1. भारतन दन ववेकान द
भारत क बेजोड़ भ यता उसक आ याि मक एवं सां कृ तक वरासत को आभार है ।
उ हं क
सबल नींव ने भारत क अि त व को संजोये रखा है , उस पर हु ए आ मण और परतं ता क बल
े
े
हार क आगे उसे नामशेष होने से बचाए रखा है ।
े
वैभव से वलास क ओर लु ढ़कने क भू ल
भारतीय शासक ने भले ह क और भु गती हो, पर और क रा
े
का पाप भरतीय सं कार म नह ं है ।
स य, अ हंसा,
क गौरव-गथाएँ दमन और शोषण क वष-च
े
परतं
ेम को आहत करने और ललकारने
ेम, क णा, शां त, स ावना, शौय और धैय
क बीच भी पनपती रह ं ।
े
भारत दो मू लभू त चु नौ तय से लड़ रहा था – आ या म से स
दायवाद, जा तवाद और ि
य
क धम क नाम पर अवहे लना क ओर भटक धम को अपनी राह पर पु न: लाने क आंत रक चुनौती
े
े
और परतं ता क भीषण लपट से शो षत-पी ड़त आहत आ मगौरव को जगाने क बा य चु नौती ।
पि चम क सा ा यवाद ने जहाँ अम रक महा वीप क मू ल नवासी रे ड इं डयन ,
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नवासी माओ रय और ऑ
दया, वहाँ अ
यु ज़ीलड क मू ल
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े लया क मू ल नवा सय को गु मनामी और अवन त क ओर धकल
े
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क महा वीप क
जा तय को गु लामी क मृ त ाय जीवन म झ क दया । इसी
े
सा ा यवाद क काल छाया भारत पर भी पड़ी और उसक अि धयार से झू झते भारत क संत त मन
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को “ऊठो, जागो !” क एक
माता क महान सपू त
े
कोलकाता क
े
चंड गजना ने नई आ म-चेतना से भर दया ।
वामी ववेकान द क !
ी व वनाथ द त और भु वने वर दे वी क चरं जीवी नरे
े
रामकृ ण परमहं स क प श य क
े
े
हु ए ।
प म संयास
हण करक
े
नाथ द त द
ेरणा
बु
इसी गु ण से
हण करते ह – राम, कृ ण, बु
का
स
श त होता है, उसक
का शत हमारे अवतार और वभू तय क जीवन से हम
े
.... ।
ववेक से र हत
ेम मोह बन जाता है ,
प ले लेती है और अ धकार-सू झ कत य-शू य हो कर हाहाकार मचाती है ।
मन, जीवन एवं समाज म अशां त और वनाश फलता है । ऐसे अथ-पू ण,
ै
करने वाले
ी
म छपा है – “ ववेकन द” !
न य-अ न य, सह -गलत क ववेक क सहारे ह तो मनव-जीवन का माग
े
े
होती है !
णे वर क
े
वामी ववेकान द क नाम से
े
मानव-जीवन क सम त दु वधाओं का अंत उनक नाम-मा
े
साथकता स
यह गजना थी भारत
ा वनाशक
प रणाम व प
ेरणादायी नाम को धारण
वामी ववेकान द ने 39 वष क अपनी अ प आयु यावधी म अपने तप:पू त वचार-वाणी-
यवहार से ऐसी द य ऊजा
वा हत क
क आज भी वे व व-भर म लाख लोग क लए
े
ेरणा- ोत
ह, पथ-दशक ह ।
अपने गु दे व
ी रामकृ ण परमहंस क आ ानु सार
म अपने जीवन को सम पत कया ।
क
थापना क ।
वामीजी ने जीव-मा
म बसे नारायण क सेवा
इसी उ े य को पू रा करने क लए उ ह ने “रामकृ ण मशन”
े
भारत-भर म प र मण करक उ ह ने समकाल न भारत क प रि थ त का
े
अ ययन करक भारतीय जनमानस म व भ न
े
तर पर बसी अ छाइय और
समझा और उसक सम याओं क सह समाधान का माग
े
श त कया ।
ु टय को जाना-
स ांत / आदश और उन
1
2. पर आधा रत
यव था क
े
त गलत समझ और उसक फल व प हु ए दोष
े
-यु त
यांवयन से
उ प न सम याओं म ब हमु खी मानस अ सर स ांत / आदश और यव थाओं का दोष दे खता है ।
धम और पर पराओं स ब धी सम याओं म अ धकतर यह होता है ।
कालांतर म स ांत / आदश
म न हत भाव व लन हो जाता है और जड़ बा याचार का यापक, खोखला
बनाता रहता है ।
व प समाज को दु बल
बाल- ववाह, स त- था, म हलाओं / (तथाक थत) ‘ न न’ वग क लोग को श ण
े
से वं चत रखना, म हलाओं का शोषण, अ पृ यता, जा तवाद वगेरे ऐसे ह सामािजक दोष थे और ह
।
समाज म या त इस
तक पहु ँचाने क लए
े
कार क दू षण क उ मू लन और धम एवं पर पराओं क सह समझ लोग
े
े
वामीजी ने न कवल जीवन
े
-पयत
“रामकृ ण मशन” जैसे सं थान क
यास कए, बि क “रामकृ ण मठ” और
थपना कर क यह काय अ वरत चलता रहे ऐसा आयोजन भी
े
उ ह ने कया ।
भारत से बाहर भारत एवं भारतीय सं कृ त और ह दू धम क बारे म सह, सकारा मक समझ फलाने
े
ै
का काय भी
खर
वामीजी ने कया । उनक वाणी का
ा, अ वतीय
भाव अ ु त था ! और
मरण-शि त, एका ता और क णा-सभर
एक उ च कोट क संगीतकार और गायक भी थे वे !
े
उ तम हो, यह
य न हो ? कशा
ु
बु ,
दय स प न होने क साथ-साथ
े
ऐसे गु ण क धनी यि त व क अ भ यि त
े
वाभा वक ह है । शकागो व वधम प रषद (11 सत बर, 1893) म उनका
वचन
ऐ तहा सक एवं अ व मरणीय बन गया । ह दू धम क मौ लकता – स ह णु ता और सव यापकता को
वहाँ उ ह ने उजागर
कया । भारतीय सनातन (आ याि मक)
वचारधारा क अक-समान वैि वक
े
स दभ क आधार पर सव-धम ऐ य / समंवय और व व- ेम का स दे श उ ह ने दया । अम रका
े
तथा यू रोप म उनक अनेक
े
मे लाउड, भ गनी
शंसक, अनु यायी और श य बन गए । उनम से भ गनी नवे दता, मस
ट न, से वयर द पि त, आ द श य ने
वामीजी क काय को अपना जीवन
े
सम पत कया ।
धम क उ चत समझ को
जा तवाद और ि
ि
वमीजी श ण का आधार मानते थे ।
भारत क मू लभू त सम याओं –
य क अवहेलना – क नवारण क लए यो य श ण को वे अ नवाय मानते थे ।
े
े
य क “ि थ त सु धारने” और “पु न थान” क वषय म उनका मत मौ लक होने क साथ-साथ
े
े
एकदम तक एवं स वेदना संगत था – ि
नणय
वयं लेने क
य को सह
वतं ता द जानी चा हए ।
श ण दे कर उ ह अपने जीवन स ब धी
उनक ओर से उनक जीवन क नणय लेकर
े
े
उनक अि मता का तर कार करने क भू ल से उ प न सा
त सम याओं को वे इस
कार नमू ल
करना चाहते थे ।
एक स यासी क प रचय समान उनक आष- ि ट और जीव-मा
े
वाणी- यवहार म
क
े
त उनक क णा उनक वचारे
त ण छलकती थी ऐसा उनक वचार - या यान को पढ़कर और उनक वषय म
े
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लखे गए सा ह य को पढ़कर सु प ट हो जाता है ।
भारत क पावन भू म पर अंक रत हो फल ु
ू
फल आ या म पर परा, उसक धम- भा भारत क ओर से व व को सवा धक बहु मू य
दान होगा
2
3. ऐसा उ ह व वास था ।
सवा धक
और भारत क इसी पु य भू म पर मानव-जीवन क दा ण दु दशा उ ह
य थत करती थी ।
यह वेदना छलकती थी । उनक
वामीजी क अपू व रा
-भि त म भारत क
े
श या भ गनी नवे दता कहती थीं क
त अहोभाव क साथ
े
वामीजी क मु ख से “भारत”
े
श द का उ चारण इतना भावभरा होता था क सु ननेवाला अ भभू त हो जाता था ।
श या मस मेकलाउड ने एक बार उनसे पू छा, “ वामीजी, हम आपक लए
े
मला, “भारत से
तो
ेम करो ....”
ववेकाननद ( वचार
क ववर रवी
उनक एक और
या कर ?” तु रंत उ तर
नाथ ठाक र ने कहा था, “य द भारत को जानना हो,
ु
/ सा ह य) का अ ययन करो ....” 12 जनवर , 1921 क
े
ववेकान द क ज मो सव म भाग लेने बेलू र मठ म पधारे रा
े
दन
वामी
पता महा मा गा धी ने कहा था,
“ वामी ववेकान द क पु तक पढ़कर मेर रा -भि त म हज़ार गु ना वृ ी हो गई है ....” ।
रोमा रोलाँ ने
वामी ववेकान द को शि त / ऊजा का जीवंत
वराजमान नारायण का वे आ वान करते थे ।
मौ लक स य उ घो षत करक उ ह ने हर
े
मानव मा
मानव मा
म
वयं पर व वास न करना नाि तकता है , यह
कार क दु बलता–द नता से मु त होने क राह दखाई ।
म न हत एक ह ईश त व क
वेदांत को उ ह ने जीवन म उतारा था ।
द यता क वैदां तक स य को उ ह ने पु नजागृ त कया ।
े
वामीजी क भारतीयता म वैि वकता समाई थी, िजसक
े
आगे उनक समय का जन-मन नतम तक हो गया था ।
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ने
व प कहा था ।
व व भर म उनक समय क हर महापु ष
े
े
ी रामकृ ण परमहं स स हत उनक दै द यमान आभा का गु णगान कया ।
वामीजी ने भारत क गौरव को ऐसी ऊचाइय को सर करते दशन कया था िजसक आगे उसक
े
ँ
े
अतीत क भ यता सामा य-सी लगने लगे ।
क लए
े
क नाम पर आंकड़ क खेल म झु लसे भारत
े
े
वामीजी क 150वीं ज म-जयं त पर आइए चं तन कर – सामािजक वषमता दू र करने क
े
भाव क लाश को ढोती आर ण- यव था, र
हमार
लोकतं
/ नकलखोर से
श ण- यव था को कसे उबार और इसम हम
ै
प रवार-जीवन, म हलाओं, सफलता,
या योगदान दे सकते ह ?
वतं ता और पार प रकता क
े
वामी ववेकान द क पु य- मृ त को व दन करक, आइए
े
भारत और भारतीयता क
े
-
त हमार उ न त- ग त का आधार,
त आचरण-मू लक
त हमारा
ि टकोण
या र त ,
व थ है ?
ाथना कर क हर भारतीय का
दय
ा और भि त भर जाए ।
व नता ठ कर
वडोदरा
( का शत : “कालजयी
वामी ववेकान द” संचेतना क
वशेष
तु त – श क संचेतना,
राजभाषा संघष स म त एवं अ खल भारतीय सा ह य प रषद, उ जैन का संयु त उप म)
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