7. मालिीय जी
• "भारतीय विद्यार्थियों के मागि में आने िाली
ितिमान कहिनाईयों का कोई अंत न ीं ै।
सबसे बडी कहिनता य ै कक शशक्षा का
माध्यम मारी मातृभाषा न ोकर एक अत्यंत
दुरु विदेशी भाषा ै। सभ्य संसार के ककसी
भी अन्य भाग में जन-समुदाय की शशक्षा का
माध्यम विदेशी भाषा न ीं ै।"
मदनमो न मालिरीय
10. ह न्दी, ह न्दू और ह न्दुस्तान
• म धमि को चररत्र-
ननमािण का सीधा मागि
और सांसाररक सुख का
सच्चा द्िार समझते ैं।
म देश-भक्तत को
सिोत्तम शक्तत मानते ैं
जो मनुष्य को उच्चकोहि
की ननिःस्िाथि सेिा करने
की ओर प्रिृत्त करती ै।
- मदन मो न मालिरीय
• ह न्दी भाषा और साह त्य
के विकास में मालिीय जी
का योगदान कियात्मक
अर्धक ै, रचनात्मक
साह त्यकार के रूप में
कम ै। म ामना मालिीय
जी अपने युग के प्रधान
नेताओं में थे क्जन् ोंने
ह न्दी, ह न्दू और
ह न्दुस्तान को सिोच्च
स्थान पर प्रस्थावपत
कराया।
11. विश्िकोश
• भारतीय िाङमय में संदभिग्रंथों - कोश, अनुिमणणका,
ननबंध, ज्ञानसंकलन आहद की परंपरा ब ुत पुरानी ै।
भारतीय भाषाओं में सबसे प ला आधुननक विश्िकोश
श्री नगेंद्र नाथ बसु द्िारा सन ् 1911 में संपाहदत
बााँगला विश्िकोश था। बाद में 1916-32 के दौरान
25 भागों में उसका ह ंदी रूपांतर प्रस्तुत ककया गया।
मरािी विश्िकोश की रचना 23 खंडों में श्रीधर
व्यकं िेश के तकर द्िारा की गई।
12. • स्िराज्य प्राक्तत के बाद भारतीय विद्िानों का घ्यान आधुननक
भाषाओं के साह त्यों के सभी अंगों को पूरा करने की ओर गया
और आधुननक भारतीय भाषाओं में विश्िकोश ननमािण का
श्रीगणेश ुआ। इसी िम में नागरी प्रचाररणी सभा, िाराणसी
ने सन् 1954 में ह ंदी में मौशलक तथा प्रामाणणक विश्िकोश के
प्रकाशन का प्रस्ताि भारत सरकार के सम्मुख रखा। इसके
शलए एक विशेषज्ञ सशमनत का गिन ककया गया और उसकी
प ली बैिक 11 फरिरी 1956 में ुई और ह ंदी विश्िकोश के
ननमािण का कायि जनिरी 1957 में प्रांरभ ुआ। सन् 1970
तक 12 खंडों में इस विश्िकोश का प्रकाशन कायि पूरा ककया
गया। सन् 1970 में विश्िकोश के प्रथम तीन खंड अनुपलब्ध
ो गए। इसके निीन तथा पररिर्धित संस्करण का प्रकाशन
ककया गया।
विश्िकोश
13. ह न्दी विश्िकोश
• ह न्दी विश्िकोश, नागरी प्रचाररणी सभा द्िारा
ह न्दी में ननशमित एक विश्िकोश ै। य बार
खण्डों में पुस्तक रूप में उपलन्ध ै। इसके
अलािा य इंिरनेि पर पिन के शलये भी
नन:शुल्क उपलब्ध ै। य ककसी एक विषय पर
के क्न्द्रत न ीं ै बक्ल्क इसमें अनेकानेक विषयों
का समािेश ै।
14.
15. ह ंदी विश्िकोश
• राष्रभाषा ह ंदी में एक मौशलक एिं प्रामाणणक विश्िकोश के
प्रणयन की योजना ह ंदी साह त्य के सजिन में संलग्न
नागरीप्रचाररणी सभा, काशी ने तत्कालीन सभापनत म ामान्य
पं. गोविंद िल्लभ पंत की प्रेरणा से ननशमित की जो आर्थिक
स ायता ेतु भारत सरकार के विचाराथि सन् 1954 में प्रस्तुत
की गई। पूिि ननधािररत योजनानुसार विश्िकोश 22 लाख रुपए
के व्यय से लगभग दस िषि की अिर्ध में एक जार पृष्िों के
30 खंडों में प्रकाश्य था। ककं तु भारत सरकार ने ऐतदथि
ननयुतत विशेषज्ञ सशमनत के सुझाि के अनुसार 500 पृष्िों के
10 खंडों में ी विश्िकोश को प्रकाशशत करने की स्िीकृ नत दी
तथा इस कायि के संपादन ेतु स ायताथि 6।। लाख रुपए
प्रदान करना स्िीकार ककया। सभा को कें द्रीय शशक्षा मंत्रालय के
इस ननणिय को स्िीकार करना पडा कक विश्िकोश भारत
सरकार का प्रकाशन ोगा।
16. ह ंदी विश्िकोश
• योजना की स्िीकृ नत के पश्चात् नागरीप्रचाररणी सभा ने जनिरी, 1957 में
विश्िकोश के ननमािण का कायािरंभ ककया। कें द्रीय शशक्षा मंत्रालय के ननदेशानुसार
"विशेषज्ञ सशमनत" की संस्तुनत के अनुसार देश के विश्रुत विद्िानों, विख्यात
विचारकों तथा शशक्षा क्षेत्र के अनुभिी प्रशांसकों का एक पचीस सदस्यीय
परामशिमंडल गहित ककया गया। सन् 1958 में समस्त उपलब्ध विश्िकोशों एिं
संदभिग्रंथों की स ायता से 70,000 शब्दों की सूची तैयार की गई। इन शब्दों की
सम्यक् परीक्षा कर उनमें से विचाराथि 30,000 शब्दों का चयन ककया गया। माचि,
सन् 1959 में प्रयोग विश्िविद्यालय के ह ंदी विभाग भूतपूिि प्रोफे सर डॉ. धीरेंद्र
िमाि प्रधान संपादक ननयुतत ुए। विश्िकोश का प्रथम खंड लगभग डेढ़ िषों की
अल्पािर्ध में ी सन् 1960 में प्रकाशशत ुआ।
• सन् १९७० तक १२ खंडों में इस विश्िकोश का प्रकाशन कायि पूरा ककया गया। सन्
१९७० में विश्िकोश के प्रथम तीन खंड अनुपलब्ध ो गए। इसके निीन तथा
पररिर्धित संस्करण का प्रकाशन ककया गया। राजभाषा ह ंदी के स्िणिजयंती िषि में
राजभाषा विभाग (गृ मंत्रालय) तथा मानिसंसाधन विकास मंत्रालय ने कें द्रीय ह ंदी
संस्थान, आगरा को य उत्तरदानयत्ि सौंपा कक ह ंदी विश्िकोश इंिरनेि पर पर
प्रस्तुत ककया जाए। तदनुसार के न्द्रीय ह ंदी संस्थान, आगरा तथा इलेतरॉननक
अनुसंधान एिं विकास कें द्र, नोएडा के संयुतत तत्िािधान में तथा मानि संसाधन
विकास मंत्रालय तथा सूचना प्रौद्योर्गकी मंत्रालय के संयुतत वित्तपोषण से ह ंदी
विश्िकोश को इंिरनेि पर प्रस्तुत करने का कायि अप्रैल २००० में प्रारम्भ ुआ।
23. कविता कोश
• मैर्थली कविता कोश
• भोजपुरी कविता कोश
• छत्तीसगढ़ी कविता कोश
• राजस्थानी कविता कोश
• मरािी कविता कोश
• गुजराती कविता कोश
प्रादेशशक कविता कोश
• उत्तर प्रदेश के कवि
• छत्तीसगढ़ के कवि
• बब ार के कवि
• मध्य प्रदेश के कवि
• राजस्थान के कवि
• ह माचल प्रदेश के कवि
32. अन्य भारतरीय भाषाओं के विश्िकोश
• गुजराती का विस्तृत विश्िकोश
• भगिद्गोमण्डल - गुजराती भाषा का म ान विश्िकोष
• आनलाइन मरािी विश्िकोश
• बलई_डॉि_कॉम - आनलाइन मरािी विश्िकोश, प्रश्नकोश
एिं शब्दकोश
• म ाराष्ट्रीय ज्ञानकोश (मरािी का प ला विश्िकोश)
• बंगीय साह त्य पररषद द्िारा ननशमित भारतकोश का संक्षक्षतत
रूप ((बांग्ला विश्िज्ञानकोश ; प्रयुतत फॉण्ि : रफ)
• बांग्लापीडडया (BanglapediaII फॉण्ि में)
• पंजाबी (गुरुमुखी) का म ानकोश
• कन्नड विश्िकोश
58. ननष्कषि
• ह ंदी एक समृद्ध एिम सक्षम भाषा ै जो कक ना शसफि
भारत देश में बक्ल्क विश्ि के लगभग 30 देशों में बोली
ि समझी जाती ै।
• आज इंिरनेि ने सूचना के द्िार सभी के शलये खोल
हदये ैं। सूचना का आदान प्रदान ब ुत तेजी से बढ़ा ै।
सोसल मीडडआ की इस में प्राभािी भूशमका र ी ै।
• आज आिश्यकता इस बात की ै कक म उपलब्ध
सूचना श्रोतों का स ी तर से शोध कायों में, साह त्य
के विकास में, समाज के उत्थान में उपयोग करें। ज्ञान
को क्षेत्रीय भाषा में उपलब्ध करायें क्जस से समाज के
अर्धकांश लोग इस का लाभ उिा सकें ।
59. • "स्ितंत्र ोना , अपनी जंजीर को उतार देना मात्र
न ीं ै, बक्ल्क इस तर जीिन जीना ै कक औरों
का सम्मान और स्ितंत्रता बढे।" -नेल्सन मंडेला
• “For to be free is not merely to cast off one’s
chains, but to live in a way that respects and
enhances the freedom of others.” - Nelson
Mandela
60. • "मैंने ये जाना ै कक डर का ना ोना सा स न ी ै,
बक्ल्क डर पर विजय पाना सा स ै. ब ादुर ि न ीं ै
जो भयभीत न ीं ोता, बक्ल्क ि ै जो इस भय को
परास्त करता ै।"-नेल्सन मंडेला
• "I learned that courage was not the absence of fear,
but the triumph over it. The brave man is not he who
does not feel afraid, but he who conquers that fear."-
Nelson Mandela