगीन होली को सुस्व ि होली में बिल दिय | उनके यह ाँ बीटी ब ई घर क
क म खूब साँभ लती थी | श्रीमती ओक की सेव मन से, श्रद्ध से करती थी | उनके घर िो कु त्ते (बुटुरू और – न म
य ि नहीं) पलते थे | एक कु नतय ने प्य रे-प्य रे च र बच्चे दिए जो चुदहय के आक र के थे |
9. वह ाँ से हम लोग जबलपुर लौट आईं | आने के ब ि संतोष, कल्य णी और सरल से अतसर ममल करती |
एक दिन कल्य णी मुझे लेकर स दठय कु आाँ गईं | ज ते समय उसने कह कक एक मह न व्यक्तत के िशयन कर एगी
| वे मह न व्यक्तत थे श्रीम न ब्यौहर र जेन्र मसंह जी | श्रीम न ब्यौहर र जेन्र मसंहजी मह र नी िुग यवती के वंशज
तथ ब्यौहर रघुवीर मसंहजी के सुपुि थे | अपनी प्र चीन भ रतीय परंपर और संस्क र को जीर्वत रखने, उन्हें आगे
की पीढ़ी को सौंपने क ि नयत्व उन्होंने खूब ननभ य | उनक यह “व्यवह र” समय के स थ चलते-चलते ‘ब्यौहर’ मे
पररवनतयत हो गय | उनक बहुत बड़ महल िेख मैं चककत रह गई |
उस महल में मह त्म ग ाँधीजी, जव हरल ल नेहरूजी, ड . र जेंन्र प्रस िजी (स्वतंि भ रत के प्रथम र ष्ट्रपनत), संत
र्वनोब भ वेजी, र ष्ट्रकर्व मैचथलीशरण गुप्तजी, सुप्रमसद्ध कर्व म खनल ल चतुवेिीजी आदि मह नुभ व अनतचथ
बनकर रहे | सन् 1933 क क ाँग्रेस अचधवेशन भी उसी महल मे सम्पन्न हुआ थ | ऐसी मदहम मय ( वह तो
स ध रण-स र्वशेषण है, इससे बदढ़य अब मुझे सूझ नहीं रह है ) कोठी में पूरे िो दिन कल्य णी के स थ रहने क
भ ग्य-सुयोग प्र प्त हुआ | अपने भग्य को मैंने खूब सर ह | श्रीम न ब्यौहरजी ने बहुत सरलत से हम लोगों से
व त यल प ककय | कल्य णी के पररव र से उनक पूवय पररचय थ | मेरे ब रे में उन्होंने पूछ , र्ववरण प्र प्त करने के
ब ि कह “र्वद्व न र्पत की एक म ि पुिी हो, उनसे पूरी तरह संस्क र-र्वद्वत्त प्र प्त कर उनक न म रोशन करो”
| मैंने मसर झुक य और कह , “जी भरपूर प्रयत्न करूाँ गी”|
रसोइय को बुल कर कह कक हम लोगों के मलए मन-पसंि भोजन पक कर खखल ए | उस महल में कई आाँगन और
उतने ही रसोईघर थे | सब सफ़े ि पुतनी ममट्टी से मलपे-पुते | घूम-कफर कर िेखते-िेखते मेरे प ाँव िुखने लगे|
कल्य णी को धन्यव ि ककय | हम वह ाँ से चलने लगीं तो श्रीम न ब्यौहरजी आगे के प्र ाँगण के चबूतरे पर बैठे हुए
थे, उन्होंने पूछ , “कोई कष्ट तो नहीं हुआ | जब मन करे आ ज न बेटे”| इतने बड़े व्यक्तत और उनमें इतनी
स िगी ! वे दिन मेरे म नमसक पटल पर अब भी आज के -से अंककत हैं | एक ब र मुझे म.प्र. के मुख्य मंिीजी
श्रीमन् न र यण से भी कल्य णी ने ममलव य थ | उसके क रण ही मुझे यह सुनहर -सुअवसर प्र प्त हुआ थ |
जबलपुर में खरीिि री के मलए सहेमलयों के संग छोट फु ह र और बड़ फु ह र ज न , पंचमढ़ी पह र्ड़यों के बीच
सैननकों क क़व यि िेखन , पह ड़ों के पीछे से सूरज क उिय, कफर पह ड़ों के पीछे सूरज क अस्त, वह ाँ के लोगों
क प्य र भर व्यवह र, सह छ ि ओं क स्नेह, गुरुजनों क म गय-िशयन --- इन सबसे त्रबछु ड़कर अंनतमवषय की परीक्ष
के ब ि आाँखों से आाँसू भरकर, आाँसू भरी आाँखों से िेखते हुए मैं बन रस लौट आई |
सम वतयन – सम रोह (उप चधि न सम रोह) में भी सक्म्ममलत न हो प यी | कमल गुरुजी ने मेर उप चधपि ड क
द्व र भेज थ | उन्होंने पि मलखकर बत य थ कक मेरी ननबंधव ली उत्तर पुक्स्तक ( र्वषय की गहर ई और
सुन्रर अक्षरों के मलए ) दहतक ररणी मह र्वद्य लय के सूचन -पट (नोदटस बोड़य) पर टाँगी रही | वह ाँ के पूरणचन्ि
श्रीव स्तव गुरुजी ने मेरे ननबंध की खूब प्रशंस की |
मुझे पी.एच.ड़ी करने के मलए छ िवृक्त्त ममल गई तो कमल गुरुजी ने मुझे जबलपुर व पस बुल मलय | पूरण चन्र
श्रीव स्तव गुरुजी के म गयिशयन में शोध क यय करने क प्रबंध ककय गय | गुरुजी ने मेरे सुन्िर अक्षरों और ननबंध
10. को खूब सर ह | मैं कफर श्रीमती ओक के मदहल वसनत गृह में रहने लगी | पर पररक्स्थनत कु छ ऐसी बनी कक मुझे
शोध क यय अधूर छोड़ बन रस आन पड़ | मेरी न नीजी बहुत बीम र थीं | उन्होंने ही मुझे शैश वस्थ से प ल थ |
मैं उनके प स ही रहती, पर तय फ़ यि ! वे हमेश के मलए हमें छोड़कर चली गईं | मेर दिल इस तरह उजड़ गय
कक पी.एच.ड़ी. क यय में मेर मन न लग |
हम लोग हर मंगलव र को बड़े सवेरे म ाँ िुग यजी के िशयन करते हुए संकट मोचन हनुम नजी के मंदिर ज तीं |
िुग यकु डड़ में मैं उस सुन्िर “वसुन्धर ” (घर क न म) को िेखते हुए ज ती | जबलपुर ज ने पर मुझे ज्ञ त हुआ कक
वह श्रीम न प डड़ेजी क गृह है जो जबलपुर र्वश्वर्वद्य लय के उप कु लपनत थे | र्पत जी क उनसे पररचय थ | वे
छु दट्टयों में ममलने ही व ले थे कक अच नक उनक स्वगयव स हो गय | र्पत जी को अत्यन्त िु:ख हुआ, उन्होंने व्यथ
जत ते हुए कह “ अपने सुयोग्य पुि को वसुन्धर ने अपनी गोि में नछप मलय | कब तक वह अपने प्य रे पुि से
त्रबछु ड़ी रहेगी | हमें उन्हें खोने क िु:ख है तो उसे उन्हें प ने क सुख |”
खैर, आज भी जबलपुर के उन िो वषों की स्मृनत खूब अच्छी लगती --- लगत है कक ककसी अद्भुत स्वगय में थी |
उन सब पूज्य गुरुजनों, बड़ों को, उनके दिए व त्सल्य भरे म गय-िशयन तथ उपिेशों के प्रनत उनके चरणों में मन-ही-
मन श्रद्ध -सुमन अर्पयत करती हूाँ | हमउम्र सहेमलयों तथ पररचचतों को दिल की गहर ई से नमस्क र समर्पयत करती
हूाँ | आज भी उनमें से कोई मुझसे ममले तो मेरे मन-स गर में आनन्ि की लहरें उमड़ पड़ेंगी | वे दिन कह ाँ से ल ऊाँ
जो अत्यन्त सुन्िर, सुन्हरे, हषय-सने थे ?!!
उन स री पुडय समलल ओं को ब र-ब र प्रण म समर्पयत करती हूाँ क्जनके ककन रे बसे स्थ नों में मैंने मशक्ष प्र प्त की (
म त सुख निी – पुर न उत्तर आक यड़ क्जल , पूज्य िेवी म त गंग जी – बन रस, चोरल निी – बड़व ह म.प्र., म ाँ
नमयि जी म.प्र.,), क्जन्होंने मुझमें संस्क र और सभ्यत रूपी अनमोल रत्न भरे, सत्संगनत क अप र भडड़ र प्र प्त
कर य |